खटमल
खटमल
नीलिमा स्वप्निल के असामयिक मृत्य से इतनी कमजोर न पड़ी थी जितनी वो अपने प्रति लोगो के बदलते व्यवहार से थी। उसने स्वप्निल की जगह अपनी काबिलियत के बलबूते नौकरी तो हांसिल कर ली थी।पर साड़ी पहनकर ही ऑफिस जाने की उसकी सास की जिद,ऑफिस में बार बार उसे ही घूरती बॉस की नजरें व पुरुष सहकर्मियों के भद्दे मज़ाक।उसके लिये इस एकाकी जीवन की वो मुश्किलें थी।जिनका वह चाहकर भी कोई हल नही निकाल पा रही थी।
मन के इन्ही उलझनों के बीच उसके हाथ पर कुछ खुजली सी महसूस हुई। निशान देखने से खटमल का काटा लग रहा था।सहसा ही उसे ख्याल आया की वह भी तो जीवन के इस पड़ाव पर कुछ ऐसे ही अदृश्य खटमलों से घिरी है।जो अवसर मिलते ही,अपने दंश से उसके शांत मन को बार बार विचलित कर जाते हैं।
