Shalini Dikshit

Inspirational

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Shalini Dikshit

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खिलौना स्पाइडरमैन

खिलौना स्पाइडरमैन

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राधा दीपू का हाथ पकड़े जल्दी से चल रही है। एक बड़ी सी खिलौनों की दुकान देखते दीपू ने इशारा किया, "मम्मी ये रही दुकान इसी में चलते हैं......"

इतनी बड़ी दुकान देख के राधा घबरा गई उसने वादा तो किया है दीपू से कि कल उसका जन्मदिन है तो उसको खिलौना इस बार जरूर दिलाएगी लेकिन इतनी बड़ी दुकान में क्या मिलेगा सौ डेढ़ सौ रुपए में, इसलिए उसमें जाना नहीं चाहती है उसने दीपू को मना किया। 

"नहीं बेटा ये अच्छी नहीं है, मैं तुमको आगे अच्छी दुकान में ले जाऊंगी।"

"इसी में जाना है" दीपू ने जिद्द करी।

दोनों मां बेटा दुकान में चले गए। राधा ने दुकानदार से कहा कृपया कोई कार दिखाना, जो सेल से ना चले दो सौ रुपए में आ जाए। उसके लिए तो खिलौने पर खर्च करने के लिये यह बड़ी रकम ही है।

अच्छा बोलकर दुकानदार भी पीछे मुड़ कर कुछ गाड़ियां ढूंढने लगा उसने दो-तीन छोटी छोटी कार निकालकर काउंटर पर रख दी।

"एक्सक्यूज मी!!! क्या आपके पास स्पाइडर-मैन है?" एक सभ्रांत महिला अपने बच्चे के साथ आई उससे नीचे बैठकर खिलौने ढूंढते हुए दुकानदार को बोला।

दुकानदार खड़ा हो गया बोला, "यस मैम, है......" 

और अलमारी से स्पाइडर-मैन निकालने लगा। प्लास्टिक का स्पाइडरमैन, बैटमैन का एक छोटा पुतला जैसा आता है जिसकी पीठ पर एक रस्सी बंधी होती है और उस लंबी रस्सी के दूसरे सिरे पर एक रबड़ लगी होती है जिसको छत पर या किसी ऊंची चीज पर चिपका देते हैं और फिर एक बार घुमा देने से वह गोल-गोल घूमता रहता है बीच की पारदर्शी डोरी तो नहीं दिखती है ऐसे लगता है कि हवा में स्पाइडरमैन उड़ रहा है और बच्चे खुश होते हैं। इन महिला के बच्चे मोंटू को भी वही चाहिए था।

दुकानदार ने स्पाइडर-मैन निकाल के सामने रख दिया

"देखिए इस की डोरी भी ज्यादा लंबी है डेढ़ मीटर है......." दुकानदार ने उसकी खासियत बताई।

"हां हां यही स्पाइडर-मैन मुझे चाहिए...... " मोंटू खुशी से बोला।

दीपू का भी मन नहीं लग रहा है इधर गाड़ियां देखने में उसका भी ध्यान स्पाइडर-मैन की तरफ चला गया है। 

उस महिला ने पूछा "यह कितने का है?" 

स्पाइडर-मैन की तरफ इशारा करते हुए दुकानदार ने जवाब दिया, "तेरा सौ!!"

राधा ने जल्दी से दीपू का मुंह गाड़ियों की तरफ मोड़ दिया, "बेटा देखो इसमें से कोई पसंद आ रही है क्या?"

दीपू बोला, "मम्मी मुझे भी वही चाहिए......"

१३ सौ में तो आधे महीने से ज्यादा का घर खर्च निकालती है इतना महंगा खिलौना दिलाना उसके बस की बात इस जन्म में तो है नहीं, नहीं बेटा यह ज्यादा सुंदर नहीं है तुम कार देखो ना। 

"मैं कार नहीं लूंगा बहुत छोटी है......" दीपू ने जिद करी।

राधा ने दीपू का हाथ पकड़ा और बोली, "चलो हम यहां से चलते हैं दुकान अच्छी नहीं है......."

धीरे से उसने बोला था कि दुकानदार ने सुन ले ।

"मम्मी अच्छी तो है........" दीपू बोला। 

उसका हाथ पकड़ उसको बहलाता हुए बाहर ले जाने लगी, "यह तो बिल्कुल अच्छी नहीं मैं तुम्हें दूसरी दुकान पर ले जाती हूं जहां बहुत बड़ी-बड़ी गाड़ियां दिखेंगी उनमें से तुम कोई भी ले लेना।"

दीपू को बातों में लगाकर वह जल्दी से दुकान के बाहर लाते हुए बोली, "अब देखना मैं तुम्हें कितनी अच्छी दुकान में ले जाती हूं......."

जो लोग सड़क के किनारे चादर बिछा के खिलौने बेचते हैं राधा उस तरफ चल दी। वह जन्मदिन में खिलौना दिलाने वाला अपना वादा तो पूरा करके रहेगी। 


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