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Laxmi Yadav

Inspirational

4  

Laxmi Yadav

Inspirational

केक्ट्स के फूल

केक्ट्स के फूल

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श्लोक व खुशी दोनों पति पत्नी क्लिनिक से आकर चिंतित बैठे थे। श्लोक की दादी गंभीर व सख़्त भाव लिए बैठी थी। सोफे पर खुशी के पिताजी सोमेश् जी भी विवश बैठे है। अपने जिगर के टुकड़े के अंजान भविष्य के लिए परेशान व दुखी है। मेज पर रखी रिपोर्ट बता रही है कि खुशी कभी माँ नही बन सकती। पर दादी वंश बढ़ाने के लिए परपोते का मुँह देखकर स्वर्ग व मोक्ष प्राप्त करना चाहती है। अतः श्लोक के पुनर्विवाह के प्रस्ताव पर आड़ई हुई है। तीनों गाँव से आने वाली श्लोक की माँ वसुधा का इंतज़ार कर रहे है। इतने मे श्लोक की माँ वसुधा प्रवेश करती है। गाँव मे रहते हुए भी गरिमामय व प्रभाव शाली व्यक्तित्व है उनका। श्लोक खुशी दोनों पैर छूते है वसुधा भी अपने सास का पैर छूती है। थोड़ी बहुत बातचीत के दौरान सारी परिस्थिति समझकर वसुधा कहती है मै अपना निर्णय कल सुनाऊँगी। सोमेश् याचक का भाव लिए अपने घर चले जाते है। 


रात मे खाना खाने के बाद श्लोक और खुशी नीचे टहलने चले गए। वसुधा अपनी सास से कहती है कि सुना है माँ जी, आपकी बहन बेटे की चाह मे छट वी बेटी को जन्म देते ही गुजर गई। सोचिये, अगर वंश- बेल की बात ना होती तो आज आपकी बहन जिंदा होती। वैसे भी गाँव मे देवर जी के बेटे वेद को बलात्कार के जुर्म मे पुलिस पकड़कर ले गई। वो जेल मे है। घर का चिराग कितना रोशन कर रहा है। इसलिए माँजी वंश- बीज, खून का रिश्ता या खानदान ये सब शब्द खोखले है। कल मै जो भी फैसला लूंगी आप मेरा साथ दीजियेगा। 


इधर सोमेश् जी का दिल बैठा जा रहा है। इतने मे फोन की घंटी बजती है। फोन मे उधर से आवाज़ आती है' मै श्लोक की माँ बात कर रही हुँ। सोमेश् जी कहते है ' हा वसुधा जी बोलिए'। उधर से आवाज़ आती है ' मै वसुधा नही मृदुला हुँ। श्लोक मेरा दत्तक पुत्र है। सोमेश् जी के पैरों तले जमीन सरक गई। हाँ, वही मृदुला जिसे तुमने प्रेमविवाह करने के बावजूद अपने औलाद की लालसा मे ' बाँझ ' कहकर घर से निकाल दिया था। आज इतिहास दोहरा रहा है सोमेश्। फर्क सिर्फ इतना है उस वक्त तुम्हारी जगह मेरे पिताजी थे। और फैसला तुम्हारी माँ ने किया था। अब मेरी बारी है। सोमेश् जी पसीना पसीना हो गए। कहने लगे " प्लीज मेरे कर्मो की सजा मेरी बच्ची को,,,, उधर फोन कब का कट चुका था। 


दूसरे दिन सोमेश् जी एक अपराधी का भाव लिए अपनी बेटी के ससुराल पहुँचता है। नियति को ना जाने क्या मंजूर है? पर यह क्या, ख़ुशी का घर तो गुब्बारों और खिलौनों से सजा था। फूलों से पालना सजा था। पंडितजी नामकरण की तैयारी कर रहे थे। श्लोक व खुशी ने झुककर सोमेश् के पैर छूए। खुशी ने चहक कर कहा ' पापा हम दोनों ममी- पापा बन गए। ये रही हमारी परी। 


सोमेश् ने हाथ जोड़कर कृतज्ञ भाव से वसुधा के फैसले का स्वागत किया। मृदुला से वसुधा बनी मृदुला के चेहरे पर वही पुराने भाव थे ' काश सोमेश् आज से अठाईस साल पहले भी उस फैसले मे मेरा साथ दिया होता.........। 



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