कब आओगे....
कब आओगे....
आज भी बसंती देबी की इंतजार है उनकी पोते के आने का. आज भी वो उसके याद मे कभी कभी मुस्कुराते अपने आप को समझा देती है. क्यूँ नहीं करें इंतजार? अपनी मीना, जो इस गाँव की सबसे सुन्दर और पढ़ी लिखी है, वो भी तो इंतजार मे है प्रशांत की.
कभी कभी प्रशांत की तस्वीर को देख के मीना चुप चुप के आँखों मे आंसू लेके पूछती है , "कब आओगे "?
डाक्टर प्रशांत शर्मा, मशहूर दिल के डॉक्टर. उनकी दादी बसंती देबी. जो कोलकाता से बहुत दूर, लगभग चार सो मिल दूर झारखण्ड की एक छोटी सी गांव मे रहती है. वो उस दिन की बात है, जब प्रशांत सिर्फ छह साल का था और अपनी पिता माता के साथ भागलपुर मे रहता था. दुर्गापूजा का समय था. बसंती देबी भी अपने बेटे के पास गयी थी. उनकी मन अपनी पोते मे लगा रहता था. अस्टमी के दिन पड़ोस के लोगो के साथ वो अपनी पोता प्रशांत को लेके दुमका गयी थी देबी माँ की दर्सन करने. मंदिर मे पूजा देनेके बाद जब शाम को भागलपुर आने के लिए निकले तो साथी पडोसी बोले आज जाना नहीं हो पायेगा, कियुं की भागलपुर मे दंगा हो गया है. बहुत लोग मारे गये, घर भी जला दिया गया है. प्रशासन बोला है दो दिन यहाँ रहना होगा और बाद मे जा सकते है.
ये सुनके बसंती देबी की मन बड़ा घबराने लगा. अपनी ईकलौते बेटा और बहु कैसे होंगे, सिर्फ मातारानी को गुहार लगाने लगी.
दो दिनों के बाद जब वहाँ पहुंची तो सारे शहर मे खून और जला हुआ मकाने देख के घबराई. अपनी बेटे की बस्ती को पहचान का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. तब एक दरोगा जी के मदद से वो वहाँ पहुंची और तब उसके होश उड़ गये. सामने देखा उसकी बेटा और बहु की लाश खून मे लथपथ. खून भी सूख गया था. घर जल गया था. पास मे पोता प्रशांत भी रो रहा था. बसंती देबी का मानो सब कुछ ख़तम हो गया. बहुत देर वहाँ रहने के बाद सबकी सहायता से उनकादाह संस्कार हुआ.
उस शहर के लिए मन मे बहुत गुस्सा आया. बस कुछ पल मे कितनो का परिबार उजाड़ दिया, कितनो को अनाथ बना दिया, कितनो को बेघर कर दिया!!!
अब बसंती ने ठान लिया की अपने पोते को कभी भी अनाथ होने का सोच नहीं छूने देगी. बस प्रशांत को लेके अपनी गांव चली गयी. गांव मे अपनी घर है और खेती भी होता है. पर प्रशांत को बड़ा करना है. उसकी बेटे का इच्छा था की प्रशांत डाक्टर बनेगा. वो उसकी बेटे की सपनो को पूरा करने ठान ली. प्रशांत की पढ़ाई शुरू हुई . उस गांव की मास्टर जी की बेटी मीना भी प्रशांत के साथ पढ़ती थी. प्रशांत और मीना बहुत अच्छे दोस्त बनगए. देखते देकते दोनों बड़े हो गये. स्कुल की पढ़ाई के बाद रांची के कालेज मे पढ़ने लगे. दोनों हॉस्टल मे रहते थे. एक दूसरे के ख्याल रखते थे. धीरे धीरे दोनों एक दूसरे को प्यार भी करने लगे. साथ मे मिलके पार्क मे घूमना, सिनेमा देखना सब होते रहा. उनकी प्यार की गाडी बढ़ने लगी.
उधर प्रशांत के पढ़ाई के लिए बसंती देबी अपनी खेती के साथ साथ और कुछ दुसरों के खेत मे सब्जियाँ की खेती करने लगी थी. मानो तो एक छोटी सब्जियों की किसान बन गयी थी बसंती देबी. जो भी कमाई होता था प्रशांत की पढ़ाई के लिए बचाके रखती थी.
यहाँ इंटर की ख़तम होने के बाद प्रशांत को कोलकाता मे डाक्टरी पढ़ने की दाखला मिल गया. बसंती देबी बहुत ख़ुश थी. मातारानी को शुक्रिया बोली. प्रशांत कोलकाता मे पढता था पहेले तीन साल तक गांव आता था. मीना को भी साल मे दो तीन बार जरूर मिलता था. उसकी लिए कुछ ना कुछ ले के आता था. मीना की पढ़ाई ख़तम हुई, वो गांव आया. उसकी शादी के बहुत रिश्ते आए पर एक दिन मीना उसकी दिल की बात बसंती देबी को बोल दी. उसकी और प्रशांत की बीच सारे रिश्ते के बारे मे जानने के बाद मीना की पिता से वो बात की और प्रशांत के साथ शादी करवाने की जवाब भी दे डाली. मीना बहुत ख़ुश हुई. उस दिन से वो बसंती देबी को अपनी दादी सास मान बैठी.
यहाँ प्रशांत अपनी एम बी बी एस की पढ़ाई के बाद दिल के स्पेशलिस्ट का पढ़ाई करने लगा. बसंती देबी उनकी सारे जमा हुआ पैसे देनेके बाद अपनी जमीन भी बेच डाली. सिर्फ अपनी पोते को एक बड़ा डाक्टर बनाना जो था. देखते देखते पांच साल बीत गया. प्रशांत कोलकाता मे पैसे कमाने मे ब्यस्त रहा. अपनी गांव जाने का समय नहीं मिलता उसको या बड़े शहर की झूटी शान उसको अंधा कर दिया था.
पर बसंती देबी आज भी इंतजार मे है. मीना अपनी सीने मे दर्द लेके आँखों को समझती थी विश्वास के साथ कि उसका प्रशांत जरूर आएगा. दादी को बोलती था जरूर कुछ काम मे फस गये. प्रशांत की कोई खबर आती नहीं थी. दोनों आँखों मे सपनो को बिठाके मन ही मन पूछते रहते "कब आओगे ".
