Ashok Patel

Inspirational

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Ashok Patel

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बाल-दिवस

बाल-दिवस

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बाल दिवस की पूर्व संध्या पर प्रधानपाठक ने ये सूचना प्रेषित किया कि सारे बच्चे सभा हाल में उपस्थित हो जाएं।

अचानक घण्टी बजती है और कुछ ही पल में सभी बच्चे सभा हाल में इकट्ठा हो जाते हैं।

सभा हाल में खूब शोरगुल होती है, तभी अचानक अपने स्टॉफ के साथ प्रधानपाठक का पदार्पण होता है। प्रधानपाठक को देखकर बच्चों को मानो पाला मार जाता हैं, सभी शांत हो जाते हैं। और बच्चे सावधान की मुद्रा में खड़े होकर अपने प्रधानपाठक को शिष्टाचार करते हैं।

तभी प्रधानपाठक ने अपने हाथों में इशारा करते हुए बैठने का निर्देश देते हैं। सभी यथास्थान में बैठ जाते हैं।

जैसे ही वातावरण में नीरवता आती है तभी प्रधानपाठक जी खड़े होते हैं और कुछ जरूरी सूचना प्रसारित करते हैं

ओ कहने लगे-

"दिनांक 14 नवम्बर को "बाल-दिवस" के शुभ अवसर पर स्कूल में "बाल-दिवस" का कार्यक्रम धूमधाम से मनाया जाएगा,जिसमें चाचा नेहरू जी के जीवन चरित्र,और प्रेरक प्रसंगों को मंचन किया जाएगा।

यदि कोई बालक-बालिका इस कार्यक्रम में भाग लेना चाहते हैं,ओ अपना नाम लिखा सकते हैं। "

तभी अचानक जोरों की कोलाहल शुरू हो जाती है। बच्चे उत्साहित हो जाते हैं। और चिल्लाने लगते हैं-

"सर जी मेरा नाम"

"सर मेरा नाम"

कोई कहता है-

"मैं भी नाटक में भाग लेना चाहता हूँ। "

"सर मेरा नाम लिख दीजिए। "

सोनू...मोनू....रानू....सानू... !इस तरह

से बच्चों ने नाम गिनाना शुरू कर दिया।

तभी प्रधानपाठक ने टेबल पर थपौडी पीटते हुए शांति बनाए रखने का हिदायत देते हैं। फिर सभा हाल में शांति छा जाती है।

ठीक ऐसे समय पर प्रधानपाठक की नजर सबसे पीछे बैठे मोहन पर पड़ती है। मोहन चुपचाप सिर झुकाए बैठा हुआ है,किसी से बात नही कर रहा है,और न ही वह "बाल- दिवस" के कार्यक्रम से उत्साहित है। जबकि वह बालक बहुत होनहार था,इस तरह के कार्यक्रम में चढ़-बढ़ कर हिस्सा लेता था। पर इस बार वह बहुत उदास है।

उसकी इस उदासीनता को समझते हुए

मास्टर जी ने पूछा-

क्यो ?क्या हुआ मोहन ??

तुम इतने उदास क्यो बैठे हो ?

और तुम "बाल-दिवस" के कार्यक्रम में भाग क्यो नही ले रहे ?

तभी वह मोहन अपने आप को सम्हाले हुए कहता है-

"मास्टर जी हम नेहरू जी के जन्म दिवस को "बाल-दिवस" के रूप में मनाते हैं,पर उस नेहरू जी से एकाकार नही हो पाते,हम उनसे मिल नही पाते। कितना अच्छा होता यदि हम उनसे मिल पाते। "

मास्टर जी को मानो झटका लग गया। मास्टर जी गहरी सोंच में पड़ गए।

तभी मोहन कहता है-

"मास्टर जी क्या हम नेहरू चाचा से मिल सकते हैं ?"

तब मास्टर जी कहते हैं-

हाँ....हाँ.. !!

क्यो नही !

मोहन खुश होकर उछल जाता है।

और कहता है-

"क्या सच कह रहे हो मास्टर जी !"

"हाँ सच कह रहा हूँ"!

मास्टर जी ने कहा।

और फिर मास्टर जी अपने स्टॉफ में गए और वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए बाल- दिवस के दिन अपने सहयोगी मास्टर जी को गुब्बारे वाला,फल वाला बनने के लिए कहा। और स्वयं चाचा नेहरू बनने की बात स्वीकारी। सभी ने हामी भर दी।

उसके बाद वह बाल दिवस का शुभ दिन भी आया,सभाहाल खचाखच भरा हुआ है।

मोहन सहित सभी बच्चों को चाचा नेहरू के आगमन की प्रतीक्षा थी उनसे मिलना चाहते हैं,और मिल के "बाल-दिवस" में अपना- अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करना चाहते हैं।

तभी ठीक इसी समय मंच के एक कोने से किसी की आवाज आती है-

गुब्बारे ले लो गुब्बारे !!

इसी प्रकार-

फल ले लो फल !सेव,केला,अंगूर, !

और फिर ऐसे ही समय मे मंच के किसी कोने से चाचा नेहरू का आगमन होता है जो अचकन टोपी लाल गुलाब धारण किये हुए हैं, जो बिल्कुल हुबहू नेहरू जी लग रहें है।

सभी बच्चे चाचा जी !चाचा जी !जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।

तभी वह नेहरू जी कहते हैं:-

"लो बच्चों मैं चाचा नेहरू आ गया हूँ !"

मोहन मेरे पास आ जाओ,तुम मुझसे मिलना चाहते थे न !"

मोहन और सभी बच्चे अचरज में पड़ जाते हैं, और चाचा नेहरू से बिना देरी किए मिलने दौड़ पड़ते हैं। नेहरू जी सभी बच्चों को हृदय से लगा लेते हैं, और पास से गुजर रहे गुब्बारे वाले से गुब्बारा,और फल वाले से फल बांटकर बच्चों को प्रसन्न कर देते हैं।

तभी जिज्ञासावश मोहन पूछता है क्या आप सचमुच में चाचा नेहरू हो ?

तब मास्टर जी ने सारा माजरा कह सुनाया

भले ही उनका शरीर नही है लेकिन उनके आदर्श उनके सिद्धान्त,उनका बच्चों के प्रति प्यार आज भी हमारे दिलों-दिमाग पर जिंदा है। मैं नेहरू के रूप में तुम्हारे मास्टर जी हूँ।

तुम उस दिन बहुत उदास थे तुम्हारी उदासी को दूर करने और "बाल-दिवस" को यादगार

बनाने के लिए हमने नेहरू जी का वेश धारण किया, सहयोगी मास्टर साथी,फल वाला और गुब्बारे वाला बना,और हम सभी मंच में धीरे-धीरे आगमन किए, जिसको देखकर तुम सभी बच्चे प्रसन्न हो गए।

इतना सुनकर मोहन और अन्य सभी बच्चे

अपने प्रधानपाठक को चाचा नेहरू और अन्य मास्टर जी को फल गुब्बारे वाला है जानकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं,और फुले नही समाते है। आज उनकी उदासी और भ्रम दूर हो गई। आज उन लोगों ने नेहरू चाचा का साक्षात दर्शन जो कर लिया था।


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