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Rajit ram Ranjan

Abstract Children Stories

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Rajit ram Ranjan

Abstract Children Stories

कहाँ गया वो बचपना... !

कहाँ गया वो बचपना... !

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कहाँ गया वो बचपना 

ज़ब कड़ी धूप में,

घर की गली मिट्टी में 

खेला करते थे...!


कहाँ गया वो बचपना 

ज़ब छोटी सी बात पर 

नाराज़ हो जाते, 

माँ आके गोदी में उठाकर मनाती 

लोरी सुनती थी...!


कहाँ गया वो बचपना 

ज़ब बारिश का पानी 

बगीचे में भर जाता था, 

औऱ हम कागज की कश्ती (नाव) बनाकर 

उसमें भगाते थे...!


कहाँ गया वो बचपना 

ज़ब हम एक दूसरे से, 

गुस्सा करके अलग हो जाते, 

औऱ सुबह होते ही 

सब भूल जाते 

थे...!


कहाँ गया वो बचपना 

इस जिंदगी की दौड़ में, 

हर गली,चौराहा,क़स्बा शहर में 

तब्दील होता नजर 

आता हैं...!


कहाँ गया वो बचपना 

ज़ब कही भी सो लेते थे, 

अब तो बढ़ते शहर में 

2bhk में भी बॅटवारे 

नजर आते हैं...!


कहाँ गया वो बचपना 

ज़ब माँ मेरे लिये, 

पड़ोसियों से भी 

लड़ जाती थी...!


कहाँ गया वो बचपना 

ज़ब स्कूल में 

गलती करने पर भी 

टीचर माफ किया 

करती थी...!



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