खाली कोना मन का
खाली कोना मन का
सुनिधि रोज शाम चार बजे फोन पर माँ के हालचाल लेती है।यह उसकी दिनचर्या में शामिल है।आज भी काम खत्म करके उसने माँ से बात की।फोन रखते हुए माँ ने पूछा "विधि के लिए रोहन कैसा रहेगा, उससे शादी की बात चलाने के लिए सोच रही हूँ।"
"माँ आप जैसा समझो ,इतना ही बोल पाई थी वह।"
फोन रखने के बाद उसके मन में एक झंझावात सा आ गया।मेरे समय माँ को क्या हो गया था?ये वही रोहन है, उसके बचपन का दोस्त।साथ खेले,पढ़े और न जाने कब उनके मन में प्रेम का पौधा अंकुरित हुआ उन्हें खुद ही पता नहीं चला।उसे आज भी याद है वो दिन जब उसने माँ से बताया था कि वह रोहन को पसंद करती है, उसे जीवनसाथी बनाना चाहती है।
माँ ने तूफान खड़ा कर दिया था।तेरा दिमाग खराब है क्या?लोग क्या कहेंगे तीन बेटियाँ हैं तो ऐसे ही फेंकने लगे।उसकी हैसियत ही क्या है?कभी सोचा है छोटे- भाई -बहनों का क्या होगा।और हद तो तब हो गई जब माँ ने कहा यदि मनमानी करनी है तो हमें जहर दे दे।
वो स्तब्ध खड़ी थी।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, ये वही माँ है जो रोहन का गुणगान करते थकती नहीं थीं।
उस दिन के बाद उसने मौन धारण कर लिया था बस जितना पूछा जाता उतना ही बताना ,उसकी सारी शिकायत ईश्वर से ही थी।एक साल बाद उसकी शादी माता -पिता द्वारा पसन्द किये रिश्ते से कर दी गई।उसने किस्मत का लिखा मानकर स्वयं को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लिया।कभी रोहन का नाम जुबान पर नहीं आया,पर आज माँ को वही रोहन बहन के लिए एक अच्छा वर समझ आ रहा है क्योंकि वह एक उच्च अधिकारी बन गया है।
वो कभी किसी को बता ही नहीं पाई कि सारी सुख- सुविधाएँ तथा सम्पन्नता होने के बाद भी मन का एक कोना सदा खाली रहा।न जाने क्यों उसकी आँखें नम हो गईं।
