काश मेरी आँखों के सामने होती
काश मेरी आँखों के सामने होती
महेश जी रेलवे में कार्यरत थे। एक बहुत ही खूबसूरत लड़की थी BSC कर रही थी। साइकिल से कॉलेज तक जाती थी।
महेश जी थोड़ा तल्ख़ व्यवहार के थे। उनसे पूरी कालोनी के बच्चे डरते थे। राहुल चार लड़कों के साथ सुबह और शाम को कालोनी का चक्कर लगाता था। और फिर अपने अपने घर पढ़ने चले जाते थे।
महेश जी के दरवाजे के सामने जरा सी आवाज तेज हो जाती तो चीखने लगते। उनका चिल्लाना और लड़कों पर शक करना जायज था। भई घर मे सयानी सुंदर लड़की थी।
उन्हें अपनी बेटी के लिए डर बना रहता था। लेकिन राहुल और बाकी लड़के दिखने में शरीफ लगते थे। बस एक वजह थी महेश जी चिल्लाते थे। तो लड़को को मजा आता था। इस वजह से महेश के दरवाजे तक लोग जाते थे।
एक दिन महेश जी की बेटी टेलीफोन पर काफी देर तक बात कर रही थी। इधर ऑफिस से महेश जी घर पर पत्नी से कुछ बात करना चाह रहे थे।
फोन बहुत देर मतलब घण्टो तक बिजी आ रहा था। तो महेश जी को गुस्सा आया रेलवे की ऑफिस बगल में ही थी। तो पैदल ही भागते हुए आये तो बेटी डर कर फोन काट दी।
अब महेश जी को बहुत भय लगने लगा कि कुछ तो गड़बड़ है। बेटी से कुछ नही पूछा सीधे अपनी पत्नी के पास चले गए। बोले कितनी देर से मैं फोन लगा रहा हूँ। फोन बिजी है। डॉली किससे बात कर रही थी।
पत्नी ने जवाब दिया मुझडे क्या पता मैं तो कपड़े धुल कर सुखाने आयी हूँ। मैंने बोला डॉली बेटा कपड़े सुखा दो तो बोली मैं पढ़ने जा रही हूं।
दूसरे ही दिन डॉली कॉलेज के बहाने किसी अपने मित्र के साथ चली गयी। अपने कमरे में एक चिठ्ठी लिखकर छोड़ गई। पापा मुझे माफ़ कर दीजियेगा। मैं उस दिन से ही डर गई थी। इस लिए हमने यह कदम उठाया। सॉरी पापा सॉरी मम्मी चिठ्ठी पढ़कर दोनो पति पत्नी परेशान की पता नही कहाँ होगी कैसे होगी।
दूसरे दिन राहुल और चार लड़कों के साथ सुबह घूमने निकला तो महेश जी के घर तक पहुँचा तो देखा कि आज महेश जी कुर्सी लगाकर बाहर ही बैठे हैं।
महेश जी को देखकर बच्चों ने रास्ता बदल दिया कि कहीं फिर न हम सबके ऊपर चिल्लाने लगें। राहुल और साथियों को मुड़ते हुए देखकर महेश जी चिल्लाने लगे। राहुल ..राहुल जरा सुनो। तुम लीग भाग क्यों रहे हो।
अब नही चिल्लाऊंगा अब बहुत पछतावा हो रहा है। काश तुम में से किसी का चुनाव की होती तो शायद मेरी "आंखों के सामने रहती"
आज मेरी आंखें डॉली को ढूढ़ रही हैं। बेटा तुम सबको कुछ मालूम हो तो बता दो। मेरी डॉली मुझे मिल जाती बेटा। हम दोनों के लिए एक ही सहारा थी।
राहुल ने बोला अंकल हम सबको कुछ भी नही पता है। बस हम लोग कॉलोनी में चक्कर लगाते थे। जब से आने डाँट लगाई है। तब से हम लोग आपके दरवाजे तक नही आते हैं।
और आप अपने आपको अकेला मत समझियेगा। हम लोग आपके साथ हैं। आएगी जरूर जब उसको पछतावा होगा। और उसको ठोकर लगेगी। आप परेशान मत होइए। मेरे घर का ये रहा नम्बर कभी भी कोई जरूरत हो तो फोन कर दीजियेगा। पापा या हम में से कोई आ जायेगा।
महेश जी को राहुल का व्यवहार बहुत पसंद आया। और राहुल महेश जी और उनकी पत्नी का बखूबी ध्यान रखने लगा। कोई भी बात होती तो राहुल बताएगा राहुल करेगा। पूरी जिम्मेदारी पत्नी की तबियत खराब हो गयी। महेश जी को बिल्कुल कुछ भी नही पता चलने पाया।
बस अपना ATM कार्ड दे कर बैठ गए। पूरा ख्याल राहुल का परिवार मिलकर किया । इस वजह से राहुल और महेश जी के घर का बहुत अच्छा सम्बंध बन गया।
तो दोस्तों आज की यह कहानी है कैसी लगी आप सभी को बिना वजह के किसी के ऊपर शक नही करना चाहिए और अपना व्यवहार अच्छा बनाकर रखना चाहिए। जिससे बुरे वक्त में पड़ोसी का सहयोग मिल सके।
