खुद्दारी की रोटी

खुद्दारी की रोटी

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"भैया गांधी आश्रम चलेंगे !" मुखर्जी नगर में रिक्शा वाले भैया से पूछने पर मीठी सी आवाज में जवाब मिला-

"जी जरूर चलेंगे !"

जैसे ही रिक्शा पर बैठी वह बताने लगा - "आपको पता है यहाँ पर अभी हमने एक चोर पकड़ा।"

"चोर !" मैंने चौंक कर पूछा।

"हांजी चोर ! एक लड़की ने ए टी एम से दो हजार निकाले, जैसे ही वह ए टी एम से बाहर आई एक चोर ने उस का पर्स झपट लिया। ये तो हम लोगो ने देख लिया और भागकर उसे पकड़ लिया। पहले तो खूब मारा, अब कुछ लोग उसे पुलिस थाने ले कर गए हैं।"

"अरे वाह ! आपने तो चोर को पकड़ कर बहुत बढ़िया काम किया।"

"हांजी ! हम तो मेहनत करके खाने वाले लोग है।"

"बिलकुल भैया! मेहनत की रोटी सबसे सुखकारी होती है।" मैने कहा तो वह अपने बारे में बताने लगा-

"हमारा नाम सुनील कुमार है। डेढ़ साल पहले भागलपुर डिस्ट्रिक यू पी से आए। पहले दिहाडी मजदूरी की, अब कुछ समय से रिक्शा चला रहा हूँ।"

"गाँव में क्या काम करते थे !" मैंने उत्सुकता से पूछा तो उसने बताया-

"वहां काम का बहुत मंदा है । दिल्ली में कम से कम तीन सौ की दिहाडी तो बन ही जाती है।"

"घर में पैसे भेजते हो !" मैंने हँसते हुए पूछा तो सीना तान कर जवाब दिया-

"हांजी हर महीने ! माँ बाप हमारे सहारे ही तो बैठे हैं न ! उनका ध्यान न रखेंगे क्या ! हमने तो एक बात सीखी है जिंदगी में - मेहनत की खाएंगे और मेहनत की ही परिवार को खिलाएंगे।"


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