।।भय का भूत।।
।।भय का भूत।।


बात उन दिनों की है, जब मेरी तैनाती भारत के पूर्व में स्थित राज्य अरुणाचल प्रदेश में तैनात थी।अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाके में ज्यादातर आदिवासी लोग रहते हैं, और अपनी पुरानी परंपराओं में ही जीते हैं।
वहाॅ॑ के लोग भूतों पर बहुत विश्वास करते हैं।उनके अनुसार भूत होते हैं, और इंसानों को बहुत परेशान भी करते हैं।ऐसा ही एक वाक्य मेरे साथ भी गुजरा,हुआ कुछ यूॅ॑ की संध्या कालीन समय था हल्का धुंधलका होने लगा था सभी लोग अपने संध्या कालीन कार्य में व्यस्त थे ।अरुणाचल में मैदानी इलाके की अपेक्षा कम से कम एक घंटा पहले उजाला हो जाता है, और एक घंटा पहले अॅ॑धेरा भी हो जाता है।
चाॅ॑दनी रात थी शाम के धुंधलके के समय मैं भी अपने संध्या कालीन नित्य कर्म के लिए जा रहा था,तभी पास के गांव के 6 से 10 साल तक के बच्चे कहीं से आकर अपने गाॅ॑व जा रहे थे,बच्चे छोटे थे ऊपर से उनमें भूत प्रेत का डर भी भरा हुआ था।बच्चे मेरे पास आकर बोले की अंकल हमें डर लग रहा है,हमें ये बांस की झाड़ियों वाले रास्ते को पार कर दो।मै भी बच्चों से बोला कि चलो पार करा देता हूॅ॑,मैंने बच्चों से कहा तुम आगे चलो डरो मत मैं तुम्हारे साथ ही पीछे हूॅ॑,आगे थोड़ी ढलान थी, वहीं से बाॅ॑स की झाड़ियाॅ॑ शुरू हो जाती थीं।
अभी बच्चे ढलान से मुश्किल से 20 गज ही चले थे कि भूत भूत चिल्लाते हुए वापस मेरी ओर भागे,हमने कहा कहाॅ॑ है भूत,उन्होंने बाॅ॑स की झाड़ी की ओर इशारा किया,मैंने उधर देखा तो मेरे भी होश उड़ गए,सचमुच एक नव जवान आर्मी की वर्दी पहने हुए,सिर पर हैट लगाए हुए बीच रास्ते में खड़ा था। मैं उसे स्पष्ट रूप से देख रहा था और थोड़ी देर तक देखता ही रहा, डर से मेरी भी धड़कनें बढ़ चुकी थीं, लेकिन बच्चे और भयभीत न हों, इसलिए मैंने अपना डर बच्चों के सामने जाहिर नहीं होने दिया।इतिफाक से तभी वहाॅ॑ मेरा दोस्त अा पहुॅ॑चा,मैंने सारी बात दोस्त को बताई,दोस्त कुछ दबंग टाइप का था,बोला भूत कि ऐसी तैसी कहाॅ॑ है भूत आओ मेरे साथ।
अभी हम चार कदम ही आगे बढ़े थे कि रास्ते में खड़ा हुआ वह वर्दी वाला नव जवान गायब हो गया। दोनों लोग बच्चों को गाॅ॑व के पास तक छोड़ कर वापस अा गए, मैं अब फिर से उसी जगह पर खड़े हो कर उसी जगह को देखने लगा जहाॅ॑ पर मुझे भूत दिखाई दे रहा था,दर असल वहाॅ॑ पर कोई भूत नहीं था,बल्कि बच्चों के भूत भूत चिल्लाने के कारण मेरे अंदर भी भूत का डर बैठ गया था। उसी के परिणाम स्वरूप मुझे भी वह बाॅ॑स की झाड़ी ही भूत की तरह दिखाई देने लगी थी। बाॅ॑स की डालियाॅ॑ और उनके बीच से छन कर आता चंद्रमा का प्रकाश ही मुझे आर्मी की वर्दी में खड़ा जवान जैसा ही दिखाई दे रहा था। ये कोई भूत नहीं, बल्कि भय का भूत था।