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PANKAJ GUPTA

Drama Romance Fantasy

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PANKAJ GUPTA

Drama Romance Fantasy

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-4)

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-4)

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अगली सुबह प्रार्थना होने से पहले मेरी पेशी प्रिंसिपल सर के ऑफिस मे हुई। प्रिंसिपल सर बहुत कड़क स्वभाव के व्यक्ति थे। सब उनसे डरते थे और मैं भी।मेरे चेहरे की हवाईयां उड़ी हुई थी मेरे पास उनके प्रश्नों का कोई उत्तर नही था। सजा मिलनी तय थी। 

स्कूल ग्राउंड मे प्रार्थना होने के बाद सबके सामने राव सर ने मेरी दोनो हथेलियों की स्टिक से अच्छी खासी धुलाई हुई।

मेरी पिटाई करके उन्हें गर्व की अनुभूति हो रही थी जैसे लग रहा था उन्हें क्या मिल गया हो। आरती भी ये सब देख रही थी उसकी आँखें नम थी....लग रहा था जैसे वो बचाना चाहती हो लेकिन कुछ कर न पाई।

उस दिन से मेरी सीट भी बदल दी गई। बहुत बेइज़्ज़ती महूसस हुआ। 

अब मुझे डर सताने लगा की लगता है अब आरती से कभी बात नही हों पाएगी। बाकी पेपरों मे मेरा मन नही लगा। विभा मैम ने मेरा मनोबल बढ़ाने की कोशिश की और हमसे ये भी बोली

"कुछ jealous teacher भी है इस स्कूल मे। उनसे अच्छी चीज़ देखी नही जाती"

वार्षिक परीक्षा अब खत्म होने वाली थी।

अंतिम दिन हमने आरती को जब स्कूल वैन मे बैठते देखा। उसकी आँखें साफ साफ बता रही थी कि वो मुझसे कुछ कहना चाहती है ....लेकिन ना वो बात कर पाई ना मैं।

उस दिन घर पर मैं बहुत बेचैन था मेरा किसी काम मे मन नही लग रहा था लगता था मैंने अपना एक अमूल्य वस्तु खो दिया। उस उम्र मे खुद को समझाना बहुत मुश्किल था मुश्किल ही नही असंभव सा था। गर्मियों की छुट्टी बड़ी मुश्किल से कटी। 

धीरे धीरे हम सामान्य हो गये। लेकिन ईश्वर चाहते थे कि हम दुबारा मिले।

9वी मे मेरा प्रवेश उस हाईस्कूल मे हुआ जो आरती के घर से 500 मीटर की दूरी पर था। दोस्तो से पता चला कि आरती ने पुराने स्कूल को छोड़ दिया है और मेरे हाइस्कूल के सामने स्तिथ महिला विद्यालय मे प्रवेश ली है।

और अब मैं प्रार्थना करने लगा कि आरती मुझे कही दिख जाये ताकि मैं उससे बात कर सकू।

ईश्वर ने मुझे एक और मौका दे दिया। शायद वो भी नही चाहते थे की हम दूर हो...

"बिछड़ के तुझसे उंमिद है मिलने की

सुना है रूह को आना है धड़कन की तरफ"

 हम दोनों के स्कूल आमने सामने थे...एक सड़क के इस पार और दूसरा सड़क के उस पार.

लेकिन मेरे स्कूल और आरती के स्कूल की समय सारिणी मे अंतर था। मेरा हाईस्कूल सरकारी था और उसमे पढ़ाई भी नाम मात्र का ही होता था अतः स्कूल जाना भी बहुत कम होता था। पापा भी बोल रखे थे की कोचिंग पे ध्यान दिया करो स्कूल डेली जाके क्या करोगे पढ़ाई तो होती नही है इसीलिए स्कूल जाना कभी कभी ही हो पाता था.. इसीलिए आरती मिलेगी इसका भी chances बहुत कम था।लेकिन मैं भी स्कूल जाता था प्रार्थना करता था की आरती दिख जाये। 3 महीने तक तो वो दिखी ही नही

 फिर एक दिन आरती अपने स्कूल के सामने दिख ही गई। गुलाबी कलर की सलवार और सफेद रंग की समीज ड्रेस मे देखा था। वो सड़क के उस पार अपने स्कूल के सामने, अपने सहेलियों के बीच घिरी हुई थी। बाकी सारी सहेलिया उसके सामने फीकी लग रही थी। यदि वो अकेले रहती तो मैं उससे पक्का बात करता लेकिन इतने सहेलियों के बीच मैंने उससे बात करना उचित नही समझा। आरती हमको नही देख पाई और फिर वहा से चली गई शायद उसे पता भी नही था की मैं उसके सामने वाले स्कूल मे पढ़ता हूं। मैंने उसके घर के चक्कर भी दो बार लगाये लेकिन दिखी नही। बार बार चक्कर लगाना सम्भव नही था क्योंकि आरती का भाई बड़ा खतरनाक था। वो दबंग किस्म का लड़का था और अक्सर लड़को से मारपीट किया करता था।

उसके बाद आरती को हम ना 9में देख पाये ना ही 10 में। 10वी के बाद मैंने पालीटेक्निक में डिप्लोमा के लिए प्रवेश लिया। मैं घर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पालीटेक्निक कॉलेज मे प्रवेश लिया..और पढ़ाई मे व्यस्त हो गया...आरती मेरे जेहन से अब निकल चुकी थी।..धीरे धीरे डिप्लोमा के दो वर्ष भी पूरे हो गये और अब मैं डिप्लोमा तृतीय वर्ष (फाइनल वर्ष) मे था।

डिप्लोमा तृतीय वर्ष में मैंने प्रथम वर्ष एवम द्वितीय वर्ष के स्टूडेंट्स के लिए कोचिंग की शुरुआत की..चुकी मैं टॉपर भी था अतः अच्छे खासे स्टूडेंट्स मेरे कोचिंग में पढ़ने के लिए आने लगे

एक दिन मेरे मोबाइल पर एक लड़की का फोन आया

लड़की- "हैलो.."

मैं- हा कहिये। आप कौन??

लड़की- कोशिश करिये पहचानने की..आप पहचान जाएंगे

मैं- नही पहचान पा रहे आपको। नाम बताइये??

लड़की- छोड़िये जब आप पहचान ही नही रहे है तो क्या मतलब है बताने का। वैसे मुझे आपसे कोचिंग पढ़ना है

मैं- किस वर्ष मे हो?

लड़की- महिला पालीटेक्निक से है....प्रथम वर्ष।

मैं- ठीक है सुबह 7 बजे आओ कोचिंग पर।

लड़के-ओके सर।

फिर मुझे थोड़ा शक हुआ और मैंने वह नम्बर ट्रू कॉलर पे सर्च किया

आरती....

मैं बहुत खुश हुआ और मैंने तुरंत काल बैक किया

लड़की- क्या हुआ सर?

मैं-आरती...?

लड़की- कैसे पहचाने??

मैं- आरती चौबे न??

लड़की- जी..अब सही पहचाने।

मैं- wow..विश्वास नही हो रहा मुझे..

फिर फोन पर उससे लम्बी बात चित हुई

उसने बताया की जब वो 8वी मे थी तब वो मुझे रास्ते मे देखी थी साईकिल पे लेकिन वो पापा के साथ बाइक पे थी इसीलिए बात करने का कोई सवाल ही नही था और अभी वो डिप्लोमा प्रथम वर्ष मे प्रवेश ली है...

मैंने ईश्वर को पुनः धन्यवाद ज्ञापित किया।

उस दिन मैं बहुत खुश था। मेरे पाव जमीन पर नही पड़ रहे थे...आखिर करीब 5 साल बाद हम आरती से मिलने वाले थे।


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