खैरात

खैरात

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" आ गईअंदर जा के देख , इस घर में तुम्हारे भरोसे अब कोई नहीं है।" बरामदे पर खड़े बाल्टी और झाड़ू ने जोर- जोर से ठहाके लगते हुए कहा।"

" अरेजाओ, इस गीदड़ भभकियों से मैं नहीं डरती ! महारानी हूँहाँ ! हट रास्ते से ,अंदर जाने दे।"

"हाँ, शौक से जा।"

“ ओमहारानीनींद खुल गई तेरी ?

"हें हें हेंमेमसाब।"

" आ इधर। ले महीने भर की पगार और दफा हो जा यहाँ से।

” मेमसाब, इतना नाराज मत होइए ! छोटका बेटा को तेज बुखार था हस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। इसलिए दस दिनों से काम करने नहीं आ रही थी।"

“ कभी, तेरा बच्चा बीमार ? तो कभी पति ? सुनते-सुनते तंग आ गई हूँ अब। अरे तबियत खराब थी तो तीन दिन बैठती ? दस दिन बैठ गई !

हमेशा की आदत है तुम्हारी, दो दिनों की छूट्टी मांगती है और दस दिन बैठे जाती !

बता , दस दिनों के कितने पैसे हुए ? नौकरी नौकरी होती है। चाहे घर की हो वा ऑफिस की। बता, पगार में से पैसे काट लूँ ?"

“मेमसाब,मुझसे गलती हो गई। इस तरह पेट पर लात मत मारिये ! ”

" छः महीने से यही रवैया देख रही हूँ। तू नागा कर और मैं पैसे लूटाती रहूँ ! मुझे भी कोई फोकट के पैसे नहीं आते !

आफिस में दिन-रात खटती हूँ तभी पैसा घर लाती हूँ। बता, ऐसा कब तक चलेगा ? असल में तुझे खैरात खाने की लत जो पड़ गई है। चल, आखिरी बार माफ किया। आगे से बर्दाश्त नहीं करूंगी।"

सुनते ही, महारानी की आँखें खुली की खुली रह गई। जैसे, उसे कहीं से खतरे की घंटी की सुनाई पड़़ रही हो।

टिप्पणी-- आजकल , अधिकांश मेड का सब जगह यही हाल हो गया है। बिना बताए बहुत दिनों के लिए नागा मार लेती है। मुफ्त के पैसे खाने की उसे लत पड़ गयी है और इसे वह अपना अधिकार समझने लग जाती है। जो बहुत गलत है। गरीब है, यह कहकर नाजायज फायदा उठाये, ये तो सही बात नहीं है।इसी बात को ध्यान में रखकर मैंने यह कथा लिखी है।


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