सात जन्मों की झूठी कसमें
सात जन्मों की झूठी कसमें
याद हैं मुझे वो कॉलेज वाले दिन
ज़ब दुपट्टे में छिपाकर तू
पहली दफा मुझे ख़त देने आई थी
तुम्हारी नजरें झुकी-झुकी थी
होठों पे एक मायूशी थी
डगमगा रहे थे पैर,
डर के मारे
पर इश्क़ का जूनून था
की कुछ समझ ही नहीं आ रहा था
डर तो मैं भी रहा था
पर जता नहीं रहा था
पहली बार किसी ने डायरेक्ट
प्रपोज़ किया था
हिम्मत जुटाके मैंने।
ख़त तो ले लिया
मगर कुछ बोल नहीं पाया
दिल में उस अज़नबी चेहरे से
बात करने की
बहुत इच्छा हो रही थी।
मगर लव्ज़ मेरे साथ नहीं दे रहे थे
अंदर ही अंदर बड़ी बेचैनी,
घुटन सी हो रही थी
फिर एक छोटा सा शब्द,
हाथ आगे बढाके मैं उससे बोला
हाय औऱ हाथ मिलाया।
उसके भी होंठ धीरे से
मीठे से शब्द बोले
"हेलो" हम कितने वर्षो से
एक दूसरे को देखते थे
मगर बोलने की हिम्मत आज आई
फिर हमने जान-पहचान
बातों ही बातों में
बढ़ाने लगे।
देखते-देखते हमारी चुप्पी टूट गई
हम आपस में ढेर सारी बातें करने लगे
उसे म्यूजिक पसंद थी औऱ मुझे भी
वो फ़िल्में बहुत देखती,
काफ़ी बातें करती थी औऱ मैं भी
काफ़ी कुछ हम दोनों में कॉमन था।
हम कमेस्ट्री के सब्जेक्ट का
पूरा टाइम सैटरडे वाला
अपनी कमेस्ट्री बनाने में लगा देते थे
हम एक दूसरे का कांटेक्ट नंबर ले लिए
साथ ही साथ हम फेसबुक, ट्विटर,
इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, स्नैपचैट,
व्हाट्सप्प हर एक सोशल साइट पर
फ्रेंडशिप भी बन गये थे।
पब पार्टी से लेकर, फ्रेंड्स की
मोम -डैड की एनिवर्सरी पार्टी भी
हम दोनों एक साथ ज्वाइन करते थे
उसके घर वाले भी शिक्षित थे,
उन्हें भी हम दोनों का साथ रहना अच्छा लगता था
आगे हम दोनों ने
(लिव-इन-रेअलिशनशिप) में
रहने का विचार किये।
पहले काफ़ी दिनों तक तो
सब अच्छा ही चल रहा था
मगर अचानक से हम दोनों में तू, तू, मैं, मैं
होने लगा
हर रिजल्ट दिमाग़ की दही होता था
हम साथ में रहने लगे तो सारे प्यार का भरता बन गया
प्यार का गला घुट गया
हर रोज हम आपस में लड़ते-झड़ते थे !
फिर क्या हुआ,आखिऱ क्या होने वाला था,
वही जो हमें औऱ पहले कर लेना चाहिए था
हमने ब्रेकअप कर लिया
औऱ अलग हो गये
दोस्तों किसी के साथ सात महीने
एक साथ गुजार कर देखो
फिर सात जन्मों की झूठी कसमे खाना !
