खेल-खेल में "
खेल-खेल में "
हमारे गाँव में सिनेमा घरों का चलन नहीं था। मेले में बचपन में देखी शोले का बहुत असर था। बचपन में चोर सिपाही का खेल भी अब डाकू गब्बर सिंह बनकर बच्चों को कभी गौर से उनके खेल देखती हूँ तो उनका भी " डाकू गब्बर सिंह" होता है। उसमें CID ज़रूर मिक्स कर देते हैं ।
प्रधुम्न एसपी साहब की जांच एक डाक्टर साहब की लेब से शुरू होती है बाकी टीम कहती है अरे हमें तो "डाका डालते हुए एक जय और वीरू की जोड़ी बनानी पड़ेगी पर सीआईडी की अलग ही "दारा और साक्षी सबसे बड़े बच्चे ही फैसला करते हैं।
डाकू डाका डालने वाला है सब घात लगाकर बैठते हैं गब्बर सिंह झूठमूठ के घोड़े पर टीबाक टीबाक करता हुआ आता है और बड़े स्टाइल में कहता है अरे ओ सांभा कितने आदमी थे। प्रधुम्न एसपी की टीम में एक एक्साइटेड बच्चा भी रहता है। झट कूद कर सामने आ जाता है ।
हैन्डसअप तुम सब को सीआईडी ने घेर लिया है डाकू भागने लगते हैं झूठमूठ की गोली चलाते हैं प्रधुम्न एसपी अपनी ही अदा से कहते दारा इन सबको पूछताछ के लिए ले चलो ।
अब रोल होता है सांइसटिक डाक्टर और उसकी असिस्टेंट का वो डाकूओं ने लूटपाट की है वहाँ से साक्ष्य उठाते हैं और जो गोली से मरे है उनके सेम्पल लेतें है।
घटना स्थल का बारीकियों से मुआयना किया जाता है। फिर प्रधुम्न एसपी बना बच्चा एक निष्कर्ष पर पहुँचता है। दार्शनिकता से बताता है दारा ऐसा लूट का प्लान बनाया है डाकू गब्बर सिंह ने आखिर में प्रधुम्न एसपी हल कर देते है लूट का केस।
कॉलोनी के बच्चे सच में टीवी पर देखा हुआ सीआईडी और डाकू गब्बर सिंह के खेल को एक नये अंदाज़ में ही खेलते हैं। बच्चों को बड़ों की नक़ल बख़ूबी आती है।