खट्टी मीठी गोली
खट्टी मीठी गोली
आज के जमाने में अगर कोई चीज सबसे अधिक कारगर है तो वह है गोली। जिधर देखो उधर ही हर कोई गोली पे गोली दे रहा है। नेताओं को देखो। मुफ्त में ये देंगे मुफ्त में वो देंगे , वादों की मीठी गोली पकड़ाते रहते हैं। लेकिन सत्ता में आने के बाद वो मीठी गोली कड़वी गोली में तब्दील हो जाती है। अब तो हम इस इंतजार में बैठे हैं कि किसी दिन कोई नेता सार्वजनिक रूप से घोषणा करे कि हम कुंवारों के लिए मुफ्त में दुल्हन की व्यवस्था करेंगे। सच में फिर उस नेता को प्रधानमंत्री बनने से कोई रोक नहीं सकता है। अरे भाई , ये समस्या राष्ट्र व्यापी बनने जा रही है। ये नेता लोग मीठी गोली देने में माहिर होते हैं।
मगर एक बात समझ लीजिए कि मीठा डायबिटीज को आमंत्रित करता है। डॉक्टर के पास जाओ तो वह सबसे पहले मिठाई को बंद कराता है। अब आम आदमी क्या करे बेचारा। नेता मीठी गोली देता है और डॉक्टर मिठाई छोड़ने को कहता है। मरीज की हालत ऐसी हो जाती है कि वह निर्णय ही नहीं कर पाता है कि मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं ?
डॉक्टर भी बहुत होशियार हो गए हैं। उन्हें पता है कि बीमारी की दवा तो कड़वी गोली ही है लेकिन वह कड़वी गोली मरीज को कैसे दे ? फीस तो भरपूर वसूल कर ली है उन्होंने। और दवा कड़वी ? ये नहीं चलने वाला है अब। इसलिए शुगर कोटेड गोली का प्रचलन बढ़ गया. है आजकल। सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे। बड़ा नायाब फार्मूला है जी।
एक तरफ लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। भीख मांग.रहे हैं। कचरा बीन रहे हैं। कचरे में से ही कुछ खा पीकर अपना पेट भर रहे. हैं। वहीं दूसरी तरफ शादी पार्टियों में सैकड़ों की संख्या में व्यंजन बनाये जाते हैं। लोग एक टाइम के बजाय दो दो तीन तीन टाइम का खाना एक समय में ही खा लेते हैं। अब इस खाने को पचाने के लिए "हाजमोला" की गोली भी जरुरी है। "खाया , पीया और पचाया"। हाजमोला की गोलियां भी अनेक फ्लेवर में आती हैं। इसका विज्ञापन करते हुए महानायक पर्दे पर नजर आ जाते हैं। कितना मंहगा होता होगा न यह विज्ञापन ? जेब तो ग्राहकों की ही कटती है। मगर लोग हैं कि मानते नहीं। खाये जा रहे हैं , खाये जा रहे हैं और हाजमोला से पचाये जा रहे हैं।
आजकल तो बात बातपर गोली चल जाती है। जरा जरा सी बात पर लोग ऐसे कत्ल कर देते हैं कि जैसे आदमी की कोई वैल्यू ही नहीं है। गोली से उड़ा देते हैं लोग और पुलिस तथा न्याय व्यवस्था को "गोली" देकर साफ निकल जाते हैं। आतंकी ए के 56 से दनादन गोलियां बरसाते हैं और लाशों के अंबार लग जाते हैं। गैंगस्टर और बाहुबलियों का वैसे ही आतंक गजब का होता है। ऊपर से जब उनके बॉडीगार्ड रिवाल्वर लेकर चलते हैं। इससे उनका खौफ गजब का बन जाता है।
मीडिया भी गजब गोली छोड़ता है। हर बात पर मीडिया ट्रायल करने लगता है और खुद ही जज भी बन जाता है। न्यायालय के निर्णय का भी इंतजार नहीं करता है। मीडिया की गोली से न जाने कितने लोग मारे जा चुके हैं।
कोई जमाने में खट्टी मीठी गोलियां मिलती थी बाजार में। हम बच्चे लोगों को बहुत पसंद थी वे गोलियां। संतरे के फ्लेवर वाली होती थी वे गोलियां। पांच पैसा की पांच गोली मिलती थी। खूब चूसते रहते थे। उन गोलियों की मिठास से ज्यादा उन गोलियों के रंग से होने वाली रंगबिरंगी जीभ दिखाने में ज्यादा मजा आता था और हम तो वे गोलियां इसीलिए लेते थे जिससे अलग अलग रंग की जीभ अपने दोस्तों और भाईबहनों को भी दिखा दे।
बस में कोई गोलीवाला गोली बेचते हुए मिल जाता था। लोग कहते थे कि कुछ लोगों को बस में बैठने पर उल्टियां आने लग जाती हैं तो इन खट्टी मीठी गोलियों को मुंह में रखने से उल्टियाँ नहीं. होती हैं। इसलिए बस में खूब बिकती थी ऐसी गोलियां।
पहले तो लोग बीवी बच्चों को भी मीठी गोलियां खूब खिलाते थे मगर अब बीवियां बड़ी चालाक हो गयीं हैं इसलिए वे अब मीठी गोलियों के जाल में नहीं फंसती हैं। और बच्चे तो आजकल जरूरत से भी ज्यादा बुद्धिमान हो गए हैं। वे तो खुद मां बाप को मीठी गोली देने लगे हैं।
प्रेमी लोग भी बहुत मीठी गोली देते थे मगर अब प्रेमिकाएं प्रेमियों से चार कदम आगे रहती हैं। एक के बजाय चार चार प्रेमियों को एक ही समय.में मीठी गोली दे देती है और वे बेचारे चारों प्रेमिका के जाल में फंस जाते हैं।
अब बस। बहुत खा ली खट्टी मीठी गोली। इससे ज्यादा खाओगे तो दुखी हो जाओगे। इसलिए इतनी खुराक काफी है।
