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Ruchika Khatri

Inspirational

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Ruchika Khatri

Inspirational

कौन सुनेगा किसको सुनाएं......

कौन सुनेगा किसको सुनाएं......

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"आओ सीमा दीदी..बस तुम्हारा ही इंतजार था।" घर में कदम रखते ही भाभी संध्या ने ताना मारा।

"बिल्कुल भाभी तुमने बुलाया था तो आना तो पड़ेगा ही और वैसे भी आज शायद मेरी भाभी ने नहीं बल्कि मेरी ननंद की बेटी की सास ने मुझे बुलावा भेजा है तो समधियों के घर आई हूं।" उसी लहजे में सीमा ने भी जवाब दिया।

"वाह दीदी तुम तो तैयार होकर आई हो अपनी लाडली रीना का पक्ष लेने के लिए। लगता है पहले ही फोन करके अपनी मामी को सब बता दिया है इसने। वैसे भी यही तो उसकी आदतें है ना इधर की बात उधर करना। घर की इज्जत का तो इसे जरा भी ख्याल नहीं है। लोगों को न जाने क्या क्या कहती फिरती है हम क्या इसे दुखी रखते हैं जो लोगों से हमारी बुराइयां करती है। जिस घर की बहू है, जिस घर की इज्जत है, उसी घर की इज्जत तार-तार कर रही है। लोगों से हमारी बुराइयां करते हुए इसे जरा भी शर्म नहीं आई अगर ऐसा ही था इतनी दुखी थी इतनी ही परेशान थी तो यहीं पर मुंह फाड़ कर बोल देती ना..दूसरों के आगे रोने की क्या जरूरत है इसे.? पर नहीं यह तो उसकी आदत है ना तभी तो तुम्हें भी...!"

"1 मिनट भाभी पहली बात तो घर में जो कुछ भी चल रहा है उस बारे में रीना ने मुझे कुछ भी नहीं बताया है बल्कि तुम्हारे लाडले बेटे ने फोन करके मुझे सारी बात पहले ही बता दी थी ताकि मेरे आने के बाद ऐसा ना हो कि मुझे बात का पता ही ना हो और तुम मुझे कुछ भी बोल दो। और हां क्या कह रही थी तुम कि इसने घर की बातें इधर उधर की है तो एक बात बताओ ऐसी कौन सी बातें उसने इधर-उधर कर दी है......? इसने केवल अपने मन का हाल बयां किया है....... वह भी जानती हो किसे अपने ताऊ ससुर की बेटी को यानी कि अपनी ननंद को क्योंकि यह दोनों हम उम्र है सहेलियां है एक दूसरे से मन का हाल समझ सकती हैं लेकिन इस बच्ची को यह पता नहीं था की वह शीला इसके साथ मीठी मीठी बातें करके फिर घर में आग लगाने का काम बहुत अच्छी तरीके से जानती है। भाभी शायद तुम भूल गई हो कि यही रिश्ता तुम्हारा और मेरा भी है और जब ताई जी तुम पर जुल्म करती थी...... तुम्हें परेशान करती थी..... नीचा दिखाती थी....... बेइज्जत करती थी तब तुम भी अपने दिल की बात मुझसे ही करती थी तो क्या तुम्हें भी बातें इधर-उधर करने की आदत है।"

"दीदी आपकी और मेरी बात अलग थी अम्मा जी ने कुछ कम नहीं किया था मेरे साथ।"

"तुम्हारी और मेरी बात क्यों अलग है भाभी तुम और मैं भी तो ननद भाभी है ना और रीना और शीला भी उसी रिश्ते में बंधी है। जब तुम अपने मन का हाल मुझसे साझा कर सकती हो तो वह क्यों नहीं कर सकती। जब तुम्हारा समय था तब तुम्हारे लिए वही सब कुछ सही था और आज जब वही काम रीना ने किया है तो वह गलत है क्यों...? यहां पर गलती रीना की नहीं बल्कि शीला की है जिसमें बात का बतंगड़ बनाया है सहेली बनकर रीना के मन को कुरेदा है और फिर उन्हीं बातों को मिर्च मसाले लगाकर तुम्हारे घर में झगड़े करवा रही है। एक बात बताओ अगर इसे इस घर की इज्जत उछालनी हीं होती तो यह केवल अपनी उस ननंद से अपने मन का हाल बयां नहीं करती बल्कि छोटी-छोटी बातों पर नमक मिर्च लगाकर पूरे समाज में तुम्हारी नाक कटवा चुकी होती। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया है यहां तक की इसने तो कभी मुझे भी कुछ नहीं कहा जबकि मैं उसकी सगी मामी हूं, अपनी मां से ज्यादा मुझे मान देती है। लेकिन फिर भी पिछले 5 साल से इसने हमेशा मुझे यही कहा कि वो खुश है हालांकि कहीं ना कहीं मैं जानती थी की उसके मन में बहुत कुछ चल रहा है लेकिन वह बर्दाश्त कर रही है। और सच कहूं ना भाभी तो मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी मुझे तो लगा था कि तुम भुक्तभोगी हो। ताई जी के हाथों तुम सताई गई हो इसीलिए तुम अपनी बहू के साथ कभी गलत नहीं करोगी लेकिन अफसोस के तुम भी ताई जी के नक्शे कदम पर चल रही हो।"

"वाह दीदी आप भी उसका ही पक्ष ले रही है आपको भी मैं ही गलत लग रही हूं। चलो ठीक है, इसकी गलती नहीं है शीला की गलती है जो उसने बात का बतंगड़ बनाया। लेकिन अगर ऐसी कोई परेशानी थी तो आपसे कहती मुझसे कहती।"

"वाह भाभी, क्या बात कही है तुमने..! तुम ताई जी के नक्शे कदम पर चलते हुए अपनी बहू को हर तरीके से परेशान कर रही हो और वह तुमसे ही तुम्हारी शिकायत करेगी थोड़ा तो दिमाग लगाओ भाभी..! जैसे स्वीटी तुम्हारी बेटी है वैसे यह भी तुम्हारी ही बेटी है लेकिन अगर तुमने उसे बेटी माना हो। तुम तो उसे बहू मान कर अपने पर हुए जुल्मों का बदला ले रही हो। और ऐसे भी जब तुम्हारा लाडला बेटा ही उसकी कोई बात नहीं सुनता, नहीं समझता तो फिर वह किस से कहेगी। जानती हो अगर रीना अमन से कुछ भी कहती है तो अमन का एक ही जवाब होता है कि "मैं तुम औरतों के झमेले में नहीं पढ़ूंगा।" बस यह एक लाइन बोलकर वह तो अपना पल्ला छुड़ा लेता है लेकिन भुगतना किसे पड़ रहा है रीना को.....?

अरे भाभी अब भी समय है, अब तो संभल जाओ। भाभी जानती हो मैंने अमन का रिश्ता रीना से क्यों करवाया था क्योंकि मुझे भरोसा था कि तुम कभी मेरा भरोसा नहीं तोड़ोगी रीना को हर खुशी दोगी लेकिन अफसोस की तुम भी हमारे समाज में मौजूद 80 परसेंट सासों का ही हिस्सा हो, जो अपनी बहू को बहू नहीं केवल एक काम करने की मशीन समझती हैं, जो हमेशा घर का काम करती रहे, बच्चे पैदा करें, घर संभाले, ताने सुने.. लेकिन अपने मुंह से उफ तक ना करें। लेकिन नहीं भाभी, यह आज की लड़कियां है अगर यह अपने पर आ जाए ना तो ईंट का जवाब पत्थर से देना जानती है अगर एक चुप है तो इसका मतलब यह अपने संस्कारों में बंधी हुई है इसका नाजायज फायदा मत उठाओ। आज के बाद रीना को कुछ भी उल्टा सीधा कहने से पहले यह सोच लेना की कभी ताई जी ने तुम्हारे साथ भी ऐसा तो नहीं किया था ना। कहीं ताई जी ने तुम्हारा भी दिल इसी तरीके से तो नहीं दुखाया था ना.....! कहीं तुम्हारे दिल से भी ऐसे ही आह तो नहीं निकली थी ना।"

"दीदी बस भी करो...... अब और नहीं सुन सकती। सही कह रही हो आप मैं भी अम्मा जी के नक्शे कदम पर चल कर उन्हीं के जैसे बनने की कोशिश कर रही थी। लेकिन भूल गई की अम्मा जी ने जो मेरे साथ किया था उसके चलते मैं उन्हें कभी दिल से इज्जत नहीं दे पाई थी। मेरे दिल का हाल क्या था यह मैं ही जानती थी और जब मन भर जाता था ना तो तुमसे दिल खोल कर बातें करती थी। आज रीना ने भी वही तो किया है मुझसे परेशान आकर उसने अपने मन का हाल बयां किया था और मैं इस बात को परिवार की इज्जत मान सम्मान से जोड़ बैठी। गलती हो गई मुझसे दीदी जो मैंने एक तो रीना को परेशान किया उस पर उसके साथ साथ आपको भी भला बुरा कहा। भूल गई थी कि मेरे बुरे समय में मेरे साथ हमेशा आप खड़ी थी। मुझे माफ कर दो दीदी मैं वादा करती हूं कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा। मैं रीना को हमेशा हमेशा के लिए अपने दिल में जगह दूंगी ताकि जिस तरह मेरे मन में अम्मा जी को लेकर कड़वी यादें हैं उसके मन में ऐसा कभी भी ना हो। दीदी हाथ जोड़कर तुम्हारा धन्यवाद करती हूं तुमने मेरी आंखें खोल दी दी दी।"

"अब आंसू मत बहाओ भाभी... जो हो गया सो हो गया। देखो यहां तुम रो रही हो और वहां तुम्हारी रीना उससे भी देखा नहीं जा रहा कि तुम यूं आंसू बहाओ। जाओ भाभी जाकर उसे गले लगा लो ताकि इन आंसुओं में दिलों का मेल भी घूल जाए और एक नए रिश्ते की एक नई शुरुआत हो।"

संध्या जी ने भी जाकर अपनी बहू रीना को गले लगाया। आंसुओं की धारा दोनों तरफ से बह रही थी। दोनों सास बहू को इस तरह देख कर सीमा की भी आंखें भर आई और चुपचाप वहां से रवाना होने लगी तभी संध्या जी की आवाज आई।

"सीमा दीदी मेरे घर की खुशियां तो लौटा दी। परिवार में मिठास घोल दी। क्या इतना भी हक नहीं दोगी की तुम्हें मिठाई खिलाकर मुंह मीठा करवा सकूं जो ऐसे ही चुपचाप चल दी।"

"भाभी मिठाई फिर कभी खा लूंगी फिलहाल आप दोनों एक साथ है....... आपस में खुश है....... गलतफहमियां मिट चुकी हैं ........ यही मेरे लिए लड्डू है यही मेरे लिए मिठाई है और यह मेरी इमरती है।" इतना कहकर सीमा जी अपने घर के लिए रवाना हो गई।


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