बेबाक़

बेबाक़

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शाम का वक़्त सब लोग रिहर्सल पर आ रहे है तभी हमारी नायिका जो कि कम खूबसूरत और नखरीली ज़्यादा अपने आर्टिफिशियल अंदाज़ में एंट्री लेती है सभी उसको देखते है और अपने अपने में जुट जाते है, शायद नाटककार विजय तेंदुलकर का ख़ामोश अदालत ज़ारी है...

नाटक के निर्देशक गोविंद जी अपने तय समय पर आ चुके है नायिका आगे बढ़कर उनका अभिवादन कर उनसे देर से आने की शिकायत करती है गोविंद जी कहते है अपने व्यवहारिक अंदाज़ में,

"आप मुझसे पहले नहीं समय से पहले आई है अब रिहर्सल शुरू करें..." वो किसी दूसरी लड़की को जिसका नाम कौशल है को बिनारे बाई का किरदार पढ़ने के लिए कहते है, तभी उनकी बात काटकर नायिका जिसका नाम प्रिया है निर्देशक को कहती है,

"कल तो यह आपने मुझसे पढ़वाया था आज भी मैं ही पढूंगी..."और कहकर पढ़ना शूरू कर देती है। गोविंद जी उसका हाथ पकड़कर उसे साइड में बैठाते है और वो इस बात पर बहस करने लगती है कि "आपने मुझे छुआ कैसे, मैंने आप जैसे बहुत लोग देखे है जो लड़कियों को छूने के लिए बहाने तलाश करते फिरते है...मैं उन लड़कियों में से नहीं जो इस तरह की अभद्रता पर मौन रहकर उसको बढ़ावा दूँ, मैं तो तुम्हारी ज़िन्दगी ख़राब कर दूंगी।"

गोविंद जी बहुत समझाने की कोशिश करते है लेकिन वो सबको अपने फेवर में करके उनके ख़िलाफ़ कर देती है और सभी गोविंद जी को कहते है "बात तो इसकी सही है आपको अपनी मर्यादा में रहकर दूर से ही बिना टच किये प्रिया को किरदार के बारे में या किसी भी बारे में समझाना चाहिए, आपको मालूम है फलां फलां धारा के तहत यह अभद्रता और अशिष्टता के साथ-साथ यौन उत्पीड़न का भी मुआमला बन सकता है..और आपको कई सालों की जेल भी हो सकती है।"

गोविंद जी हारकर कहते है "अरे भई मैंने ऐसा क्या कर दिया जो आप सब बात को तूल दे रहे है मैं नाटक करने आया हूँ या यह सब करने के लिए, क्या आप सब की अक्ल घांस चरने गई है, या आपकी सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो चुकी है और आपकी समझदारी को लकवा मार गया है जो आप बेसिर पैर की बातें लेकर बैठ गए, चलिए रिहर्सल शुरू कीजिए।"

तभी प्रिया कहती है "अब कोई रिहर्सल नहीं होगी अगर आप माफ़ी नहीं मांगेंगे तो मैं आपकी शिकायत हेडमिस्ट्रेस से करूंगी।" गोविंद जी कहते है "देखो प्रिया पहली बात तो मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी और फिर भी अगर तुम हर्ट हुई हो तो मैं सॉरी कहता हूं, अब रिहर्सल शुरू करें।" एक बात और प्रिया कहती है "नायिका का किरदार मैं ही करूंगी।" गोविंद जी का धैर्य जवाब दे चुका है वो कहते है "भागो यहां से अपने आप को क्या समझती हो तुम बात करने का शऊर तक नहीं है और नख़रे ऐसी करती हो जैसे कहीं की अप्सरा हो, जाओ जिसको जो कहना है कह दो, अब तुम इस नाटक में ही नहीं रहोगी।"

"कौशक तुम पढ़ना शुरू करो", प्रिया बौखलाकर "मैं तुम्हें देख लूँगी यह बात तुम्हें बहुत महंगी पड़ेगी, अभी तुम मुझे जानते नहीं हो" कहकर वहां से चली जाती है, सभी लोग तमाशाई बन मूक बधिर से सब देखते रहते है और दृश्य समाप्त हो जाता है।

उसी रात गोविंद जी अपने फ्लैट पर सोने की कोशिश में है लेकिन रह रह कर उनको प्रिया की यह अज़ीब सी हरक़त परेशान करती है और उन्हें याद आता है कि, उसी दिन सुबह जब वो जॉब के लिए निकल रहे तभी प्रिया उनके फ्लैट पर आई थी और उसने उन्हें बड़ी बेबाक़ होकर अपनी दिली मंशा उन पर ज़ाहिर की। जिसका जवाब उन्होंने मुस्कुराकर यह कहकर दिया था "मैडम शाम को रिहर्सल पर मिलते है मुझे आपकी फ़िराक़ दिली बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है कृपया करके आप अपनी तशरीफ़ का टोकरा बाहर की और लेकर यहां से कूच करें, और वो एक शरारती मुस्कान देती हुई "ओके माय लव" कहती हुई वहां से चली गई थी। अचानक उनकी आँख खुल जाती है और उनका ज़ैह्न परेशान हो जाता एक के बाद एक प्रिया के समर्थकों का तांता उनकी दिमाग की बत्ती गुल कर देता है और वो चीख पड़ते है, चुपपपपप और दृश्य बदल जाता है।


अगली सुबह गोविंद जी की सुबह बड़ी दिलचस्प होती है उनकी परेशानी तब और बढ़ जाती है जब प्रिया के पति का उनको कॉल आता है और वो उनको अपनी पत्नी के साथ हरासमेंट को लेकर झाड़ लगाते है, और कहते है "अब आपसे मेरा वकील ही बात करेगा। गोविंद जी कहते है "सर आप मेरी बात तो सुनिए" लेकिन कोई फायदा नहीं वो उनकी बात सुन बिना ही फोन कट कर देता है...कट टू शॉट ऑफिस में,

ऑफिस में हेडमिस्ट्रेस के रूम के बाहर उनके सभी कलाकारों की भीड़ लगी हुई है अंदर से प्रिया के रोने के आवाज़ आ रही है तभी चपरासी आकर उन्हें कहता हेडमिस्ट्रेस ने उन्हें बुलाया है जाकर पता चलता है कि उनको नौकरी से निकाल दिया गया है। सभी ने उनके खिलाफ और प्रिया के साथ हमदर्दी जताते हुए उन्हें वहां से निकालने के फेवर में अपनी राय प्रस्तुत की है, लेकिन वो कहते है मैडम आप एक तरफा बात सुनकर ऐसा कैसे फ़ैसला ले सकती है आप मेरी तो सुनिए, "क्या सुनाएंगे आप" हेडमिस्ट्रेस कहती है "एक शादीशुदा औरत की मर्यादा का सार्वजनिक तौर पर हनन करने के बाद भी आपके माथे पर एक शिकन तक नहीं है और ऊपर से तैवर ऐसे मानो राजा हरिश्चंद्र से उसका राजपाट छीना जा रहा हो, यह तो हमारी शराफ़त है प्रिया मैडम की रहमदिली है कि हम आपको पुलिस में नहीं दे रहे आपके ख़िलाफ़ कोई कानूनी करवाई नहीं कर रहे है सिर्फ आपको जॉब से निकाल रहे है।" लेकिन मैडम मेरी बात तो...बीच में ही टोककर गोविंद जी "प्लीज़...हाथ के इशारे से...आप जा सकते है।" गोविंद जी ख़ामोश हो जाते है, उन्हें अपने ही नाटक ख़ामोश अदालत ज़ारी का मंचन अपने ही साथ होता सा प्रतीत होता है फ़र्क़ सिर्फ इतना है यहां किरदार बदल गए है, और उन पर वहीं संगीन जुर्म गढ़ दिया गया है जिससे उनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं, लेकिन अब शायद बहुत देर हो चुकी है और प्रिया की कुटिलता पर उनकी बुर्ज़ुआ ज़हीनता उनकी सच्चाई ईमानदारी सब भेंट चढ़ चुकी है। आखिर उन्होंने ऐसा क्या किया है, वो बुतनुमा होकर गर्दन झुकाकर वहां चलते-चलते सब सोच रहे है, सारा मंज़र उनके सामने जीवंत हो उठता है और वो खीझकर कह उठते है...ऑर्डर ऑर्डर ऑर्डर...ख़ामोश अदालत ज़ारी है।



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