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Ruchika Khatri

Drama

3  

Ruchika Khatri

Drama

साथ निभाना साथिया

साथ निभाना साथिया

7 mins
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      "सुनिए...... मैं सोच रही थी कि क्यों ना हम आइसक्रीम खाने चले।" मैंने पति रविन्द्र से डरते डरते कहा।


      "मुझे नहीं खानी आइसक्रीम.......... अगर तुम्हें खानी है तो कल जाकर खा लेना और वैसे भी यह समय सोने का है रोड पर जाकर आइसक्रीम खाने का नहीं.....समझी....!" बड़ी ही बेरुखी से रविन्द्र ने जवाब दिया और कमरे में जाकर सो गए। आज एक बार फिर मैं अपने मन की ख्वाहिश मन में दबाकर बैठ गई।


       रविंद्र तो कमरे में चले गए लेकिन मैं यही हॉल में बैठी बैठी सोचने लगी कि "क्या यही है मेरा नसीब........ क्या मैं हमेशा इसी तरीके से अपने पति के प्यार और साथ के लिए तरसती रहूंगी?" आज मेरी शादी को लगभग 2 साल हो गए हैं लेकिन इन 2 सालों में मुझे रविंद्र का साथ कभी नहीं मिला। हां डांट जरूर मिली दरअसल मेरी और रविंद्र की शादी केवल दोनों परिवारों की सहमति से हुई थी। मैं एक छोटे से शहर की रहने वाली साधारण सी लड़की थी पापा ने लाखों रुपए दहेज के लिए जोड़ कर रखे थे। लेकिन फिर भी एक साधारण सी लड़की के लिए योग्य वर मिल पाना मुश्किल हो रहा था। कभी मेरा साधारण रंग रूप बीच में आ जाता, तो कभी पापा के द्वारा दिया जाने वाला दहेज लड़के वालों को कम लगता। मेरी शिक्षा, मेरे गुण किसी को दिखाई नहीं दे रहे थे। इसी बीच रविंद्र का रिश्ता आया वो भी मेरी तरह संयुक्त परिवार में पले बढ़े थे लेकिन अपनी नौकरी की वजह से शहर में बस गए और फिर वहीं पर अपना बिजनेस शुरू कर दिया। रविंद्र केवल अपने बिजनेस में ही ध्यान देना चाहते थे शादी करना उनकी लिस्ट में था ही नहीं। लेकिन माता-पिता ने जिद करके जब शादी करने के लिए मना लिया तो उन्होंने बिना मुझसे मिले, मेरी तस्वीर देखें इस शादी के लिए हां कर दिया क्योंकि यह शादी उनके लिए केवल एक समझौता थी।


       शादी वाले दिन मैं बहुत खुश थी इतनी बार रिजेक्ट होने के बाद एक पढ़ा-लिखा बिजनेसमैन लड़का मिला था और वह भी बड़े शहर में तो लगा कि शायद सारे सपने सच हो गए। लेकिन मैं नहीं जानती थी कि मेरे सपने केवल सपने ही रह जाएंगे। रविंद्र से शादी के केवल 2 दिन बाद ही मैं उनके साथ उनके शहर में आ गई क्योंकि रविंद्र नहीं चाहते थे कि ज्यादा छुट्टियां हो और उनके बिजनेस में नुकसान हो जाए। इस बीच इतना समय ही नहीं मिल पाया कि एक दूसरे के साथ प्रेम भरी बातें हो और ना ही एक दूसरे को समझ पाए। ससुराल में 2 दिन रह कर तीसरे दिन में रविंद्र के शहर में आ गई अब तक हम दोनों के बीच में पति-पत्नी जैसा कोई भी रिश्ता नहीं था। शहर आते हैं मैंने अपनी गृहस्थी संभालने में अपने आप को पूरी तरीके से लगा दिया। रविंद्र अपने बिजनेस में व्यस्त हो गए सुबह 8:00 बजे निकल जाते थे तो 10:00 बजे से पहले घर आते ही नहीं थे। दोपहर को खाने के लिए भी फोन करो तो कहते थे मैं बाहर खा लूंगा तुम अपने देख लो और यही हाल रात के खाने का भी था। नई-नई शादी हुई थी मेरी लेकिन चंद लम्हे भी मुझे अपने पति के साथ बिताने को नहीं मिले थे। फिर लगा कि शायद इस समय थोड़ी व्यस्तता होगी इसीलिए कुछ समय ऐसे ही गुजरने दिया। लेकिन हालात वहीं के वहीं थे। शॉपिंग के लिए कहती तो कार ड्राइवर और कार्ड तीनों ही मिलते लेकिन साथ नहीं मिलता। घर में सारी सुख सुविधाएं थी लेकिन मेरे साथ चाय का एक कप पीने वाला कोई नहीं था। एक बार उनके ऑफिस के एक पार्टी में जाना हुआ तब पता चला कि शहर की महिलाएं किस तरीके से खुद को अप टू डेट रखती है। अब मैं भी उन्हीं को कॉपी करने लगी लगा कि शायद रविंद्र जी को ऐसी ही महिलाएं पसंद है मुझ जैसे सीधी-सादी नहीं। लेकिन वही ढाक के तीन पात। रविंद्र जी पर मेरी किसी भी प्रयास का कोई भी असर दिखाई नहीं दे रहा था उन्हें तो केवल और केवल अपने बिजनेस से ही मतलब था। जब साथ देने के लिए कहती तो कहते थे कि "रात भर तुम्हारे साथ ही होता हूं ना" अब एक पुरुष को कौन समझाए कि रात भर के साथ और प्यार में बहुत फर्क होता है। खैर इस बीच हम दोनों के बीच थोड़ा बहुत सामंजस्य बैठने लगा था अब मैं समझ चुकी थी कि रविंद्र के लिए मैं केवल वह औरत हूं जो उनके घर की देखभाल करती है इस से ज्यादा कुछ भी नहीं। सोफे पर बैठे-बैठे वही नींद आ गई सुबह आंख खुली तो रविंद्र ब्रेड पर बटर लगा कर खा रहे थे और ऑफिस जाने के लिए तैयार थे। मन में एक बार फिर से विचार आया कि क्यों ना एक बार आमने-सामने बैठकर रविंद्र से बात की जाए क्योंकि इस तरीके से तो जिंदगी चल नहीं सकती।


     "रविंद्र....... मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"

     "बोलो....... कुछ चाहिए.... कार्ड यही रख कर जाऊं....?" रविंद्र के मुंह से कार्ड का नाम सुनते ही न जाने क्यों मुझे गुस्सा आ गया।


      "मुझे कार्ड नहीं चाहिए....... मुझे मेरे पति का साथ चाहिए।"


      "साथ चाहिए......... मतलब क्या है तुम्हारा....... तुम्हारे ही तो साथ हूं। खैर छोड़ो........ मेरे पास टाइम नहीं है मैं जा रहा हूं।"


     "रविंद्र आज आपको मेरी बात सुननी पड़ेगी और समझनी भी पड़ेगी। हर बार आप ऑफिस जाने का बहाना करके पीछा छुड़ा देते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अब मैं चुप रहूंगी आखिर आप चाहते क्या है......? अगर आपको मुझसे शादी नहीं करनी थी तो फिर पहले ही मना कर देना चाहिए था ना ताकि कम से कम मैं यू अकेले आपके साथ के लिए तड़प तो नहीं रही होती ना.....। आप कहते हैं कि आप मेरे साथ है कहां है आप मेरे साथ...... केवल बिस्तर में.......? क्या कभी आपने मेरे साथ शॉपिंग की है........ क्या कभी घर के काम में आपने मेरी मदद की है........ कभी मेरे साथ बैठकर थोड़ी देर बात की है क्या कभी मुझसे ही पूछा है कि मैं क्या चाहती हूं अगर आप से बात भी करना चाहूं तो आपको यही लगता है कि मुझे पैसे चाहिए। नहीं चाहिए मुझे आपके पैसे........ मुझे आपका साथ चाहिए। मैं सुबह की चाय आपके साथ पीना चाहती हूं दोपहर का खाना ना सही लेकिन रात का खाना आपके साथ खाना चाहती हूं अपने हाथों से आपको परोसना चाहती हूं, संडे को आपके साथ मूवी देखने जाना चाहती हूं बारिश के मौसम में भुट्टे का आनंद लेना चाहती हूं आइसक्रीम खाना चाहती हूं एक ही नारियल में दो स्ट्रॉ लगाकर नारियल पानी पीना चाहती हूं। प्यार के हर छोटे छोटे लम्हे को हर खुशी को महसूस करना चाहती हूं। रविंद्र ईश्वर ने हमें जितना पैसा दिया है हमें उसी में खुश रहना चाहिए ज्यादा के चक्कर में आप यह अनमोल समय गवां रहे हैं। यह लम्हे यह प्यार फिर लौटकर नहीं आएगा एक समय के‌ बाद शरीर भी साथ नहीं देगा इसीलिए बेहतर है कि इस भागती दौड़ती जिंदगी में से कुछ लम्हे अपने लिए...... हमारे लिए...... निकाल लीजिए ताकि यह हसीन यादें हमारे दिल में हमेशा के लिए समा जाए।" गुस्से और दर्द में भीगी हुई आंखों से मैंने अपने मन की भड़ास आज निकाल दी


      "सही कह रही हो तुम निशा अपने बिजनेस और ऑफिस के चक्कर में मैंने कभी तुम पर ध्यान नहीं दिया। कभी हमारे रिश्ते को आगे बढ़ाने के बारे में नहीं सोचा, कभी यह नहीं सोचा कि तुम्हारे भी कुछ सपने होंगे मुझे तो हमेशा यही लगा कि अगर मैं तुम्हें आर्थिक रूप से खुश रखता हूं तो मैं तुम्हें जिंदगी की हर खुशी दे सकता हूं। लेकिन मैं गलत था असली मजा असली खुशी तो एक दूसरे के साथ समय बिताने में है एक दूसरे का साथ देने में खुशियों भरे लम्हे चुरा लेने में। मैं वादा करता हूं तुमसे की आज के बाद तुम्हें और हमारे रिश्ते को पूरा पूरा समय दूंगा। तुम्हें शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगा।" रविंद्र के मुंह से यह सब कुछ सुनकर हैरान थी क्योंकि मैंने तो अपने मन का गुबार निकाला था लेकिन नहीं जानती थी कि उसका असर भी हो जाएगा खैर मेरे मुंह से एक भी शब्द नहीं मिल निकला सिर्फ आंखों में आंसू आ गए


      "अरे निशा....... ये क्या आंखों में आंसू क्यों आ गए अब क्या आंसू बहाते बहाते मेरे लिए खाना बनाओगी.......? वैसे तुम कहो तो आज रात को हम दोनों मिलकर खाना बनाएंगे ज्यादा कुछ तो मुझे आता नहीं है...... लेकिन हां....... दाल चावल एक बार बना चुका हूं तो वही ट्राई करेंगे....... ठीक है।"


     "जो हुक्म सरकार।" अपने आंसुओं को पोंछते हुए मेरे मुंह से बस यही निकला और फट से जाकर रविंद्र को गले लगा लिया। आज पहली बार मैंने प्रेम से परिपूर्ण हो कर अपने पति को गले लगाया था।


दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना अपने विचार जरूर साझा कीजिएगा।



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