काश ! समाज का डर ना होता
काश ! समाज का डर ना होता
विदाई हुई थी साधना की। घर सूना-सूना हो गया। मम्मी-पापा ने रो-रो कर ऑँखें सुजा ली थी। जान से प्यारी बेटी ना जाने कैसे रहेगी ? नया घर, नया माहौल भूख लगेगी तो कैसे कहेगी ? यहाँ तो शोर मचाकर पूरा घर सिर पर उठा लेती थी। कुछ तो दो खाने को,
अभी देर कैसे हो गयी, बनाने में कहने लगती, तब कुछ हल्का सा दे देती तब शांत होती। कैसे कहेगी वहाँ ? मधु जी ने रोते हुए मनीष जी से कहा। मनीष जी की आँखें भर आई।
शाम को फोन कर देंगे। मधु ने फोन मिला दिया।
हैलो साधना बेटा।
नमस्ते मम्मी-पापा, कैसे हैं, बहुत याद आ रही है।
बेटा रोना नहीं, कल पग फेरे के लिये आना है। हमारा भी मन तुम में ही पड़ा है। जल्दी आजा। सब ठीक है वहाँ ?
हाॅ॑ मम्मी, आज संगीत है। तैयार हो रही थी। कल घुमने जा रहे हैं। वापस आकर पग फेरे की रस्म होगी। ओहहह् अरे ऐसा क्यूँ ?
मम्मी, पता नहीं, कम छुट्टी मिली है ,रोहित को शायद इसलिए।
अच्छा चल, तू तैयार हो जा, हम दोनों बाद में बात करते हैं।
ओके मम्मी-पापा, आई लव यू।
ससुराल वाले जो करेंगे अब तो वो ही होगा। फोन पर बात हो जाती थी साधना से पर साधना की आवाज में वो खुशी महसूस नहीं होती जो मम्मी-पापा सुनना चाहते थे। सोचा, नया घर है, नया माहौल, समय लगेगा। हो सकता है थोड़ी झिझक हो, कुछ माँगने में या कह ना पाती हो कुछ।
पग फेरे का समय भी आ गया। रोहित और साधना दोनों आये। साधना खूब रोती जा रही थी। रोहित को खाना खिलाकर आराम करने को कह आये, मनीष का मन भी बेटी से बात करने को व्याकुल था।
साधना क्या हुआ ? क्यूँ रो रही है इतना ? जब तेरी मम्मी आई थी पहली बार तो उसे भी समय लगा घर में मिलने में।
पापा वो सब अपने मिलकर बात करते रहते हैं, मुझसे नहीं। जब मैं आती हुूँ तब भी बात नहीं करते।
बेटा उनके लिये नयी हो, समय लगेगा। हर घर का माहौल एक सा नहीं होता। हम रोहित को बतायेंगे।
शाम को जाते समय रोहित से मधु ने कहा हमारी बेटी अकेली नहीं रही, आप सब इसको साथ ही रखना, बोलना इससे। अकेलापन ना महसूस हो।
रोती हुई साधना विदा हो गई।
रोहित और उसके माता-पिता ने आते ही पूछा- क्या दिया।
टीका १०००....
और हमारे कपड़े...
ये रहे मम्मी जी, साधना ने देते हुए कहा।
जितना सोचा था वैसा नहीं किया तुम्हारे घरवालों ने। सोचा था बीस लाख की तो होगी अकेली हो।
साधना के पैरों तले जमीन खिसक गई हो जैसे।
बीस से ज्यादा लग गये मम्मी जी, उधार लेना पड़ा पापा को।
अच्छा हमें मत सुनाओ जाओ, बहुत हुई मेहमान गिरी। रसोई संभालो।
साधना रोती हुई काम में लग गयी। अब तो रोज का ताने सुनाना हो गया। रोहित को नहीं सुनना था साधना की बातें, जो मम्मी-पापा कहते वो ही सही।
साधना अपने मम्मी-पापा को सब नहीं बताती, बस रूखा व्यवहार बताया, कहीं दुःख ना हो। साधना के पापा-मम्मी भी साधना को बड़ों की इज्जत करना, जवाब मत देना, सब सही हो जायेगा कहकर मना लेते।
समय बीतता गया साधना को बेटी हो गयी। साधना घर भी संभालती और बेटी भी। घर में किसी का सहयोग नहीं था, बस ताने मिलते।
घर से सोने के पहाड़ लाई हो क्या ?
सासू माँ की बात पर रोहित, साधना पर हाथ तक उठा देता। सारा दिन काम, अपने लिए सुकून का समय नहीं। साल बीत गया। मम्मी-पापा आना चाहते तो साधना बहाना बना देती कि हम बाहर जा रहे हैं या कुछ और।
एक दिन जब साधना को खूब मारा रोहित ने, सब्जी में नमक तेज होने पर, तब साधना ने मम्मी-पापा को रो-रो कर फोन किया। तब दोनों आये और रोहित और ससुराल वालों को बहुत समझाया और चेतावनी भी दी।
आगे से ऐसा ना हो। हम घर ले जायेंगे। उस दिन से ज्यादा रोहित मारने लगा, क्यूँ बताया घर, मारने की बात ?दहेज की माँग करते रहते। मारना बहुत बढ़ गया बात-बात पर।
उसके बाद साधना का फोन पर बात करना बन्द हो गया और मानसिक तनाव से जुड़ने लगी। साधना को बस बेटी और घर का काम रह गया।
ना कोई साधना से बोलता था ना कोई आता-जाता। इधर साधना के मारने वाली घटना के बाद साधना के पापा को हार्ट अटैक आया पर चिंता ना करने की सलाह दी तब साधना ने घर कि बात भी बतानी बंद कर दी।
साधना रोती-चीखती पर कोई उसकी मदद के लिये नहीं था। वो ऐसी हो गई जैसे चिड़िया के अपने घौंसले में पंख काट दिये हो वो फड़फड़ाती पर उड़ ना पाती।
सास ना बाहर जाने देती ना फोन करने। घर से फोन आया तो वहीं खड़ी रहती। चारदीवारी में बंद।
साधना के मम्मी-पापा अब सब समझ रहे थे, बेटी गलत घर चली गयी थी। लाने को सोचते पर आस, पड़ोस रिश्तेदार सब क्या कहेगें ? बातें सोचकर घर ना ला सके।
पर आज फोन की घंटी बजती साधना की मम्मी ने फोन उठाया वो सुना जो कभी सोचा ना था। जीते जी मर गये साधना के मम्मी-पापा।
साधना ने आत्महत्या कर ली, फाॅ॑सी लगा ली। सब झंझटों से मुक्ति पाली थी। आज साधना के मम्मी-पापा सोच रहे थे। काश, ये कदम उठाने से पहले कहा होता। काश, हमें बताती। अब सहन नहीं हो रहा। काश, हम पहले ले आते। काश, समाज आस पड़ोस, रिश्तेदारों का ना सोचा होता। काश, ये होता, काश, वो होता।
काश, फाॅ॑सी लगाने से पहले कितना याद किया होगा हमें, कितना रोई होगी अपनी बेटी को गले लगाकर। एक बार नहीं सोचा कि क्या होगा मम्मी-पापा का, बेटी का।
दोनों ने बेटी की जिन्दगी खो दी। बस अब सजा दिलानी थी ससुराल वालों को।
कितने मानसिक तनाव से गुजर रही थी हमारी बेटी, आज बस उनके मुॅ॑ह पर काश ही था।
कभी इस आस पड़ोस, कभी रिश्तेदार भी समाज के डर से हम बहुत कुछ खो देते हैं। समाज क्या कहेगा ?
काश बढ़ जाते जीवन मेें, मन की सुने।
दोनों ने मन की सुनी होती तो आज उनकी बेटी उनके पास होती।