इच्छित जी आर्य

Tragedy

3.8  

इच्छित जी आर्य

Tragedy

कातिल - आशिक़ी

कातिल - आशिक़ी

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अभी रिंकी की उम्र चार साल भी नहीं हुई थी कि उसकी मां ने उसका नाम स्कूल में लिखवा दिया था। वो मां अपनी बेटी को हर जगह, हर चीज में सबसे आगे देखना चाहती थी। रिंकी ने जब से बोलना शुरू किया था, उसके मुंह से निकलने वाला पहला नाम भी तो ‘मां‘ ही था... ‘म‘ से ‘मां‘। उठते-बैठते, खेलते-कूदते, सुबह से शाम तक इधर से उधर रिंकी जहाॅ भी जाती, हर जगह बड़ी बेकरारी से उसकी हर खुशी का ख्याल रखने वाली उस औरत को, रिंकी ने अपने साथ के और बच्चों की देखा-देखी ‘मम्मी‘ कहना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे वही रिंकी अब जब वो स्कूल में पढना-लिखना सीख रही थी, तो एक दिन उसकी टीचर ने बताया ‘म‘ से ‘मम्मी‘ होता है। उस दिन उसने घर लौटते ही ये बात अपनी मम्मी को बतायी और पूरा दिन जिससे भी मिली, उसे यही बताती रही कि ‘म‘ से ‘मम्मी‘ होता है।

एक दिन रिंकी जब स्कूल से लौट कर आयी, तो उसने देखा कि उसके पापा बहुत परेशान हालत में एक कुर्सी पर बैठे हुए थे। उसकी मम्मी बिस्तर पर लेटी हुयी आंखों से आंसू बहाये जा रही थीं। रिंकी को देखते ही मम्मी ने उसे अपने गले से चिपका लिया और जोर-जोर से कहने लगीं-

‘‘मैं तुम्हें छोड़ कर नहीं जाऊंगी। कहीं-नहीं जाऊंगी। कभी नहीं जाऊंगी।‘‘

मम्मी ऐसा क्यों बोल रही थीं, किसलिए बोल रही थीं, रिंकी की समझ में कुछ नहीं आया। पर मम्मी ने उस वक्त जो भी किया, पल भर को रिंकी की आंखों में भी आँसू आ ही गये।

फिर एक दिन जब रिंकी स्कूल से लौटकर घर आयी, उस दिन उसके घर पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। उसके पापा एक कोने में बैठ कर रो रहे थे। घर पर जिन लोगों ने भीड़ लगा रखी थी, सभी की आंखों में आंसू थे। रिंकी को देखते ही हर कोई उसे गले से चिपटा कर, खूब प्यार कर रहा था। वहाॅ रिंकी ने देखा कि पिछले कई दिनों से लगातार बिस्तर पर लेटी उसकी मम्मी को सब लोगों ने मिलकर जमीन पर लिटा दिया और उनकी आंखों को बन्द कर के, उन पर सफेद चादर ओढा दी। थोड़ी देर बाद कुछ लोगों ने मिलकर रिंकी की मम्मी को चारों तरफ से सफेद चादर से बाॅध दिया और कन्धों के उपर उठा लिया। फिर थोड़ी दूर एक जगह पर जा कर, ‘मम्मी‘ को लकड़ियों के ढेर पर रख कर आग लगा दी गयी। रिंकी हाथ पटक-पटक कर, पापा नाम के उस आदमी की गोद से उतरने की कोशिश करते हुए लगातार चिल्लाती रही कि आग से उसकी ‘मम्मी‘ को दर्द होगा, उसे कोई वहाॅ से हटा ले। पर किसी ने उसकी एक न सुनी।

उस दिन के बाद रिंकी को उसके पापा ने उस ‘दादी‘ नाम की एक औरत से मिलाया। दादी आंखों पर मोटा सा चश्मा लगाती थी और देखने में ही काफी गुस्सैल दिखती थी। उसके घर में आने के बाद से रिंकी का स्कूल जाना बंद हो गया। वो दादी घर में बैठी रिंकी से पूरा दिन कुछ न कुछ काम करवाती रहती थी। थोड़े दिन तो वो दादी वहाॅ उनके घर में उनके साथ रहीं, उसके बाद रिंकी को उसके पापा ने बताया कि वो दोनों दादी के घर रहने जा रहे हैं। रिंकी ने उन्हें मना करने की बहुत कोशिश की, पर पापा ने उसकी बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। नये घर में आने के बाद रिंकी के सारे दोस्त भी छूट गये और वो पूरा दिन घर में अकेले बैठ कर दादी के बताये सारे काम करने को मजबूर हो गयी।

थोड़े दिन बाद रिंकी के पापा ने उसको बताया कि एक नयी मम्मी घर में आने वाली हैं। पापा की बात सुन कर रिंकी बहुत खुश हो गयी। फिर एक दिन एक नयी औरत उस दादी के घर में आ भी गयी। वो देखने में बहुत सुन्दर लगती थी और वो हमेशा रिंकी के पापा के साथ ही रहती थी। पापा ने रिंकी को बताया कि वही उसकी नयी मम्मी हैं। पर ये मम्मी, पहले जैसी मम्मी की तरह नहीं थी। वो भी दादी की ही तरह उसे खूब काम बताती रहती थी और कभी प्यार भी नहीं करती थी। हाॅ, कभी-कभी जब पापा कमरे में होते थे, तो जाने क्यों वो रिंकी को अपने बगल में बिठा लेती थी और खूब दुलारती भी थी। पर बाकी पूरा दिन वो रिंकी को बस डाॅटती ही रहती थी। एक दिन रिंकी ने ये बात अपने पापा को बतायी, तो अगले दिन जाने क्यों उस नयी मम्मी ने रिंकी को एक छड़ी से बहुत-बहुत मारा। उस नयी मम्मी ने उसे पूरा दिन खाना भी नहीं दिया।

थोड़े दिनों के बाद एक दिन वो मम्मी कहीं बाहर से जब घर लौट कर आयी, तो उसकी गोद में एक खिलौना था... आवाज करने, रोने, गाने वाला खिलौना। जब से वो घर में आया था, सभी केवल उसी से खेलते रहते थे। पर वो मम्मी रिंकी को कभी उस खिलौने से खेलने नहीं देती थी और रिंकी को कोई पूॅछता नहीं था। हाॅ, एक बार रिंकी के पूॅछने पर पापा ने इतना जरूर बताया था कि उस खिलौने का नाम भाई था। कभी-कभी रिंकी को भाई पर बहुत गुस्सा आता था और वो उससे जलती भी थी कि उसकी मम्मी, उसकी दादी और उसके पापा सब उससे खेलते हैं और रिंकी से कोई बात भी नहीं करता। एक दिन मम्मी बाहर कुछ काम कर रही थीं, तभी वो खिलौना सोफे से लेटे-लेटे खुद-ब-खुद गिर पड़ा और जोर से चिल्लाने लगा। रिंकी ने पास जा कर उसे प्यार से चुप कराना चाहा, तो मम्मी अन्दर आ गयीं और उन्होंने रिंकी को बहुत-बहुत पीटा। अब रिंकी को मम्मी के साथ-साथ उस खिलौने से भी डर लगने लगा था।

उस दादी के घर में रहते हुए रिंकी जब एक शाम को घर में झाड़ू लगा रही थी, उसने देखा कि उसके पापा दो लोगों के कंधों पर हाथ रखकर घर वापस लौटे। पापा के सर से लाल-लाल पानी गिर रहा था। अगले दिन सुबह उसके घर में लोगों की भीड़ लग गयी। लोगों ने उसके पापा को सफेद कपड़ों से ऐसे लपेट दिया जैसे एक बार उसकी मम्मी को लपेटा था। फिर सब लोग उसके पापा को उठाकर कहीं ले गये। वो चिल्ला-चिल्ला कर सभी से पूछती रही, पर किसी ने कुछ नहीं बताया कि उसके पापा को कहाॅ ले जाया जा रहा है। थोड़े दिनों बाद एक और आदमी उस घर में आकर उसके पापा की तरह रहने लगा। उस आदमी को रिंकी का भाई पापा कहता भी था। पर रिंकी की मम्मी ने उसे, उस आदमी को ‘अंकल‘ नाम से बुलाने के लिए कहा था। थोड़े और दिनों के बाद रिंकी की मम्मी ने उसे खुद को मम्मी बुलाने से भी मना कर दिया। अब वो अपनी मम्मी को आंटी बुलाती थी।

रिंकी अब पूरा दिन घर के काम करती थी, तभी उसे खाना मिलता था। जिस दिन उससे कोई काम गलत हो जाता, पूरा दिन उसे मार पड़ती रहती थी... कभी हाथ से, कभी झाड़ू से, तो कभी डंडे से। और एक दिन तो हद ही हो गयी। उस दिन रिंकी का बदन ठंड से बहुत काॅप रहा था। काम करते हुए उसके हाथ से चाय की एक प्याली गिर कर टूट गयी। तब उस आंटी ने उसे चूल्हे की जलती लकड़ी से मारा।

घर में घुट-घुट कर जीती वो रिंकी, धीरे-धीरे ‘बाहर‘ नाम के शब्द को भी भूलती जा रही थी कि अचानक एक दिन खाकी रंग के कपड़े पहने कुछ लोग उसके घर में आये। उनके साथ एक आंटी जैसी औरत थी। उन लोगों ने रिंकी को जीप में बिठाया और फिर वहाॅ से ले जाकर, एक घर के बाहर छोड़ दिया। वो आंटी रिंकी को घर के अन्दर ले गयीं, जहाॅ रिंकी जैसे और भी बहुत बच्चे थे। दो-चार दिन में ही रिंकी को वहाॅ बहुत अच्छा लगने लगा। थोड़े ही दिन में एक बार फिर से रिंकी का नाम स्कूल में लिखा दिया गया। रिंकी और उसके साथ के उसके जैसे और बच्चों का ख्याल रखने वाली आंटी, रिंकी को अब बहुत अच्छी लगने लगी थी। एक दिन रिंकी ने आंटी के पूॅछने पर, उनके बगल में बैठकर उन्हें वो सब कुछ बताया, जो अब तक उसके साथ हुआ था। रिंकी की उन बातों को सुन कर आंटी रोने लगी और उसे उसने जोर से अपने सीने से चिपका लिया।

रिंकी अब बहुत खुश थी। पर एक दिन जब वो स्कूल से लौट कर आयी, तो आंटी के पास जाकर उनके गले से चिपक कर रोने लगी। आंटी ने पूॅछा ‘क्या हुआ‘, तो रिंकी सुबकते हुए बोली-

‘‘आज स्कूल में टीचर ने बताया ‘म‘ से ‘मम्मी‘ होता है। उन्होंने जब मुझसे पूॅछा, तो मैंने कह दिया... ‘म‘ से ‘मम्मी‘ नहीं होता। टीचर ने मुझे पूरा दिन बेंच पर खड़ा रखा।‘‘

रिंकी की बात सुन कर आंटी ने उसे अपने गले से चिपका लिया और कहने लगीं-

‘‘हां बेटा! तू सही कर रही है। ‘म‘ से ‘मम्मी‘ नहीं होता। कम से कम तेरे लिए तो ‘म‘ से ‘मम्मी‘... नहीं होता।‘‘



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