कहानी कहती बातें....
कहानी कहती बातें....
"आपने फ़ोन बंद नही किया?"
बात ख़त्म होने के बाद दूसरी तरफ से खनकती सी आवाज़ ने कहा।"हाँ, हाँ, अच्छा...अच्छा...मुझे फ़ोन बंद करना था...." उसके मुहँ से बेसाख्ता से निकल गया।उसे बेहद अचरज हुआ।एक बेहद मामूली बात से शुरू हुयी वह बात क्या अब मामूली रह गयी थी?
उसके मन से नही में जवाब आया।
क्योंकि यह मामूली बात बेहद खास बन गयी....
फिर क्या...
मोबाइल को हाथ मे लेकर उलटते पलटते आख़िरकार उसने वह फ़ोन नंबर सेव कर लिया।यह पहली बार हुआ था। उसके जैसे एक नामी राइटर को यह सब अजीब लग रहा था।
एनी वेज़ कहते हुए वह फिर अपने कलम और कागज़ की दुनिया मे खो गया।आज उसे अपनी इस कहानी को पूरा करना ही था।
कुछ दिन बाद वह एक नयी कविता लिखने में मसरूफ़ था कि फ़ोन की घंटी सुनायी दी।अरे,यह तो वही मोहतरमा का फ़ोन है कहते हुए उसकी आँखों में एकबारगी चमक सी आ गयी।आवाज़ में मिठास घोलते हुए उसने हैलो कहा।उधर दूसरी ओर से फिर से वही खनकती सी आवाज़ आयी। आज वह उसकी नयी कहानी के बारें में बात करना चाह रही थी।
बातों से बातें बढ़ने लगी....फ़ोन बंद करने के बाद उसे अहसास हो गया कि वह कविता जो वह लिख रहा था अब उसके सारे अल्फ़ाज़ गड्डमगड्ड हो गये।
शायद आज ऐसे ही कोई नयी कहानी की शुरुआत हो गयी।उन दोनों की नयी कहानी....उस अनदेखे चेहरे से बातों की कहानी...उस अनजाने चेहरे से जैसे उसे प्यार हो गया....
प्यार के लिए क्या कुछ खास चाहिए होता है?नही....प्यार तो प्यार होता है....
प्यार....
एक लफ़्ज़ जो जिंदगी में बहार लाता है....वह अपनी नयी कहानी लिखने में मशगुल हो गया....
क्योंकि उसे एक नया टॉपिक मिल गया था...

