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Ashok Patel

Inspirational

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Ashok Patel

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"नन्हा चित्रकार"

"नन्हा चित्रकार"

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आज आशु बिना पलक झपकाए चित्रकार के बनाते हुए चित्र को एकटक देख रहा था।आशु के मनोभावों को देख कर ऐसा लग रहा था मानो वह स्वयं चित्रकार बन गया हो।जैसे-जैसे चित्रकार अपनी तूलिका को चित्रों में रंग भरने के लिए उसको घुमाता फिराता वैसे-वैसे आशु के हाथ और उसके शरीर भी आगे पीछे होता जाता।

आशु चित्रों में इस तरह तन्मय हो जाता कि उसे अपनी उपस्थिति का भान ही नही रहता।जब चित्रकार अपने चित्रों को पूर्ण करता तभी वह अपनी तन्द्रा को तोड़ पाता।तब आशु को पता ही नही रहता कि कब उसके स्कूल जाने का समय हो गया है।फिर वह आशु उन चित्रों को अपने मन मे स्थापित कर झट से वँहा से स्कूल को निकल जाता।स्कूल में वह उन चित्रों में खोया रहता और जैसे ही उसको समय मिलता उन सारे चित्रों को अपनी कापियों में बनाना शुरू कर देता।


समय बीतता गया,वह उस चित्रकार के चित्रों को हूबहू बनाना शुरू कर दिया।उन चित्रों को देख कर ऐसा लगने लगा कि मानो वही चित्रकार बना गया हो।आशु चित्रों के रंग में पूरी तरह से रंग गया था। लोग उसके चित्रों को देख कर आश्चर्य चकित हो जाते,और आशु की खूब प्रसंशा होती, उसको खूब प्रोत्साहन मिलता,अपने इस प्रोत्साहन से वह प्रसन्न हो जाता,और जब कभी कोई दूसरी चित्र बनाता तो उसमें वह अपनी सारी शक्ति लगा देता था।अब वह आशु एक "नन्हा चित्रकार"के रूप स्थापित हो गया था,आसपास के सभी लोग उसे नन्हा चित्रकार के रूप में जानने लगे।

उसकी प्रसिद्धि चारो दिशाओं में फैलने लगी।

 एक दिन अचानक पास के नगर में चित्र प्रदर्शनी का आयोजन हुआ,वहाँ पर नन्हा चित्रकार भी अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई।वहां लोगो का तांता लग गया। जिधर देखो उधर नन्हा चित्रकार की प्रसंशा होने लगी,सभी के जुबान पर एक ही बात नन्हा चित्रकार!!नन्हा चित्रकार!!

ऐसे ही समय पर एक बुजुर्ग व्यक्ति,आते हैं, जिनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ी है, आंखों में चश्मे है, पैजामा कुत्ता पहने हैं कंधों में एक थैला लटकाए हुए हैं, जो प्रदर्शनी कक्ष में प्रवेश करते हैं।जैसे ही उनकी नजर चित्रों पर पड़ी वहीं ठिठक के रह जाते हैं।और उनके मुख से अनायास ही निकल पड़ता है-वाह!!वाह!! बहुत खूब!!

तभी वहां पर नन्हा चित्रकार आता है और गुरु जी!गुरु जी!कहता हुआ उसके चरणों को प्रणाम करता है।

दर असल मे वह बुजुर्ग व्यक्ति वही महान चित्रकार था जिनके बनाते हुए चित्रों को वह नन्हा चित्रकार कभी ध्यान मग्न होकर देखा करता था।आज उनको पाकर वह धन्य हो गया था,और बिना कुछ बताये गुरुजी को घुमाने में लग गया।

"आइए आइए गुरुजी!!"मैं आपको पूरा कक्ष घुमा देता हूं।"

तभी वह बुजुर्ग व्यक्ति आशीर्वाद देते हूए-"ठीक है बेटा"!कहते हुए नन्हा चित्रकार के पीछे-पीछे चलना शुरू कर देता है।जैसे ही वह अंतिम कक्ष में पहुचता है,वहां पर उस बुजुर्ग व्यक्ति का सबसे प्यारा और सुंदर चित्र दिखाई देता है,जो बिल्कुल उससे मिल गया था।इसको देखकर वह बुजुर्ग व्यक्ति आश्चर्य से भर जाता है-

"मेरा चित्र!!हूबहू मेरी शक्ल!!"

और फिर वह बुजुर्ग व्यक्ति अपनी नजरों को यहां- वहां दौड़ता है,उसको वही नन्हा चित्रकार दिख जाता है जो उसको चित्र दिखाने लाया था।तभी वह बुजुर्ग व्यक्ति कहता है-

"बालक! !!इन चित्रों को किसने बनाया ???और वह चित्रकार कंहा है ???मैं उससे मिलना चाहता हु।!

तभी वह नन्हा चित्रकार उसके चरणों मे गिर जाता है।और कहता है-

"गुरु जी वह चित्रकार आपके पावन चरणों मे समर्पित है,आज मै आपको पाकर धन्य हो गया,आप ही मेरे गुरु जी है आपने ही ने मुझे इन चित्रों में रंग भरना सिखाया है।मैने आपको मन ही मन अपना गुरु मान लिया था,और मैं अपनी साधना में लग गया था। आज मेरी साधना सफल हो गयी।"

इतना सुनते ही वह बुजुर्ग व्यक्ति उस नन्हा चित्रकार को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया।दोनों की आंखे भर आती है।

फिर गुरुजी कहते है-"

"तुम धन्य हो बेटा !तुमने आज मुझे बिना मांगे अनमोल गुरु दक्षिणा दे दिया,और मेरी कला को जीवंत कर दिया।मैंने नन्हा चित्रकार का नाम सुना था!!"जैसा सुना था वैसा ही पाया।"

बेटा तुमने अपने गुरु का और अपना नाम सार्थक कर दिया।तुम्हरा कल्याण हो,कल्याण हो।



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