खामोश बहादुर
खामोश बहादुर
गांव की शुद्ध हवा में जाने कौन जहर फैला दिया । हर किसी पर शक की सुई थी । रोजगार से छिटके दर्जन भर कामगारों से लेकर निमंत्रण में पहुंचे रिश्ते नातेदारों तक । कुछ लोग तो गांव की सड़क निर्माण का मुआयना करने आये इंजीनियर और ठेकेदार पर भी उंगली उठा रहे थे । वह घुसपैठिया कोई भी हो मगर साहूकार के आकास्मिक निधन से पूरा गांव दुखी था । आँखों से बहते आँसू जब नाक के रास्ते बहने लगे तब भी किसी ने ध्यान नही दिया था मगर जैसे ही दर्जन भर ग्रामीणों की देह गरम हुई, गांव की पंचायत में गर्मागर्म बहस छिड़ गई ।
बहस कोई समुद्र मंथन तो है नहीं जो उससे कुछ निकले । बेनतीजा चिल्लपों के बाद सब अपने घर लौट आए मगर गांव की उस बातूनी महाभारत का जाने कौन भेदी बन गया जो अगले ही दिन स्वास्थ्य कार्यकर्ता एक छोटी सी सफेद रंग की बंदूक लेकर घर घर जाकर सबके माथे पर दताने लगी । देखते ही देखते गांव भर में महामारी का हल्ला मच गया । स्वास्थ्य कार्यकर्ता की हिदायत थी कि कोई अपने घर से बाहर न निकले और अन्य लोगों से न मिलें जुलें । मगर मजाल है गांव वाले उनकी बातों पर कान धर लें ।
एक दूसरे से बिना मिले खाना ही नही पचता । लोग मिले तो कानाफूसी हुई । बीमारी गांव में लेकर आया कौन इस प्रश्न पर सभी सीआईडी सीरियल की तरह एक दूसरे पर शक करने लगे । जवाब तो किसी के पास था नही । एक दिन बीता नहीं कि किसी ने अफवाह फैला दिया कि गांव के देवता नाराज हैं, बड़ी सी पूजा की तैयारी होने लगी तभी छियान्बे साल के भूधर बाबा परलोक सिधार गये ।
एक बार फिर किसी घर के भेदी के कारण पुलिस की सौ नम्बर वाली गाड़ी गांव पहुंची और डंडा घुमा घुमा कर वर्दी वाले समझाये कि न गांव से कोई बाहर जायेगा न कोई गांव के अंदर आयेगा । उनके सामने सभी हाँ हाँ कहते हुए सिर हिलाए और जैसे ही पुलिस की गाड़ी गांव के बाहर बने नदी के पुल को पार की, सभी लोग फिर नई चर्चा में जुट गये । उस बेतुकी चर्चा में हर घर का कोई न कोई नुमाइन्दा नजर आ रहा था, गायब था तो केवल बहादुर ।
बहादुर के बारे में लोग एक दूसरे से पूंछतांछ किये मगर जब उसके बारे में कोई ठोस जानकारी न मिली तो उसे तलाशने का काम युद्ध स्तर पर चालू हुआ । पूरा गांव छान मारने के बाद भी उसका कुछ पता नही चला । जब भूधर बाबा के परिवार के लोग नदी नहाने जा रहे थे तभी किसी की नजर शमशान में बैठे एक शख्स पर पड़ी । वह बहादुर ही था ।
एकदम खामोश, जली हुई चिता के राख को एकटक निहारते हुए बहादुर से गांव वाले सवाल जवाब कर रहे थे मगर वह कोई प्रतिक्रिया नही दे रहा था । कुछ बुजुर्गों ने कहा कि वह भूत व्याधि से ग्रस्त हो गया है, झाड़ फूंक करानी पड़ेगी । मगर उस नौटंकी के बाद भी बहादुर चुप्पी साधे रहा । शहर के काॅलेज में पढ़ने वाला एक नौजवान बोला कि गांव के बुजुर्ग की मौत से उसका दिमाग सटक गया होगा, किसी दिमाग के डाॅक्टर को दिखाना पड़ेगा । इस तरह जितने लोग उतनी सलाह मुफ्त में मिलती रही पर न किसी पर ठीक से अमल हुआ न बहादुर का मुँह खुला ।
वैसे दिन में दो बार बहादुर का मुँह खुलता, मगर खाने के लिए । वह गांव वालों को टुकुर टुकुर निहारता मगर किसी सवाल का जवाब न दे पाता । बहादुर अपने नाम के विपरीत डरा सहमा नजर आने लगा था । कुछ दिन बीते, इस दरम्यान लोग बीमार तो पड़े मगर गनीमत रही किसी की जान नही गई । एक दिन गांव में एक और गाड़ी प्रवेश की, उसमें वैक्सीन लगवाने के लिए मुनादी की जा रही थी । गांव वालों की पंचायत फिर बैठी । टीवी डिबेट की तरह बहस हुई, नतीजा सिफर ।
दो दिन बाद दो स्वास्थ्य कार्यकर्ता गांव पहुंचे और वैक्सीन लगवाने के फायदे बताये । उनके समझाने से सभी वैक्सीन लगवाने के लिए राजी हो गये और अगले दिन टीकाकरण केन्द्र आने का आश्वासन दिये । स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पीठ फेरते ही हमेशा की तरह गांव के लोग तर्क विर्तक करने लगे । पहला टीका लगवाये कौन इस पर खूब विचार मंथन हुआ । आखिर में ऐसे शख्स के नाम पर सभी सहमत दिखे जो वैक्सीन के लिए न 'हाँ' कह सकता था और न 'ना' । वह शख्स था खामोश बहादुर ।
अगले दिन उसे कुछ गांव वाले टीकाकरण केन्द्र लेकर गये । उसका पंजीयन कर उसे वैक्सीन लगाने के लिए टेबिल पर बैठाया गया । एक सहयोगी उसकी बांह खोला, नर्स सिरिंज भरी और उसकी बांह में चुभोई । बहादुर जोर से चिल्लाया - "ऊई ....ई ....ई ।"
नर्स मुस्कुराकर बोली - "इतना भी नही चुभता जितना चीख रहे हो, लो वैक्सीन लग गई ।"
बहादुर के चेहरे की रंगत बदल गई । वह खुश नजर आने लगा । बाहर निकल कर वह गांव वालों से मुस्कुराते हुए बोला - "अब कोई खतरा नही, वैक्सीन लग गई ।"
बहादुर को अचानक से बोलता देख गांव वाले हैरान रह गये । वे वैक्सीन के चमत्कार से हैरान थे । उस दिन उसे लेकर आये ग्रामीणों ने भी वैक्सीन लगवाया । उनकी वापसी के अगले दिन से उस टीकाकरण केन्द्र में अन्य ग्रामीण भी कतार में नजर आने लगे ।
