Ashok Patel

Inspirational

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Ashok Patel

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कबाड़ में जुगाड़

कबाड़ में जुगाड़

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भरी दोपहरी का समय था,सर पर सूरज की गर्मी सीधी पड़ रही थी,ऐसे ही समय पर हांफते और पसीने से तर-बतर होते एक कचड़ा उठाने वाला आदमी कबाड़ी के दुकान में आकर खड़ा हो जाता है, और अपने आठ साल के बेटे की ओर इशारा करते हुए कहता है-

"बेटा भोलू जरा मेरी सहायता करना।"

"भोलू जी पिता जी ।"

कहता हुआ उसके पीठ में लदे बोरी के गट्ठे को सहारा देते हुए नीचे उतारता है।

फिर भोलू का पिताजी कहता है-

"जरा अपना हाथ देना।"

"जी पिता जी।"

कहता हुआ भोलू आगे बढ़ता है और उस बोरी के गट्ठे को सहारा देते हुए उसे कबाड़ी की दुकान में लगे तराजु के पास ले जाने में अपना सहयोग प्रदान करता है।

ठीक इसी समय उसकी नजर पास के कबाड़ के ढेर में पड़ी एक टूटी-फूटी जंग लगी सायकल पर पड़ गई।उस सायकल को देखकर वह उसके पास पहुंच गया और उसे सहलाने लगा।

  सहलाते हुए उसके बाल मन पर सुख और आनन्द की उजली किरण की भविष्य नजर आने लगी,और वह भोलू गहरी सोंच के सागर में डूब गया। 

तभी उसके पिता जी ने आवाज लगायी-

"भोलू, भोलू।"

"कहां चला गए ?"

"अरे।वहाँ क्या देख रहे हो ?"

तभी भोलू हड़बड़ा कर कहता है-

"जी पिता जी।"

मैं इस कबाड़ में पड़ी सायकल को देख रहा था।

भोलू धीमी आवाज में जवाब देता है।

उसके पिता जी उसकी जिज्ञासा और गहरी सोंच को अनदेखा करते हुए कहता है-

"अरे।बेटा उस कबाड़ में पड़ी टूटी-फूटी जंग लगी सायकल को क्या देख रहै हो जो अनुपयोगी हो गई है।"

तभी मौका पाकर उसका बेटा भोलू कहता है-

पिताजी।पिताजी।

"वह सायकल मुझे दिला दो न।"

उसका पिता जी कहता है-

ये क्या बोल रहे हो बेटा???

हल लोग कचड़ा बीनने वाले हैं बेटा।

और उस कचड़े से जो उपयोगी होता है उसे कबाड़ी दुकान में बेच देते हैं,हम लोग बेचने वाले हैं, न कि खरीदने वाले।

भोलू उसके पिता जी की बातों को गम्भीरता पूर्वक सुन रहा था उसके बाल मन पर कुछ और ही चल रहा था।

तभी वह अपने पिता जी को कबाड़ी दुकान के बगल में लाकर यह बात कहता है-

"पिता जी आप बोरी को पीठ में लादकर कितनी तकलीफें झेलते हैं मुझे देखकर बड़ी पीड़ा होती है क्यो न हम इस सायकल को खरीदकर उसे सुधारकर इसका उपयोग करें,इससे आपकी तकलीफें भी दूर होगी और आसानी से हम इसमें बोरी को लादकर कबाड़ी दुकान भी ला सकेंगे।"

बेटा भोलू की बात सुनकर मानो उसके पिता जी की आंखे खुल गई और हामी भरते हुए उसने अपने बेटे से कहा-

"ठीक है बेटा ।

"हम यह सायकल खरीद लेते हैं।"

तभी भोलू के पिता जी गहरी सांस लेते हुए अपने बेटे से कहता है कि-

"बेटा पर इसे खरीदने के लिए हमारे पास तो इतने पैसे भी नही है, उस कबाड़ी वाले को पैसा कंहा से देंगे ?"

तभी उसका बेटा कहता है-

"पिता जी हम लोग उपयोगी कचड़ा यहां बेचने तो आते ही हैं जब सायकल रहेगी तो हम और ज्यादा उपयोगी कचड़ा लाएंगे और उससे जो कमाई होगी उससे उसका भरपाई करते जाएंगे।"

बेटा भोलू की बात पिता जी को उचित जान पड़ी और उसकी बात को मानकर उस कबाड़ी वाले को वस्तु स्थिति से अवगत कराकर वह सायकल खरीद ली,और वह कबाड़ी वाला भी मान गया।

भोलू खुश हो गया दोनों ने मिलकर सायकल को सुधार डाली,उससे सुंदर काम करने लगे और कुछ ही दिनों में भोलू के पिता जी ने सायकल की उधारी चुकता कर डाली।

  अचानक एक दिन भोलू की नजर छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल जाते देखा,उसने अपने पिता जी से कहा-

"पिता जी मैं भी स्कूल जाना चाहता हु।

सुबह कचड़ा बीनने जाया करेंगे और वापस आने के बाद आप मुझे दस बजे उसी सायकल से स्कूल छोड़ दिया करेंगे।"

भोलू की इस सुंदर बातों को सुनकर पिता जी 

प्रसन्न हो जाता है और अपने बेटे को कहता है-

ठीक है बेटा।ठीक है।

फिर भोलू को उसके पिता जी स्कूल में भर्ती कर देता है, वह स्कूल जाने लगता है और अपने बेटे को स्कूल जाता देख बहुत प्रसन्न हो जाता है।

इधर भोलू का पिता जी कुछ एक दिन कचड़ा बीनने के पश्चात उस काम को छोड़ दिया और उसी सायकल से अपना खुद का व्यवसाय सब्जी बेचने का काम करने लगा। इस व्यवसाय से उसकी माली हालत सुधरने लगी,उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो गई,फिर अपने बेटे की सकारात्मक सोंच को याद करते हुए और शाबाशी देते हुए उसे अच्छी शिक्षा और संस्कार दिलाने की कमर कस ली और फिर उसके पिता जी ने भोलू को अपने हृदय से लगा लिया।


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