कच्ची उम्र का प्यार (भाग-2)
कच्ची उम्र का प्यार (भाग-2)
अगले दिन जब हम स्कूल पहुँचे फिर वैन नहीं आई थी। मैं पागल सा हो रहा था। मेंरे सब्र का बांध टूट रहा था तभी स्कूल वैन की आवाज आई और मैं बड़े उंमिद भरे नजरों से वैन की तरफ देखने लगा। मैं वैन की तरफ देख रहा था और सारे स्टूडेंट्स मेंरी तरफ। फिर आखिर वो लम्हा आ ही गया जो मुझे अंदर तक सुकून दे गया। स्कूल ड्रेस और काले कलर की जूती में वो खूब फबती थी। वो अप्सरा वैन से उतरी और जैसे ही स्कूल गेट से प्रवेश की सारे बच्चे ताली बजाने लगे और हूटिंग भी । सारे बच्चे कभी हमको देखते कभी आरती को। इस तरह से उनके ताली बजाने से और हूटिंग से वो थोड़ी असहज भी थी। लेकिन सच बताऊ ये लम्हा भी बड़ा यादगार था।
विभा मैंम ने हाथ के इशारे से पूछा अब ठीक है और मेंरी मुस्कान बता रही थी कि मैं कितना अच्छा महसूस कर रहा था। फिर मैम ने कहा अमित तुम्हारी मुस्कान बहुत अच्छी है ऐसे ही मुस्कुराते रहो।
उस दिन हम दोनों की नजरे आपस में बहुत बार टकराई। ऐसा लग रहा था मानो वो कुछ कहना चाह रही हो लेकिन कह नहीं पा रही। आखिर वो भी तो मेंरी तरह शर्मीली थी। इस तरह मेंरी रोज की आदत हो गई स्कूल में आते ही आरती को देखने की वो आई है की नहींं। जिस दिन नहींं आती जान निकल जाती मेंरी।
फिर कुछ दिन ऐसे ही बीते हम दोनों बस एक दूसरे को देखते थे। कुछ कहना चाहते थे एक दूसरे से लेकिन इस छोटी उम्र में ना उसके पास हिम्मत थी ना ही मेंरे पास।
कभी कभी सोचते थे दिल की बात बता ही देते है लेकिन हिम्मत नहीं होती थी और ना ही तरीका सूझता था।
एक दिन मैंने सोचा बोलने से तो हम रहे..लिख के दे देते है और हम एक दिन घर से एक कागज पर " Aarti, i love you "..लिख कर लाये। उसे हमने अपने पॉकेट में रखा था।
सामने से तो देने की हिम्मत थी नहीं तो मैंने सोचा लन्च में चुपके से उसके बैग में रख देंगे जब सब खेल रहे होंगे। उस दिन सब लन्च समय में स्कूल ग्राउंड में खेल रहे थे हम बड़ी ही हिम्मत जुटा कर क्लास में आये। आरती के क्लास में मेंरी धड़कन बहुत तेज हो चली थी। बहुत डर लग रहा था कहीं प्रिंसिपल को बता दी तो मुझे सबके सामने मार भी पड़ेगी और पापा को भी पता चलेगा। इन सब डर के मारे हम उस छोटे से प्रेम पत्र को आरती के बैग में नहीं रख पाये।
ये सिलसिला कई दिनों तक चला लेकिन डर के आगे हम जीत ना पाये।
एक दिन हमने ध्यान दिया आरती के पास वही पेन है जो मेंरे पास है। आरती के पास वही टिफिन है जो मेंरे पास है। धीरे धीरे हम दोनों की हर एक जैसी होती गई। कॉपी पेन बॉक्स पेन्सिल टिफिन सब...
कुछ दोस्तो ने हिम्मत दी यार वो तुझे बहुत चाहती है, तु बात क्यो नहीं करता है? लेकिन मेंरा व्यक्तित्व कुछ ऐसा था की मैं बहुत डरता था। हम एक दूसरे से अभी तक बात नहीं कर पाये थे।
फिर वार्षिक उत्सव का कार्यक्रम आने वाला था। रेशमा मैम सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए कुछ छात्रों से उनके नाम माँगे। आरती ने अपना नाम दे दिया लेकिन हमने अपना नाम नहीं दिया क्योकि मैं हद से ज्यादा शर्मिला था। रेशमा मैम कुछ छात्र- छात्रों को उस वार्षिक कार्यक्रम के एक हफ्ते पहले से डांस सिखाने लगी। आरती भी डांस सीखती थी और रिहर्सल करती थी। हम उस रिहर्सल रूम में नहीं जा पाते थे क्योंकि जो हिस्सा लेता था वही allowed था। लेकिन मुझे उस वार्षिक कार्यकम का बेसब्री से इंतजार था।
आखिर वो दिन आया। एक ग्रुप डांस होना था। अन्य छात्राओं के साथ आरती जब स्टेज पर आई तो उसकी नजर किसी को ढूंढ रही थी और इस चक्कर में गाना बज गया सब डांस शुरू भी कर दिये लेकिन आरती अभी भी किसी को ढूंढ रही थी। उसे याद दिलाना पड़ा की डांस शुरू करो गाना बज गया है। बड़ी खूबसूरत था वो नज़ारा। एक खूबसूरत चाँद सी भोली सी लड़की डांस तो कर रही थी लेकिन उसकी नज़रे किसी को ढूंढ रही थी। हालांकि आरती डांस कला में माहिर थी लेकिंन उस परफार्मेंंस में वो अपना बेस्ट नहीं दे पाई। विभा मैंम ने इस स्थिति को भांप लिया और मुझे ढूंढकर आगे बैठने को कहा।
आरती का दूसरा डांस सोलो था लेकिन अब उसके चेहरे पर मुस्कान थी। उसकी नजरें जिसको ढूंढ रही थी वो हम पर आकर एक खूबसूरत मुस्कान के साथ खत्म हुई। वो सोलो परफॉर्मेंन्स ने कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिया। सब उस नन्ही परी के बेहरतीन डांस का आनन्द ले रहे थे। उस दिन आरती की बहुत तारीफ हुई और उस परफॉर्मन्स के लिए उसे पुरष्कृत भी किया गया।
इतना सब होने के बाद भी हम दोनों ने एक दूसरे से बात करने की हिम्मत नहीं की । ऐसे ही समय बीत रहा था फिर वार्षिक परीक्षा के लिए समय सारिणी भी आ गई। अब मुझे टेंशन हो गया क्योंकि आरती से बात करने का अब मेंरे पास ज्यादा समय नहीं था क्योकि वो स्कूल 8वी कक्षा तक ही था और मुझे 8 वी के बाद कही और प्रवेश लेना मेंरी मजबूरी थी। मुझे यह चिंता खाये जा रही थी तभी ईश्वर ने हमें आरती से बात करने का एक और मौका दिया।
विभा मैम को वार्षिक परीक्षा के लिए सीटिंग arrangement बनाने की जिम्मेंदारी मिली। और उन्होंने मेंरा और आरती का सीट अगल बगल में रख दिया। मैंने मन ही मन विभा मैम को तहे दिल से धन्यवाद ज्ञापित किया और बहुत खुश हुआ...
अब उम्मीद है कि वार्षिक परीक्षा के दौरान मैं अपने दिल की बात आरती से कह सकू और उसका प्यार पा सकू
''नजर में शोखियाँ...लब पर मोहब्बत का तराना है
मेंरी उम्मीद की जद मेंं अब तुम्हारा अफसाना है"
(शेष कहानी अगले भाग में......)

