Pratik Prabhakar

Abstract

5.0  

Pratik Prabhakar

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क्या ऐसे होते बेटे?

क्या ऐसे होते बेटे?

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बात तीन वर्ष पहले की है, मैं हाजीपुर से पटना आ रहा था।पटना पहुँचने के बाद मुझे गायघाट में सीढ़ियों से नीचे उतरना होता था। 


मैं सीढ़ियों से नीचे उतरता हुआ लोगों को देखने लगा। एक महिला अपने बच्चे को गोद में उठाये और एक हाँथ से भारी बैग लिए नीचे उतर रही थी। एक युवक अपनी वृद्ध माँ को सहारा दिए ऊपर ले रहा था। ये सभी दृश्य हमारे द्वारा देखी जाने वाली आम घटना थी।


एक दृश्य काफी दर्शनीय था। एक आदमी पूर्णतया सफ़ेद बालों वाली वृद्ध महिला को गोद में लिए ऊपर आ रहा था। मैंने सोंचा शायद वो चलने में असमर्थ होंगीं।परन्तु, चौताल पर आकर उस व्यक्ति ने महिला को नीचे बिठा दिया और हाँथ में कटोरा थमा कर भीड़ में गुम हो गया। कदाचित वो कटोरा भीख मांगने के लिए दिया गया था और वो आदमी उस वृद्ध महिला का बेटा रहा हो।


मैं ये सब देख कर ठिठक गया और सोंचने लगा क्या ऐसे ही होते है बेटे जिनके लिए माँ अपने जीवन का पल पल क्षण क्षण ताप देती हैं।


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