खुशियों के दीये
खुशियों के दीये
कोरोना काल में लॉक डाउन के बाद बड़े त्योहार दीवाली मनाने की खुशी विश्वनाथ अग्रवाल के घर में हर सदस्य के चेहरे पर दिखाई दे रही थी। सबसे बड़े बेटे ओम अग्रवाल व पार्वती अपनी बेटी श्रुति के लिए मिठाईयां, उपहार व ग्रीन पटाखे लाने की सोच रहे है। श्रुति ने हाल ही में नीट परीक्षा अच्छे अंकों से पास की है। उसके सबसे छोटे चाचा कमल अग्रवाल व चाची पल्लवी श्रुति को सरप्राइज गिफ्ट खरीदने बाजार शो रूम पहुँच गए। चमचमाता एक्टिवा 6 जी मॉडल सिल्वर कलर में श्रुति के गिफ्ट के रूप में खरीद कर घर ले आये। आज धनतेरस के मौके पर अपने पसंदीदा रंग की एक्टिवा पाकर श्रुति के पैर जमीन पर नहीं टिक रहे है। श्रुति तेजी से दौड़ती हुई मम्मी को बताने दौड़ी। श्रुति-मम्मा, स्कूटर चाचा व चाची ले आए। पार्वती-इतना महंगा गिफ्ट देने की क्या जरूरत थी देवर जी। कमल व पल्लवी एक साथ बोले-श्रुति ने नीट परीक्षा पास कर हमारे परिवार का मान बढ़ाया है। हम अपनी बच्ची के लिए इतना तो कर सकते है।
उधर से ओम अग्रवाल ने आवाज दी-बेटी, जल्दी चलो बाजार से त्योहार का सामान भी लाना है। श्रुति-जी, पापा अभी आई। नई एक्टिवा पर हेलमेट पहनकर ओम अग्रवाल व उनकी बेटी श्रुति चल दिए। चारों तरफ वाहन ही वाहन ट्रैफिक से जाम का जाम। बड़ी मशक्कत के बाद बाजार पहुंच कर खरीददारी शुरू की। ये ले लो, वो ले लो। एक घन्टे तक शॉपिंग का दौर चलता रहा। आखिर में आई पटाखे खरीदने की बारी। श्रुति बोली-पापा, इस दीवाली पटाखे नहीं छोड़ेंगे। क्यों बेटी-पापा ने आश्चर्य से पूछा। श्रुति-एक तो चारों ओर आजकल स्मॉग के धुएं से आंखों में जलन, गले में खराश, सांस लेने में सभी को दिक्कत हो रही है। दूसरी ओर इस कोरोना काल में ऐसे कई लोग है जो अपने परिवार के साथ दीवाली के दीये भी नहीं जला पा रहे। पापा क्यों ना हम पटाखों की जगह हमारे सामने वाली मलिन बस्ती में जाकर मिठाईयां, दीया बाती तेल बांट कर आएं। ओम अग्रवाल-वाह श्रुति क्या नेक इरादे है तुम्हारे। तुम पढ़ाई में तो अव्वल हो ही साथ में लोगों को मदद की चाह रखती हो, मुझे तुम पर गर्व है।
बस्ती के बच्चों के लिए चॉकलेट, बिस्किट, मिठाईयां व कपड़े लिए। तेल, मिट्टी के दीपक, बाती लेकर बस्ती में पहुंचे। यह नजारा देख कर बस्ती के लोगों की आंखों में आभार के आंसू झर झर कर टपक रहे थे। पूरा ओम अग्रवाल का परिवार इस कार्य में आगे आकर मदद कर रहा था। इस बार मलिन बस्ती के सभी घर दीवाली पर जगमगाने के लिए श्रुति की दी गई मदद ने तैयार कर दिए थे। दीवाली के दिन कॉलोनी में बने अपने की छत से पास की जगमगाती मलिन बस्ती को देख कर श्रुति व पूरा अग्रवाल खुशी से झूम रहा था। पड़ोसी भी श्रुति की इस पहल की तारीफ किए जा रहे थे। वाकई, जब नेक इरादे हो तो सुविधवंचित घरों के दीयों को भी जगमगाती रोशनी से रोशन किया जा सकता है। श्रुति जैसे नेक कार्य की कहानी को हर घर की कहानी बनाया जा सकता है।