Suresh Sachan Patel

Tragedy Others Children

3.4  

Suresh Sachan Patel

Tragedy Others Children

।।खिलौने।।

।।खिलौने।।

3 mins
234


    शाम का सूरज अपने अस्ताचल कि ओर जा रहा था। पश्चिम में रक्तिम आभा फैली हुई थी। रमेश बुझे हुए कदमों से घर की ओर चला जा रहा था। दिमाग में बस एक ही बात गूँज रही थी, नन्ही आज जब पूछेगी, 'बापू मेरे खिलौने क्यों नहीं लाए, तो क्या जवाब दूंगा, आखिर कब तक मैं बहाने बनता रहूँगा। नन्ही से कैसे कहूं कि, बेटी अभी जेब खाली है जैसे ही पैसे होंगे, मैं तुम्हारे लिए खिलौने जरूर ले आऊॅ॑गा। इसी अधेड़ बुन में न जाने कब वह अपने घर के दरवाजे पर पहुँच गया था, नन्ही अपने बापू को देखते ही दौड़ कर लिपट गई और बोली, 'बापू मेरे खिलौने कहाँ हैं'। जिस बात का डर था वही बात हो गई। अब रमेश बेटी के सवाल का क्या जवाब देता। फिर धीरे से हल्की और बनावटी मुस्कान बिखेर कर बोला बेटी आज समय नहीं मिला कल जरूर ले आऊॅ॑गा तुम जाओ और मेरे लिए एक गिलास पानी ले आओ। नन्ही कुछ निराश और कुछ खुशी से उछलती हुई जाकर पानी ले आई पानी पीकर रमेश वहीं चारपाई में लेट कर आराम करने लगा, और मन में यही चिंता सता रही थी कि कल नन्ही के लिए खिलौने का कैसे इंतजाम करेगा, जेब तो खाली है दिन भर की मजदूरी से घर का चूल्हा ही मुश्किल से जलता है, खिलौने कहाॅ॑ से खरीदेगा।

    अब सवेरा हो चुका था रमेश के दिमाग में अभी भी नन्ही के खिलौने की माॅ॑ग गूँज रही थी। जलपान करने के बाद वह काम की तलाश में निकल गया। अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया, मैं बचपन में मिट्टी के बहुत अच्छे-अच्छे खिलौने बनाता था, क्यों ना आज अपनी नन्ही के लिए मिट्टी के खिलौने बना दूॅ॑ यही सोचकर वह नदी की ओर चल पड़ा, और नदी की गीली मिट्टी से गुड़िया, हाथी, घोड़े, गाड़ी आदि बना दिए, और उन्हें एक सुरक्षित जगह में सूखने के लिए रख कर अपने काम पर चला गया। शाम को अपना काम जल्दी निपटा कर अपने बनाए हुए नन्ही के खिलौनों के पास पहुँच गया, रास्ते से वह पेड़ों की हरी पत्तियाॅ॑ कुछ कलियाॅ॑, कुछ फूल और झाड़ियों के बीज जिनको मसलने से रंग निकलता है, भी ले आया था ताकि उनका रंग निकालकर खिलौनों को रंगा जा सके।

    खिलौने अब पूरी तरह से सूख चुके थे। खिलौनों को देखकर उसका मन खुशी से झूम उठा था। उसने जल्दी-जल्दी हरी पत्तियों और फूलों का रस निकाला, और कई रंगों से उसने खिलौनों को रंग दिया, रंग जाने से खिलौने अब बहुत ही आकर्षक लग रहे थे।

    खिलौनों का रंग सूख जाने के बाद रमेश ने बहुत ही सावधानी से उन्हें अपने गमछे में रख लिया और घर की ओर चल पड़ा। आज रमेश के चेहरे पर एक अलग तरह की मुस्कान और खुशी थी।

    घर पहुँचते ही रोज की तरह नन्ही आकर अपने बापू के लिए लिपट गई, और बोली,' बापू मेरे खिलौने कहाॅ॑ हैं' रमेश ने नन्ही को प्यार से गोद में उठा लिया, और प्यार से बोला 'हाँ बेटी मैं आज तुम्हारे लिए ढेर सारे खिलौने लाया हूँ' सुनकर नन्ही खुशी से चहक उठी, और उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि, आज मेरा बापू मेरे लिए खिलौने लेकर आएगा।

    रमेश ने नन्ही को गोद से नीचे उतारा, और धीरे से अपने गमछे में रखे हुए खिलौने एक-एक कर निकाल कर जमीन पर रख दिए। खिलौने देखकर नन्ही की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, नन्ही एक एक खिलौना उठा उठा कर देखने लगी, और कभी घोड़े को जमीन पर चलाती, कभी हाथी को चलाती, कभी गाड़ी को घुमाती, आज नन्ही की खुशियाॅ॑ आसमान छू रही थी। नन्ही को इतना खुश देखकर नन्ही के माता-पिता भी बहुत खुश थे।

    एक पिता ही होता है जो अपने बच्चों की खुशियों के लिए क्या-क्या नहीं करता है। कभी खुद ही घोड़ा बन जाता है, कभी रसोई में खाना कम देखकर भूख नहीं है कह कर भूखा ही सो जाता है, सच में माता और पिता दोनों ही बहुत महान होते हैं।


  


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy