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Ruchika Khatri

Drama

3  

Ruchika Khatri

Drama

आजादी बहू की

आजादी बहू की

6 mins
200

"निधि........ यार प्लीज एक कप कड़क चाय पिला दो........ सर फट रहा है ....... दिमाग खराब हो गया है मेरा। एम्पलाई नहीं गुलाम समझते हैं कंपनी वाले।" ऑफिस से आते ही अपना बैग सोफे पर रखते हुए विवान ने निधि से कहा और खुद फ्रेश होने चला गया। निधि समझ चुकी थी कि आज विवान का मूड ठीक नहीं है इसीलिए उसने भी फटाफट चाय बना दी और कुछ स्नेक्स लेकर रूम में चली गई तब तक विवान भी आ गया।


 "एक बात तो है तुम्हारे हाथ की चाय पीकर सर दर्द मानो छूमंतर हो जाता है।" चाय का पहला घूंट पीते ही विवान ने कहा।

 "अच्छा...! यह बात है क्या.....? पर यह तो बताओ कि सर दर्द हुआ क्यों था? फिर क्या हो गया...?"


      "अरे यार वही...... बॉस के रोज के नाटक है मानो गुलाम बना दिया हो इतने इंस्ट्रक्शंस मिलते हैं कि उनकी बात मानते मानते इंसान पागल हो जाए।" चाय का कप टेबल पर रखते हुए विवान ने कहा। निधि ने भी झूठे कप उठाये और किचन में रखने चली गई। दरअसल निधि और विवान अपने छोटे से परिवार के साथ आगरा में रहते हैं। परिवार में निधि विवान उनका 5 साल का बेटा और निधि के सास-ससुर है।


     टूरिस्ट प्लेस होने की वजह से विमान का टूर एंड ट्रेवल्स का बहुत अच्छा बिजनेस था लेकिन पिछले साल महामारी के चलते उसका बिज़नेस पूरी तरीके से ठप हो गया। कुछ महीने तो सेविंग से काम चल गया लेकिन बाद में घर के आर्थिक हालात को देखते हुए विवान ने नौकरी करने का फैसला कर लिया। जल्दी ही उसे एक कंपनी में जॉब मिल गई हालांकि वेतन थोड़ा कम था लेकिन घर पर बैठे रहने से तो बेहतर ही था। इसीलिए विवान ने जल्दी ही अपनी नौकरी शुरू कर दी। लेकिन विवान के लिए असली परीक्षा अब शुरू हुई थी क्योंकि उसने शुरू से अपना बिजनेस संभाला था जिसमें उसे पूरी आजादी थी लेकिन नौकरी में किसी भी तरीके की आजादी नहीं थी। जिसकी वजह से अक्सर उसका मूड खराब हो जाता था किसी के आदेश अनुसार काम करना उसने सीखा ही नहीं था उसने तो मालिक बनकर हमेशा दूसरों पर हुकुम चलाया था लेकिन आज जब वह खुद जब इस स्थिति में आया है तो बहुत परेशान हो चुका है।


      "विवान........ मैं समझती हूं कि किसी और का हुकुम बजाना तुम्हारे लिए बहुत डिफिकल्ट है लेकिन इस समय हमारे घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए तुम्हारा नौकरी करना ही एकमात्र रास्ता है। पापा जी की पेंशन भी इतनी ज्यादा नहीं है कि घर चल सके उस पर बीमारी के बाद खर्च भी बढ़ गए हैं।"


      "निधि मैं सब कुछ जानता हूं........ अब तुम भी मुझे पाठ मत पढ़ाओ। तुम क्या जानो किसी की गुलामी करना क्या होता है....... जानती भी हो काम का कितना प्रेशर होता है जो मुझे ज्ञान देने बैठ गई। 1 दिन की छुट्टी भी चाहिए होती है ना तो एप्लीकेशन लगाकर 4 बार रिक्वेस्ट करनी पड़ती है तब जाकर छुट्टी मिलती है....... काम करते-करते थक जाओ और 5 मिनट अगर मोबाइल हाथ में उठा लो तो बोस ऐसे देखता है मानो पूरे दिन फ्री बैठकर सैलरी ले रहे हो और उसके बाद भी हर काम में गलतियां निकालता है...... किसी के सामने भी कुछ भी कह देता है लेकिन क्या करूं मजबूरी है ना दो बातें सुननी पड़ती है और उसके बाद भी घर आकर अगर तुमसे कुछ कहो........ तो तुम भी मुझे ही समझाने बैठ जाती हो। तुम क्या जानो किसी के अंडर में काम करना मतलब बंधुआ मजदूरी.... गुलामी होता है।" अपना गुस्सा निधि पर उतारते हुए विवान ने कहा। लेकिन न जाने क्यों विवान की बात सुनकर निधि को हंसी आ गई।


      "वाह निधि......... अब तुम मुझ पर हंस भी रही हो....?" विवान ने कहा।


      "विवान हंस तो मैं रही हूं लेकिन तुम पर नहीं। आज मुझे बड़ा अजीब लग रहा है। आपने तो बहुत आसानी से कह दिया कि तुम्हें क्या पता गुलामी क्या होती है हुकुम बजाना क्या होता है.....? लेकिन एक बात बताओ शादी के बाद इन 7 सालों में मैंने और किया ही क्या है...? तुम कहते हो तुम्हें हर काम बॉस के आदेश अनुसार करना पड़ता है लेकिन यहां घर पर मेरे लिए तो बहुत सारे बॉस है और मुझे उन सब के हिसाब से काम करना पड़ता है। एक को खुश करती हूं तो दूसरा रूठ जाता है मेरे लिए यह सब कुछ कितना मुश्किल होता होगा....? और क्या कह रहे थे आप एक छुट्टी भी चाहिए तो परमिशन लेनी पड़ती है मेरे साथ भी तो यही है पहले आप को मनाती हूं फिर मम्मी जी को, मम्मी जी कहती है तुम्हारे पापा जी से पूछ कर बताऊंगी कितने नखरे होते हैं....... यहां तक की उस दिन जब मम्मी की तबीयत खराब थी और मैं अचानक मायके जाने लगी तो मम्मी जी ने क्या कहा था कि तुम्हारे पापा ने परमिशन लेने के लिए फोन ही नहीं किया..... क्यों......? अगर माता पिता को बेटी की जरूरत हो तो भी क्या बेटी का परमिशन लेना जरूरी है....? आप फोन हाथ में उठाते हो तो बोस आपकी तरफ ऐसे देखते हैं मानो आप फ्री की तनख्वाह ले रहे हो और मैं, मैं अगर कुछ देर खाली बैठ जाऊं तो मम्मी जी को सारे काम याद आ जाते हैं। पूरे दिन में एक घंटा भी अपने लिए निकालना मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि अगर मैं कपड़े भी पहनती हूं तो वह भी आप लोगों की पसंद के होते हैं "निधि यह सूट अच्छा नहीं लग रहा" "निधि आज त्यौहार है साड़ी पहनना" "मुझे यह रंग मुझे पसंद नहीं आया इसे मत पहनना।" यह शब्द आपके ही होते हैं ना। बाजार से अगर कुछ अपनी पसंद का ले आओ तो कहते हो जरूरत क्या थी और वही अगर आप कुछ ले आओ तो गैर जरूरी सामान भी अच्छा लगने लगता है। और हां हर काम में गलती निकालने वाली बात जो आप कह रहे हैं ना वह तो पिछले 7 साल से मेरे साथ हो रहा है....... हर बात में गलत ही निकाली जाती है, हर काम में कमी ही दिखती है और उस पर भी किसी के सामने भी कुछ भी बोल दिया जाता है बिना यह सोचे समझे कि मेरी भी कोई इज्जत है। अब बताइए क्या मैं नहीं जानती कि किसी और के अंडर में काम करना क्या होता है कैसा लगता है जब आपका कोई हुकुम चलाता है क्या यह गुलामी नहीं है क्यों बहू को घर का सदस्य नहीं बल्कि गुलाम समझा जाता है।" आज निधि अपने मन की पूरी भड़ास निकाल रही थी और एक एक शब्द सही भी था इसीलिए जो विवान थोड़ी देर पहले तक गुस्सा था अब सर झुकाए निधि की बातों का मंथन कर रहा था।


       "तुम सही कहती हो निधि...... वाकई में भारत को आजाद हुए तो 75 वर्ष होने को है लेकिन भारत की बहू आज भी आजाद नहीं है। उन्हें तो चैन से अपनी जिंदगी जीने का भी हक नहीं दिया गया है लेकिन आज तुमने मेरी आंखें खोल दी। मैं जानता हूं कि सब कुछ इतना जल्दी नहीं बदल सकता लेकिन कोशिश करूंगा कि धीरे-धीरे ही सही सब कुछ बदल जाए और इस घर की बहू को बहू होने की सारी हक और आजादी मिले इतना कहकर विवान में निधि के हाथों को चूम लिया।"


दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी या रचना आपके विचार जरूर साझा कीजिएगा।

धन्यवाद



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