मुहब्बत कहाँ नहीं है
मुहब्बत कहाँ नहीं है
दो दोस्त दोनों बचपन से साथ में
अल्हड़ मस्ती अटखेलियां
सब कुछ नटखट शरारतें
यौवन तक हुआ साथ में
लंगोट के पक्के दिल के सच्चे,
लेकिन विचारों में दोनों के
बड़ा मतभेद रहता था
एक पूर्व की कहानी तो
दूसरा पश्चिम की बात कहता था।
दोनों की जवानी अपने अपने
चरम पर आ रही थी
भविष्य की बेला उन पर
अपनी छाप छोड़े जा रही थी।
एक न जाने दूसरे के दिल की बात
ऐसा अब तक हुआ नहीं
फिर भी कुछ ऐसा हुआ
जो दोनों ने अब तक छुआ नहीं।
एक रूप यौवन की देवी
उनके समक्ष बनकर
संकट उभर आई
दोनों दिलों पर मानो
खुशबू बहार खिल-खिल आई।
लेकिन प्रश्न अटल रहा
यह संगत किसकी रंगत लुभाएगी
बात बहुत सरल थी जो
दोनों की समझ मे आ गई।
दोनों ने प्रेयसी से ही
प्रश्न एक कर डाला
सुनकर सर चकरा गई
वो कुसुमलता सी कोमल बाला।
उसने ऐसा सन्देह कभी
खुद पर नहीं किया होगा
जैसा उन दोनों ने
उस पर कर डाला
प्रेम कहाँ नहीं है
मुहब्बत कहाँ नहीं है।
इसका वो भला क्या ज़वाब दे
ख़ामोश भी गर वो रहे
तो भी कुछ न कुछ भाव कहे
उसने ज़रा सोचकर
उलझी ज़ुल्फें खोलकर
मन्द मन्द मुस्कान भरे लहजे में
इतना अर्ज़ कर दिया,
जहां नहीं भाव प्रेम का
वहीं ठीकरा धर दिया
प्रेम तो जीवन का आधार है
जहां यह आधार नहीं
जीवन वहां निराधार है।
जिसमें रब नही बसता है
प्रेम वहां भी पलता है
यह अलग बात है
जहां प्रेम नहीं है
वहां भी प्रेम खलता है।
इसी धुरी को अपनी माधुरी बना
दोनों ने कहा दिल खोलकर
मुहब्बत जहां नहीं है
हम भी वहां नहीं है।
तुम्हारे शुक्रगुजार है
हम दोस्त थे दोस्त है
और अब इश्क़ के पहरेदार है
चुनाव तुम्हें करना है देवी।
हम दोनों तुम्हारे इश्क़ के दावेदार है
वो संकुचित सी और भी शरमा गई
बात जो उसके होठों पर दबी सी थी
ज़रा देर में बाहर आ गई।
उसने कहा मुझे देश से प्रेम है
देशवासियों से प्रेम है
जीव-जंतुओं पक्षियों से भी प्रेम है
तुम तो चलते फिरते इंसान हो।
मुझे सभी इंसानों से भी प्रेम है
और जब मैं सबसे प्रेम कर सकती हूं
तो कैसे कहूँ की मुझे तुमसे भी प्रेम है
इसके तुरन्त बाद एक ज़ोरदार सन्नाटा
और सब कुछ धुंधला सा होने लगा।
प्रेम कबूतर दोनों के ह्रदय से
कहीं दूर गगन में खोने लगा।