भावी साहित्यकार
भावी साहित्यकार
आज कालेज में खूब तैयारियां हो रही हैं, मुख्य दुवार को खूब सजाया जा रहा है,सभा भवन को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है।सभा भवन में बड़े-बड़े पोस्टर में साहित्यकारों के फोटो छपे हुए हैं,जिनको आज बड़े ध्यान से लगाया जा रहा है।आज कालेज के छात्र-छात्राएं बहुत खुश हैं, उनमें उत्साह है,उमंग है।और खूब सज-संवरकर आये हुए हैं।
असल मे आज राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकारों का समागम था,उनका सहित्य सम्मेलन था।और छोटे-छोटे नवोदित कवियों का सम्मान जो होना था।सभी नवोदित कवि गण सम्मान की अभिलाषा में बहुत प्रसन्न नजर आ रहे थे।
तभी अचानक सभी कवियों का आगमन होता है,और ससम्मान मंचासीन कराया जाता है।
कवियों का बारी-बारी पुष्पहारों से सम्मान किया जाता है।
सम्मेलन में आये सभी साहित्यकारो का सहित्य पर सारगर्भित उद्बोधन होता है।इसके बाद नवोदित साहित्यकारो को सम्मान करने की बारी आती है।
ऐसे समय मे जो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे उनको मंच पर पुनःआमंत्रित किया जाता है।
और ओ आसन ग्रहण करते हैं, उसके बाद नवोदित साहित्यकारो को मंच पर बुलाया जाता है।
जैसे ही आशु के नाम को आमंत्रित किया जाता है,आशु प्रफुल्लित होकर मंच की ओर बढ़ता है, और जैसे ही मंच पर पहुंचता है उसकी नजर सम्मेलन में आये मुख्य अतिथि पर पड़ती है, आशु को ऐसा लगा जैसे ओ अतिथि को पहले से जानता हैं।ओ कुछ जाना-पहचाना लग रहे थे।तब आशु नजदीक में जाकर उनको गौर से देखने लगा।और तब आशु को विश्वास हो गया कि वह वही साहित्यकार है जो कभी वर्षो पहले हमारे कालेज के दिनों में हमारे हिंदी विभाग में कवि सम्मेलन,चर्चा-परिचर्चा,गोष्ठी आदि में आया-करते थे।और ये बहुत विद्वान व्यक्ति थे,इनकी कविता बहुत प्रेरक हुआ करती थी।सुंदर प्रेरक उद्बोधन देते और हिंदी के छात्र-छात्राओं को हमेशा कविता और साहित्य सृजन हेतु प्रेरित करते।और कार्यक्रम के समापन अवसर पर ये कहा करते थे-
"आप सभी छात्र-छात्राएं भावी साहित्यकार हो,भविष्य के कवि हो और साहित्य के साधक बनोगे।"
उनके इन बातों को सुनकर आशु को कभी विश्वास ही नही होता था,की कभी क्या ऐसा भी हो सकता है?
पर आज आशु को सबसे श्रेष्ठ कवि का सम्मान मिल रहा है,आज ओ भविष्यवाणी शत-प्रतिशत सत्य हो गई।तभी अचानक ओ मुख्य अतिथि की आवाज आती है-
"अरे आशु जी कहां खो गए"??
आशु हड़बड़ा जाता है।
और अटकते हुए कहता है-
"जी,,,,जी,, महोदय!जी महोदय!!
आशु को सम्मान पत्र और सॉल श्री फल देकर सम्मानित किया जाता है।और फिर अतिथि महोदय ने उसकी उपलब्धि पर आशु को उद्बोधन हेतु आग्रह किया जाता है।
आशु अपने कालेज के पुराने दिनों की स्मृति में खो जाता है और बोलना शुरू करता है-
"आज का दिन मेरे लिए सौभग्य और सँयोग का दिन है,क्योकि कालेज के दिनों में जिन्होंने हमे साहित्य सृजन हेतु प्रेरित करते रहे और सहित्य के गुर को साझा करते रहे ऐसे सहित्य के गुरु आज हमारे बीच अतिथि के रूप में उपस्थित है,और आज उन्ही के कर कमलों से मैं सम्मानित हो रहा हूँ, यह मेरे लिए निश्चित ही सौभग्य की बात है।जो हमेशा कहा करते थे-
"आप सभी भविष्य के भावी कवि और साहित्यकार होंगे।"
हमे उनकी बातों का विस्वास नही होता था।पर आज उनकी भविष्य वाणी सच हो गई थी।आज मैं गदगद हो गया।ऐसे साहित्यकार गुरु के चरणों को मैं शत शत नमन करता हूँ। खूब तालियां बजती है।
ऐसा कहकर आशु उस अतिथि महोदय के श्री चरणों को प्रणाम करता है।
वह अतिथि महोदय आशु के इस वाकया को सुनकर आश्चर्य चकित हो जाते हैं,और अपने भविष्यवाणी को जीता जागता-प्रमाण देख कर मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं।और लपक कर आशु को अपने हृदय से लगा लेते हैं।
और फिर अतिथि महोदय ने बहुत सुंदर बात कही-
"आज आशु की साहित्य-साधना,सेवा को देखकर मुझे ऐसा लगता है,की मेरी साहित्यिक यात्रा,आज पूरी हो गई।मैं धन्य हो गया।
