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PANKAJ GUPTA

Drama Romance Fantasy

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PANKAJ GUPTA

Drama Romance Fantasy

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-3)

कच्ची उम्र का प्यार (भाग-3)

6 mins
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अब मैं 6वी की किताबे एकत्र करने मे जुट गया ताकि उन्हें पढ़ कर वार्षिक परीक्षा मे आरती की मदद अच्छे से कर सकू और उसे और अधिक इम्प्रेस कर सकू। मेरे पास 6वी की एक किताब भी नही थी क्योंकि वो सब मैं किसी जूनियर को दे चुका था। 

दोस्तो से किताबे मांगने में भी शर्म आ रही थी क्योकि वो सब समझ जाएंगे की इसे किताबे क्यों चाहिए और मेरा मजाक बनाएंगे। लेकिन फिर भी मैंने एक करीबी दोस्त से किताबे मांग ही ली। वो पहले खूब हसा लेकिन उसने 6वी की सारी किताबे मुझे दे दी और साथ ही मे एक शर्त भी रख दिया।

अब मैं वार्षिक परीक्षा की तैयारी करने लगा लेकिन 8वी कक्षा की नही, 6वी की। हम पहले से ज्यादा पढ़ने लगे मम्मी बहुत खुश थी आखिर उनका बेटा खूब मन से पढ़ रहा था लेकिन एक दिन मम्मी ने मुझे 6वी कक्षा की social science पढ़ते देख लिया। उन्होंने हमसे इस बारे मे पूछा तुम 8th मे हो वार्षिक परीक्षा है तो 6वी की किताबे क्यों पढ़ रहे हो। हमारे पास झूठ बोलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नही था हमने बोला मम्मी 6वी का सबकुछ भूल चुका हूं 8वी के परीक्षा मे इससे मदद मिलेगी इसीलिए इसको भी पढ़ रहा हूँ। मम्मी कुछ सोची फिर बोली ठीक है लेकिन8वी का भी अच्छे rivision कर लो। 

मम्मी- हमको तो तुम पर doubt हो रहा हौ। झूठ तो नही बोल रहे हो।

मैंने बड़ी से सफाई से झूठ बोला- नही मम्मी झूठ क्यो बोलूंगा आपसे

मम्मी- चलो ठीक है लेकिन 8वी का भी revision कर लो अच्छे से

मैं- जी मम्मी ठीक है

परीक्षा के एक दिन पहले मैं मम्मी पापा से छुप कर चुपके से आरती के लिए कागज पर 4 लाइने लिखी

"Dear Aarti, Since first day of my 8th class i have fallen in love with you. I like the way you smile. My heart leaps like a hummingbird in flight every time i see you. This is something i have never felt before and it is you that inspires it.

I love you truely, madly, deeply and i anxiously await your response."

ये सब लिखते समय मेरी धड़कन तेज चली थी। मैंने इसे लिखकर अपने बेड के नीचे छिपा दिया। अगले दिन सुबह स्कूल जाते समय मैंने वो कागज अपने पॉकेट मे रख लिया और स्कूल पहुँच गया। आरती अपने सीट पर बैठी हुई थी मैं भी उसके बगल मे अपने सीट पर बैठ गया।

मैंने उस पर ध्यान दिया तो उसके होठों पर हल्की मुस्कान थी। वो तो हमेशा के लिए खूबसूरत थी लेकिन आज उसमे अलग ही कशिश थी। गालों पर लटके रेशमी बाल जो उसके कानो से होते हुए होठों को छू रहे थे,उसकी खूबसूरती मे चार चाँद लगा रहे थे। ऊपर से उसकी कातिल मुस्कान सोने पे सुहागा जैसे था।

मेरी धड़कन तेज थी और शरीर मे अजीब सी सिहरन और मेरे रोंगटे तक खड़े हो चुके थे।मैंने उस दिन पहली बार उससे बात की। मैंने बड़ी हिम्मत से उससे बात शुरू करनी शुरू की।

मैं- लगता है पूरा पढ़ के आई हो

आरती- क्यों आप नही पढ़े हो ?

मैं- परीक्षा है तो पढ़ना ही पड़ेगा न। लेकिन तुम्हारी तरह नही पढ़े।

आरती- आपको कैसे पता की खूब पढ़ के आई हूं?

मैं- तुम्हारा चेहरा बता रहा। इतनी खुश जो हो

आरती- खुश तो आप भी हो

मैं-हा...खुश तो हु मैं..अच्छा कुछ पूछना हो तो पूछ लेना मुझे आयेगा तो मैं बता दूंगा।

आरती- thankyou वैसे भी मैं पढ़ नही पाई हूँ अच्छे से।

तभी विभा मैम क्लास मे प्रवेश करती है

"अरे वाह दोनो टापर एक साथ। वैसे दोनो जच रहे हो साथ मे"

मैं और आरती एक दूसरे को देख कर स्माइल कर देते है

स्पष्ट था दोनो एक दूसरे को अपने बगल मे पा के बहुत खुश थे। मैं सोच के आया था कि वो कागज आरती को आज दे ही देना है

परीक्षा शुरू हुई और मैंने आरती की मदद की और उसे नकल कराया लेकिंन इस बात का विशेष ध्यान भी दिया की विभा मैम की insult न हो क्योंकि नकल करते हुए पकड़े जाने मे क्लास टीचर की भी तौहीनी थी। हमने कई बार उस कागज को निकालने की कोशिश की और एक बार तो हिम्मत करके निकाल भी लिया। उस समय भी मेरी धड़कन बहुत तेज हो चली थी.. लेकिन उसे आरती को देने की हिम्मत नही कर सका

लेकिन ये सोच के खुशी थी की चलो अभी 5 पेपर बचे है। आज न सही तो कल दे दूंगा।

उस दिन पेपर देने के बाद जब हम घर आये मुझे बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि आरती ने मैंने पहली बार बात की थी। मैं बहुत खुश था और पूरे दिन उसके ख्यालों मे डूबा रहा।

अगले दिन उस क्लास मे एच०पी० रॉव सर की ड्यूटी थी। रॉव सर ना हमको पसन्द थे और ना हम उनको। उनकी नाराजगी को भी हम समझते थे ।दरअसल रॉव सर अपने घर पर ट्यूशन पढ़ाते थे और उन्होंने मेरे पापा से मुझे ट्यूशन पढ़ाने के लिए संपर्क भी किया था लेकिन चूकी हम पहले से अपने बगल मे एक भैया के यह ट्यूशन पढ़ते थे अतः रॉव सर के यहां ट्यूशन पढ़ाना पापा ने उचित नही समझा था। शायद इसी वजह से रॉव सर हमसे खफा रहते थे।

उस दिन पूरी क्लास मे रॉव सर की हमदोनो पर विशेष नजर थी। मैं चाह कर भी आरती की मदद नही कर पा रहा था। मन ही मन मैं रॉव सर को बहुत कोस रहा था। लेकिन एक बात मैं सोच के आया था की आरती को आज ये कागज दे ही देना है। परीक्षा खत्म होते ही राव सर की नजरो से बचते हुए मैंने हिम्मत करके वो कागज अपने पॉकेट से निकाला और जैसे ही उसे आरती की तरफ बढ़ाया,पता नही कैसे राव सर ने मुझे देख लिया और चिल्लाते हुए मुझको सुनाने लगे...

"क्या है ये सब नकल कर थे तुम दोनों ?"

मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और मैं सहमी हुई आवाज मे बोला

" नही सर नकल नही ऐसे ही..."

राव सर-"ऐसे ही क्या कैसा कागज है दिखाओ "

मैं कुछ समझ नही पा रहा था क्या करू। अब तो सब सामने आने वाला था मैंने कागज फाड़ने की कोशिश की अभी पूरा फाड़ भी न पाये तब तक राव सर ने हमसे कागज ले लिया। डर के मारे मेरी हालात बहुत खराब हो गई थी। कहा मैं आरती के सामने अपना इम्प्रेशन बढ़ाने की सोच रहा था। लेकिन अब उसके सामने मेरी इम्प्रेशन गिर रही थी।

राव सर को मेरी बेइजती का एक अच्छा मौका मिला था और वो कहा चुकने वाले थे। उन्होंने पहले खुद लेटर पढ़ा और सारे स्टूडेंट्स के सामने उसे पढ़ के भी सुनाया । जिस डर के मारे हम आरती से अपने दिल की बात नही कह पा रहे थे ना ही कागज दे पा रहे थे, आखिर वही हुआ हालांकि यह आरती की वजह से नहीं हुआ।

रॉव सर-"चलो आ जाओ तुम लोग। कल बताते है तुम दोनो को.."

और इस प्रकार राव सर हमारी स्टोरी मे विलेन बन कर आ गये।

आज का दिन मेरे लिए बहुत कठिन था। एक दिन पहले जितना मैं खुश था अब शायद उतना ही दुःखी भी। डर ये नही लग रहा था की मेरी पिटाई होगी बल्कि डर ये था कि सबके सामने और आरती के सामने पिटाई होगी जो कि मेरी घोर बेइज़्ज़ती है। ये भी डर था की कही पापा को न बता दे सब...

लेकिन एक बात का सुकून था की कम से कम आरती को पता तो चला मेरी फीलिंग्स।

(.........शेष कहानी अगले भाग में)


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