खो दिया उसने
खो दिया उसने
जब भी बंद आंखों से उस शख़्स को
मैंने याद किया वो सदा मेरे साथ रहा
अब लगता है मैंने खो दिया उसे
अपने स्वार्थ को सिद्ध करने और अपनी लालसा की भट्टी में...कुछ ऐसे ख्यालातों ने कर्ण को अपनी गिरफ्त में जकड़ लिया था, वो कहकर पुकारना चाहता था लेकिन पुकारता किसे ?
जिसे पुकारना चाहता था उसे तो उसने खुद से ही खो दिया था लेकिन उसकी खता ऐसी भी नहीं थी जिसे मुआफ़ नहीं किया जा सकता था। आख़िर उसका कसूर ही क्या था। उसने अपने दोस्तों के बहकावे में आकर अपनी गर्लफ्रैंड को अपने दोस्तों की महफ़िल में नाचने को ही तो कहा था।
उन दोस्तों की महफ़िल में जहाँ किरण जाना ही नहीं चाहती थी और वहां लाकर कर्ण ने न सिर्फ उसके विश्वास को तोड़ा बल्कि उसके आत्मसम्मान को भी दांव पर लगा दिया, लेकिन दोस्तों के उकसाने और नशे की धुनकी में उसे कुछ भी एहसास नहीं रहा।
जब नशा उतर गया तो मानो उसने ज़िन्दगी में जो भी कमाया था सब गंवा दिया हमेशा हमेशा के लिए।