वो बस स्टैंड वाली लड़की
वो बस स्टैंड वाली लड़की
रोज-रोज वो मुझे दिख जाती थी, दिल की मुरझाई कली मानो जैसे खिल जाती थी। मन ही मन बड़ी प्रसन्नता होती थी, मानो जैसे ख़ुशियों के बादल बरस जाते थे। मेरी बेचैनी, उदासी, परेशानी भीगकर गीली हो जाती थी। वो बस स्टैंड वाली लड़की बहुत याद आती थी...!
रोज-रोज उसका नजरें उठाकर देखना, फिर शर्मा कर पलकें झुकाना...हाथों की अंगुलीयों को दांतो तले दबाना, झटक कर जुल्फें सवारना। फिर हल्का सा होठों का मुस्कराना...दुपट्टे से मुँह का पसीना पोंछने के बहाने, तिरछी नज़रों से मेरी तरफ देखना। फिर लज्जा से वो सिमट जाती थी, उसकी खामोशी आज भी मुझे बेचैन कर जाती थी, वो बस स्टैंड वाली लड़की बहुत याद आती थी।
एक दिन मैंने प्लान कर लिया था, की आज उससे कह ही देता हूँ, की आपको पसंद करता हूँ। फ्रेंडशिप करना चाहता हूँ। रात भर हिम्मत जुटाने के बाद
मैं पूरी तैयारी के साथ, सुबह नहा धोकर, अपनी फेवरेट कलर वाली ब्लू शर्ट और ग्रे पैंट पहनकर, टाइम से दस मिनट पहले ही बस स्टैंड पहुंच गया।
फिर एक-एक सेकंड इंतज़ार करना बहुत भारी लग रहा था, बार-बार मैं घड़ी के काँटों को देखता फिर बस आने की तरफ वाले रास्ते को देखता।
ये देखा देखी मुझे अंदर ही अंदर घुटन करने लगी थी, ऐसा लगने लगा था, की कितने वर्षों हो गए, उसकी झलक देखे बिना। अब तो पक्का हो गया था, कि मैं उसके प्यार में पड़ गया था, उसके होठों कि मुस्कान, मेरी हिम्मत बढ़ाती थी। वो बस स्टैंड वाली लड़की बहुत याद आती थी।
लम्बे इंतज़ार के बाद मुझे कूल वाटर परफ्यूम कि खुशबू आयी और मेरे मन को ठंडक पहुंचाने लगी, क्योंकि उसका फेवरेट परफ्यूम था ये, फिर बिना सोचे समझे मैं पीछे पलट गया, और देखा तो वही मोहतरमा हाथों में गुलाब लिये मेरी ही तरफ बढ़ी आ रही थी। मुझे तो होश ही नहीं रहा, मैं मदहोशी में पूरी तरह खो चुका था, वो मेरे पास आयी,और आवाज़ लगाई, हैल्लो.... हा.... हाजी... सुनते... हो...उसके मीठे ये पांच शब्द जब मेरे कानों में पहुँचे तो मुझे,
फिर ऐसा लगा कि परी मेरे सामने खड़ी है। और मैं जन्नत में हूँ, जब दादी-नानी हमें कहानियाँ सुनाती थी, जन्नत कि परी का तो बहुत अच्छा लगता था। कुछ वैसी ही फिलिंग मुझे आज भी हो रही थी, उसने बोला "काफ़ी पीने चले," मेरे तो सारे शब्द ही छीन गए थे, मैं कुछ बोल ही नहीं पाया। बस आँखों से इशारा कर दिया कि चलो चलते हैं, स्टैंड के सामने ही एक फाइव स्टार काफ़ी शॉप था। हम दोनों भूल गए कि आज हमें कॉलेज भी जाना हैं, उसने बोला "आप क्या लोगे" अभी भी मैं होश में नहीं था, जन्नत का ख्याल मेरे मन से निकल ही नहीं रह था। फिर उसने बोला "काफ़ी चलेगा" एक बार फिर आँखों के इशारे से मैंने हाँ बोल दिया। हम दोनों काफ़ी पीते-पीते फिर काफ़ी सारी बातें कि, और उसने गुलाब देकर मुझे प्रपोज किया। मैंने भी झट से उसका प्यार स्वीकार कर लिया। हम एक दूसरे का फ़ोन नंबर भी ले लिये, शाम के चार बज गए,क्लास भी इसी टाइम को ख़त्म होती थी। फिर जल्दी-जल्दी में हम दोनों
घर चल दिए। रास्ते में ही मैं सात बार उसे कॉल कर चुका था, मगर उसका फ़ोन बस कि भीड़ में साइलेंट हो गया था। जैसे ही वह घर पहुंची घबरा गई,
तुरंत मुझे कॉल किया बोली "आपने सात बार कॉल किया था, सॉरी यार मैं सुन नहीं पायी..." उसके मुँह से सॉरी सुनकर मुझे बहुत अजीब सा लगा।
मैंने बोला "इट्स ओके नो प्रॉब्लम बस ऐसे ही कॉल किया था। "
हमारे प्यार के किस्से हर गली मोहल्ले में चलने लगे थे, जब उसके घर वालों को पता चला तो उसके घर वाले बिना उसकी मर्ज़ी के उसकी शादी कहीं और कर दिए, वो किसी और कि भले ही हो गई, थी। किसी से दोस्ती है तो शादी भी हो ऐसा कुछ ज़रुरी नहीं, मगर दोस्त बनकर हम पूरी जिंदगी तो रहा सकते है। बीती बातें याद करके मेरी आँखें भर आती थी, उसके होठों कि मुस्कान आज भी मुझे ख़ुशियाँ दे जाती थी। वो बस स्टैंड वाली लड़की बहुत याद आती थी।

