कहीं कुछ नहीं ... !
कहीं कुछ नहीं ... !


विकल देर तक नदी के किनारे बैठा जाने क्या - क्या सोच रहा था, हाँ, क्या - क्या सोच रहा था और क्यों सोच रहा था, इसका भान तो उसे भी नहीं था। उसके लिए अब तक के जीवन में ऐसे क्षण आज पहली बार नहीं आये हैं। वह अक्सर ही दुनिया की भाग दौड़ से यकायक अपने को काट कर एकांत में बैठ जाया करता रहा है और अपने से ही बातें करता रहा है। शायद ऐसा करना उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है !
सामने नदी है जिसमें पानी बहुत ही कम है। दूर से देखने पर ऐसा लगे मानो कोई नाला है। समय का फेर ही तो है कि इस समय नदी का मूल धन पानी ही नदी से विदा हो चुका है। विकल ने इसी नदी का वह रौद्र रूप भी तो पिछली बरसात में देखा था जब इसके पानी ने आसपास के सैकड़ों गाँव तबाह कर दिये थे। इसका किनारा हरहराते हुए पानी के चलते धूम धड़ाक करते हुए पानी में समाहित होता चला गया था। मानो फिर भी उसका पेट नहीं भरा था और पन्द्रह बीस दिनों में पूरा जिला जलप्लावित हो गया था। अजीब नज़ारा वह भी था। जल प्रलय के समान। लेकिन यही नदी आज सूख कर अपना अस्तित्व ही मिटाती नज़र आ रही है। क्या इस नदी के इ तिवृत्त्त से विकल खुद की ज़िंदगी में घटी घटनाओं का ताल मेल तो नहीं बैठा रहा है ?
सच है विकल खुद भी जीवन के उस छोर पर आ पहुंचा है जहां उसका जीवन सूखी नदी सा बनकर रह गया है। जहां एकाएक सूनेपन ने उसे अपनी बाहों के घेरे में ले लिया है ...जहां विकल महसूस करने लगा है कि उसका जीवन हाड-मांस का एक पुतला मात्र रह गया है जिसमें न तो कोई उमंग है ना तरंग, ना सुख है ना दुःख और ना ही जीते रहने की तमन्ना शेष रह गई है ! ऐसा क्यों है, क्या उसके सपनों ने दम तोड़ दिया है ?
क्या चीज़ होती है यह प्यार ? महज़ एक शरीर का दूसरे के शरीर के प्रति आकर्षण ? विपरीत सेक्स को भोग लेने के लिए मन में सुनियोजित रूप से उठा ज्वार- भाटा ? भावुक और संवेदनशील आदमी की भावनाओं का बहाव मात्र ? ....शायद यह सब कुछ अथवा इन सब को मिलाकर बनी हुई कोई अनमोल चीज़ या इनमें कुछ भी नहीं ! इन सवालों को सुलझाने के लिए विकल कई बार सोच सोच कर थक चुका है,उलझ चुका है, कइयों से पूछ चुका है लेकिन उसकी सारी सोच, सारे प्रयत्न अब तक व्यर्थ ही गए हैं ..आकाश में तीर मारने जैसा।
उसकी चढ़ती हुई उम्र थी, मन में उमंगों की तरंगें लालायित थीं। उस एक नाम के आगे पीछे लगातार धड़कती रहती थी उसके दिल की धड़कन। उससे जुड़ने के लिए उसने नए साल पर एक शुभकामना संदेश का खूबसूरत सा कार्ड उसके नाम यूनिवर्सिटी के ही पते से पोस्ट कर दिया था। वह उसे मिल भी गया था क्योंकि अब उसकी नजरें भी विकल से टकराने लगी थीं। अब इसके बाद विकल ने कोशिश शुरू की उसके घर तक पहुँचाने की ...युनिवर्सिटी में उन दिनों लड़कियों को अलग से पढ़ाया जाता था और उन्हें घर से सुरक्षा पूर्वक ले आने और ले जाने की ज़िम्मेदारी भी उसी की होती थी। ऐसे में विकल ने साइकिल की पैडल मार - मार कर अगर उसके घर का ठिकाना भी ढूँढ़ लिया तो उसे सफल आशिक का खिताब उसके मित्रों ने दे डाला था। किन्तु इससे आगे ...एक शब्दहीन संवादहीन प्रेम कथा की शुरुआत .. बस ! ये वे दिन थे जब लड़कियों का दुपट्टा खींच कर भागने वाले को ही बलात्कारी मान लिया जाता था। पार्क में या झुरमुटों में किसिंग - टचिंग के लिए तो गुंजाईश ही नहीं थी ! पूरा ग्रेजुएशन इस रोमानी प्यार में विकल गुजार रहा था।
साहित्य से विकल का जुड़ाव शुरू से ही रहा था। इन दिनों उसके साहित्य में प्रेम तत्व हावी हो गया था। अब तो वह प्रेम कथाएँ ही नहीं प्रेम में पगी शायरी भी करने लगा था। उसके परिजनों का सपना था कि बेटा अपनी ननिहाल की तरह प्रशासनिक सेवाओं में जाए। किसी ने सुझाया कि ' ला ' की पढ़ाई कर लो, ज्यूडिशियरी में बहुत स्कोप है। विकल चाहता था कि वह हिन्दी से एम्.ए. और फिर पी..एच.डी.करके साहित्य जगत में नाम कमाये। लेकिन हुआ वही जो उसके अभिभावकों ने चाहा। उन दिनों में यह भारतीय समाज की विडम्बना ही हुआ करती थी कि परिजन अपनी पसंद या नापसंद अपनी औलाद पर लाद दिया करते थे ..। विकल अब ' ला ' की पढ़ाई कर रहा था। .....और उसका वह पहला प्यार ?...थैंक गाड ! बी.ए. करने के बाद उस प्लेटोनिक प्यार का बुखार विकल के ऊपर से उतर चुका था। एल.एल.बी.करते हुए उसका साहित्य लेखन शीर्ष पर जा पहुंचा था। उसने सोच लिया था कि भले ही परिजनों के दबाव में उसने ' ला ' की पढ़ाई चुन ली है लेकिन वह काला कोट तो कभी भी नहीं पहनेगा। काला कोट ..जिससे उसे जाने क्यों चिढ़ थी!
उन्हीं दिनों देश के प्रतिष्ठित एक समाचार पत्र समूह ने ट्रेनी जर्नलिस्ट की जगहें निकाली और उसने उसके लिए चोरी से अप्लाई कर दिया। बहुत साफ़ सुथरे चयन प्रक्रिया में उसके लेखन को ध्यान में रखते हुए उसका चयन भी हो गया। विकल ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर ट्रेनिंग के लिए मुम्बई जाने का दृढ निश्चय कर लिया। घर में काफी तूफ़ान उठा लेकिन विकल अपने निर्णय पर अडिग रहा।
नई नौकरी और इस नए शहर ने विकल के लिए आकर्षण के भी कई आयाम जुटा रखे थे। अच्छा वेतन , कम और मनोनुकूल काम, लेखन के लिए भरपूर समय और आगे के लिए सुख साधन की सम्पन्नता का आश्वासन ! शायद उसकी खुशियाँ अब एक एक कर सामने आ रही थीं। उसके पास पीछे मुड़कर देखने का समय नहीं था।
वर्षों बाद आज फिर उसी नदी की रेतीली सतह पर उँगलियों से कलम का काम लेते हुए विकल ने तीन नाम लिखे थे - तीनों उसकी ज़िंदगी की कोमल भावनाओं से जुड़े और जुड़कर बिखर गए थे .....कुछ संयोग ही ऐसा था विकल के जीवन में इन तीन नामों के जुड़ने का और उन में धीरे धीरे विकल के आकंठ डूबते चले जाने का ..और फिर कहीं कुछ नहीं पाने का ! बी.ए. की पढ़ाई के दौरान उसका कच्चा प्यार था तो मुम्बई की ट्रेनिंग के दौरान उसके जीवन में आई युवती के लिए ' टाइम पास ' जैसा। दोनों साथ - साथ ट्रेनिंग कर रहे थे और बहुत तेज़ी से एक दूसरे के करीब आ गए थे। दोनों वर्किंग हास्टल में रहते थे और इतवार की छुट्टियां समुन्दर के किनारे बिताते थे। विकल अन्दर से गम्भीर था और उसे अपनी जीवन संगिनी बनाने को बेताब भी। लेकिन उस युवती की मंशा विकल के पैसों पर मुम्बई की लाइफ इंज्वाय करते रहना था। आखिरकार एक दिन इस बात का एहसास विकल को हो भी गया।
विकल अब ज़िंदगी के यथार्थ के थपेड़े खा रहा था। उसे लगने लगा था कि चारों और वही लोग सफल हो रहे हैं जो प्रक्टिकल हैं। समय के हर बदलते रंग में अपना चोला बदल लेने में एक्सपर्ट भी हैं। ऑफिस हो या इश्क यहाँ भावनाओं का कोई मोल नहीं। ......क्योंकि भावनाएं खयाली पुलाव तो पका सकती हैं ,जीवन की समस्याओं से ध्यान हटा सकती हैं .....लेकिन दो जून की रोटी मुहैय्या नहीं करा सकती हैं। जीवन में स्थिरता नहीं ला सकती हैं। इधर - उधर बिखरा , उच्च से उच्च ज्ञान बांटने वाला साहित्य भी झूठ है प्रपंच है। ..हाँ हाँ युवाओं को जमीनी हकीक़त से छले जाने का साध्य मात्र ! उसे जीवन के तीस साल में ही यह लगने लगा कि व्यक्ति को व्यावसायिक बुद्धि और विवेक रखना चाहिए ..प्यार ..जन्म जन्मान्तर के बंधन जैसे शब्द धोखा हैं, छलावा हैं। अपनी जरूरतों के लिए लोग प्यार का व्यापार करने लगे हैं। ..लेकिन क्या विकल अपने आपको इस अनुरूप बदल पायेगा ?
समय अपने पंख लगाकर उड़ता जा रहा था। विकल अब एक शहर में उस समाचार पत्र समूह का यूनिट हेड है। उसका अपना सोशल स्टेटस है। वह हाई सोसाइटी में मूव करता है लेकिन पर्सनल और सोशल डिस्टेटिंग के साथ ...किसी को दिल के पास तक नहीं पहुँचने देता है। उसने आजीवन अविवाहित रहने का फैसला कर लिया है। उसके लिए सेक्स एक शारीरिक आवश्यकता मात्र है जिसकी पूर्ति होना कठिन नहीं है। शायद इसीलिए वह अब यह महसूस करने लगा है कि वह अकेला था, अकेला है और आगे भी अकेला ही रहेगा। यह उसकी अपनी सोच है, आप उससे इत्तेफ़ाक रखिये या नहीं !