Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

4.0  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

काश! काश! 0.30...

काश! काश! 0.30...

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173


मैंने दरवाजे खोले थे आशा अनुरूप ऋषभ ही आए थे। उनके मुख से समझ में आ रहा था कि वे बहुत थके हुए हैं। मैंने कुछ भी पूछने की अपनी उत्सुकता पर नियंत्रण किया और पूछा - ऋषभ, अभी आप डिनर लेंगे?

ऋषभ ने कहा - रिया, नहीं अभी मै गुनगुने पानी का शॉवर लेकर कुछ हल्का होना चाहता हूँ। तब तक आप हल्दी का एक गिलास गर्मागर्म दूध बना दो। पानी में रहने से मुझे गले में कुछ संक्रमण हो गया लग रहा है। 

मैंने कहा - ठीक है, हल्दी अधिक उबालने के लिए दूध धीमी आँच पर रखना होगा। आप वॉशरूम से आ जाइए तब तक तैयार हो जाएगा। 

ऋषभ गए थे और मैं किचन में आ गई थी। मुझे भी हल्दी का दूध पीने की इच्छा हुई थी। मैंने हल्दी के साथ, अधिक दूध बर्नर की धीमी आंच पर उबालने के लिए रख दिया था। 

उसके सामने स्टूल पर बैठकर, मैं सोचने लगी कि ऋषभ ने, अश्रुना को 40 हजार की बड़ी राशि देने का मेरा निर्णय आज उचित पाया होगा या नहीं। अपनी उत्सुकता में भी ऋषभ से, अभी मैंने इस प्रश्न के उत्तर लेने में जल्दबाजी करने का विचार स्थगित रखा था। मैं चाहती थी कि यदि ऋषभ अभी सो जाना चाहें तो उन्हें सोने दिया जाना चाहिए। 

ऋषभ जब नाईट सूट पहने किचन में आए तो मैंने पूछा - आप, दूध बेड पर पीएंगे या बैठक में सोफे पर बैठकर?

ऋषभ ने कहा - मैं सोफे पर बैठकर गर्म दूध, धीरे धीरे पीना चाहता हूँ ताकि गले की सिंकाई भी हो जाए।   

स्पष्ट था कि ऋषभ को अभी सोने की जल्दी नहीं थी। मैंने दो गिलासों में दूध लेकर ट्रे में रखा था। तब ऋषभ ने मेरे पीछे से अपनी बाँहों में मुझे घेर लिया था। मैंने कहा - नहीं ऋषभ ऐसा न करो, दूध छलक जाएगा। 

तब ऋषभ ने ट्रे स्वयं एक हाथ में थामी थी और दूसरे हाथ को मेरे कंधे पर रखकर अपने साथ मुझे लेकर सोफे पर आ गए थे। हम दोनों सोफे पर पास पास बैठकर दूध की चुस्की लेना शुरू कर चुके तब मेरे बिना पूछे ही उन्होंने अश्रुना के साथ गाँव की यात्रा एवं उसके घर में आज बिताए दिन का सारा विवरण दिया था। 

उन्होंने बताया कि उनके घर में जब पानी घुसने लगा तो सामने कमरे में भर रहा पानी, बाल्टियों में भर भरकर पीछे ले जाकर फेंकने में उन्हें भी मदद करनी पड़ी थी। 

इस पर मैंने कहा - ऋषभ इसका अर्थ यह है कि अश्रुना ने मुझसे सुधार कार्य के लिए रुपयों की जरूरत होना, सच ही बताया था। 

ऋषभ ने कहा - हाँ, सामने कमरे का फर्श ऊँचा करना उनके लिए अभी ही बहुत जरूरी है। अन्यथा वे उस घर में रहकर बीमार हो जाएंगे। 

मैंने पूछा - क्या अश्रुना अभी आपके साथ लौटी है। 

ऋषभ ने बताया - अश्रुना के कहने पर मैंने, कार उनके घर के सामने की तंग सड़क पर ले जाकर खड़ी करने की गलती कर दी थी। जिससे अचानक हुई तेज बारिश में कार आधी डूबी होकर फँस गई थी। इस कारण वहाँ जाने का प्रयोजन पूरा हो चुकने पर भी मुझे प्रतीक्षा करनी पड़ी। यह तो अच्छा रहा कि पानी उतर जाने के बाद कार, बिना कुछ किए स्टार्ट हो गई। तब तक रात हो गई थी। ऐसे में मैंने, अश्रुना को अपने साथ कार में अकेला लाना उचित नहीं समझा, वह कल बस से लौट आएगी। 

यह सुनकर मैं सोचने लगी कि ऋषभ अत्यंत विश्वसनीय एवं विवेकवान पुरुष हैं। अगर उन्होंने अश्रुना को रात में अकेली कार में साथ लाना उचित नहीं समझा है तो निश्चित ही इसका कारण, समाज दृष्टि, अश्रुना के प्रति सशंकित न हो जाए यह सोचा होगा। 

मैंने पूछा - आज दिन भर अश्रुना की माँ को आपकी खातिरदारी में रसोई में काम करते रहने पड़ा होगा? 

ऋषभ ने हँसकर कहा - रिया, मेरी अक्ल यहाँ अच्छी दौड़ी थी। मैंने सुबह जाते हुए बहुत सी भोज्य सामग्रियाँ यहाँ से पैक करवा कर रख ली थी। वहाँ घर में मचे पानी के तांडव ने उन्हें इतना व्यस्त रखा था कि वे दोपहर बाद रसोई में काम करने की स्थिति में ही नहीं थी। तब मैंने ही नहीं, उन सब ने भी मेरा साथ ले जाया हुआ खाना खाया था। 

मैंने कृतज्ञ भाव से कहा - मेरे पतिदेव, आपका साथ होना मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। 

ऋषभ ने इसे इग्नोर करते हुए कहा - रिया, तुमने अच्छा किया जो उन्हें सहायता राशि देने का और मुझे गाँव भेजने का निर्णय किया। अभी उस परिवार को वास्तव में तुम्हारी इस उदार सहायता की जरूरत है। 

मैंने उत्तर में कुछ नहीं कहा था। मैं सोचने लगी थी कि यदि यह राशि मैंने अभी अश्रुना की मम्मी को नहीं दिलवाई होती तो अश्रुना को लाचारी में उस मार्ग पर पुनः पग रखना होता जिसे नवीन की प्रेरणा से वह त्याग देना चाहती है। 

हमारे दे दिए जाने के लिए ये चालीस हजार रुपए बहुत भारी नहीं पड़ने थे मगर यदि मैं नहीं देती तो ये अश्रुना और उसके परिवार पर बहुत भारी सिद्ध होने थे। अश्रुना अपने जीवन को गुम/बद-नामी के अंधकार में खो देने को विवश होती। यही नहीं अपनी लाचारी में वह कई अमीर घर के लड़कों/मर्दों को अपनी अर्थात् एक कॉलगर्ल की आदत करने का निमित्त बन जाती। 

मुझे स्पष्ट लग रहा था कि आज हमारा इस धन का मोह त्याग न करना, समाज अच्छाई की दृष्टि से घातक होता। एक परिवार इस कलंक में जीवन यापन करने को विवश होता कि उनकी बहन/बेटी, एक देह व्यापार करने वाली औरत है। साथ ही अश्रुना जिसमें अच्छी नारी होने की योग्यता है वह समाज के दोहरे मानदंड में हेय दृष्टि से देखी जाती। उसे समाज पहचान ऐसी पतिता की मिलती जो अपनी चरित्र हीनता में समाज के पुरुषों को सद्मार्ग से भटकाती है। 

मैं सोच में डूबी थी। तब थकान वश ऋषभ सोफे पर बैठे हुए ही ऊँघने लगे थे। तभी कुकू वॉल क्लॉक की कुकू पट खोल कर बारह बार कुहुकने के लिए आ गई थी। 

मैं उठी थी। मैंने सहारा देकर ऋषभ को उठाया था। फिर मैं उन्हें साथ लेकर शयनकक्ष की ओर चल पड़ी थी। चलते हुए मैं ऋषभ से कह रही थी -

जीवन में संयोगवश परोपकार करने के दिन कभी कभी ही आते हैं। आज का यह शुभ दिन ऐसा ही एक दिन है और मुझे प्रसन्नता है कि जीवन में आए इस दिन में पुण्य कार्य का अवसर हमने चूका नहीं है। 

काश! हमारी यह सदाशयता फलीभूत हो। काश! अब अश्रुना एक अच्छी लड़की बने ….    


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