Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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काश! काश! 0.26...

काश! काश! 0.26...

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ऋषभ ने अश्रुना को छात्रावास से कार में साथ लिया था। फिर गाँव की तरफ कार चलाते हुए, कुछ विचार करके कार, एक मॉल के सामने पार्क की और कहा - अश्रुना मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ। तुम यहीं बैठकर प्रतीक्षा करो। 

अश्रुना ने सहमति में सिर हिला दिया। ऋषभ वापस आए तब उनके हाथों में दो बड़े कैरी बेग थे। उन्हें ऋषभ ने कार की पिछली सीट पर रख दिया एवं ड्राइविंग सीट पर खुद सीट बेल्ट लगाकर बैठते हुए ऐसा ही करने के लिए अश्रुना को कहा था। 

कार अब नगरीय क्षेत्र के बाहर की तरफ फर्राटे भरते हुए दौड़ने लगी थी। कुछ सोचते हुए ऋषभ ने रेडियो मिर्ची लगा दिया था। वॉल्यूम कम ही रखा था। उस समय रेडियो पर “जय जय जय जगदंबे माता द्वार तुम्हारे जो भी आता बिन माँगे सब कुछ पा जाता” आरती चल रही थी। 

ऋषभ कार चलाते हुए यही गुनगुनाते जा रहे थे। अश्रुना को बरसात के इस चमकदार खिली धूप वाले दिन में यह आरती सुनते हुए, शहर से गाँव तक की यात्रा एक अभूतपूर्व सुखदाई अनुभव प्रदान कर रही थी। 

ऋषभ ने अश्रुना से अपनी तरफ से बात करने में कोई रुचि प्रदर्शित नहीं की थी। जब आरती पूरी हो चुकी तो अश्रुना ने अपनी विपत्ति के समय में सहायता के लिए हाथ बढ़ाने वाले, इन सज्जन की कृतज्ञता जताने की दृष्टि से बात आरंभ करते हुए कहा - 

सर, आप और मैम बहुत अच्छे लोग हैं। आज कौन, किसी पर इतना विश्वास करता है, जितना आप दोनों ने मुझ पर किया है। 

ऋषभ ने प्रशंसा की बात की दिशा पत्नी की तरफ मोड़ते हुए कहा - तुम सही कहती हो, रिया है ही अत्यंत अनूठी तरह की, तुम ही नहीं मैं स्वयं रिया का बड़ा फैन हूँ। 

अश्रुना ने पूछा - सर, इतनी बड़ी राशि देते हुए आप को भय नहीं लगता कि कोई आपको ठग तो नहीं रहा है?

ऋषभ ने सोचते हुए कहा - हाँ अश्रुना, मैं मानता हूँ कि ठगा जाना मूर्खता होती है। 

अश्रुना ने पूछा - फिर आप कैसे मेरा विश्वास कर रहे हैं?

ऋषभ ने कहा - तुम किसी ठग जैसा व्यवहार नहीं कर रही हो। तुम सहायता राशि अपनी शर्त पर अर्थात् अपनी जरूरत को जस्टिफाई करते हुए लेने जा रही हो। इसलिए आज हम साथ, तुम्हारे गाँव की यात्रा कर रहे हैं। 

अश्रुना ने कहा - सर, मान लो यह जरूरत सही है मगर मैं बुरी लड़की हुई तो एक बुरी लड़की को सहायता करने वाला आपका यह कार्य, समाज में बुराई को पुष्ट करने वाला नहीं हो जाएगा। 

ऋषभ उत्तर देने के पहले सोचने लगा था। फिर उसने कहा - रिया, का मानना है कि अगर आसपास हमारे संपर्क में रहने वाला कोई, हमसे, बुरा या छलने वाला कार्य करता है तब इसमें दोष उस बुरे-छलिए व्यक्ति का तो होता ही है लेकिन यह हमारी खुद की भी कमी होती है। 

अश्रुना को यह बात समझ नहीं आई कि भलाई करने वाले का दोष कैसे हो सकता है। उसने पूछा - सर, मैं नहीं समझ पा रही हूँ, कोई बुरा व्यक्ति नहीं सुधर पाए तो भलाई करने वाले का इसमें दोष क्या हो सकता है? 

कार अब हाईवे छोड़कर ग्रामीण मार्ग पर आ चुकी थी। जिसमें बरसात के कारण गड्ढे हो गए थे। ऋषभ की दृष्टि उनसे बचने के लिए रोड पर थी। 

उसने कार ड्राइव करते हुए गड्ढों पर ध्यान देने के लिए, बीच में कभी चुप कभी बोल कर बताया - अश्रुना तुम अभी छोटी हो। जबकि रिया और मैं दो बच्चों के माता पिता हैं। तुम अभी वह समझ नहीं पाओगी जो हम मम्मी-पापा होकर समझते हैं। 

हम अपने बच्चों की किसी बुरी आदत या जिद के सामने, उसे बदल देने तक कभी हार नहीं मानते हैं। ऐसा ही धैर्य और प्रेम, हम बिगड़ गए व्यक्ति को बदलने में यदि दिखाएं तो वह बुरा व्यक्ति भी भला हो सकता है। अतः हमारा मानना है कि यदि हमारे संपर्क में आया कोई बुरा व्यक्ति सुधर नहीं पाता है तो यह हमारा उससे धैर्य, प्यार और बुद्धिमत्ता के साथ पेश नहीं आने के कारण होता है। इसलिए जब ऐसा होता है तो हमें दोष अपने में लगता है। 

ऋषभ को अतिरिक्त सतर्कता से ड्राइव करना पड़ रहा था। अतः ऋषभ के चुप होते ही दोनों के बीच चुप्पी पसर गई थी। अश्रुना भी विचारमग्न थी। उसके मन में चल रहा था कि अभी दुनिया में इतने भले भी कुछ लोग हैं। वह सोच कर संतोष कर रही थी कि उसके पापा बुरे व्यक्ति हैं, तब भी यह उसके अच्छे भाग्य हैं जो उसे रिया मैम और ऋषभ सर जैसे अच्छे लोग मिले हैं। 

ऐसा सोचते हुए उसे एक और अच्छे व्यक्ति नवीन का ध्यान आ गया था। रिया मैम और ऋषभ सर के अनुग्रह में भाव विभोर हो उसका मन कहने लगा कि वह अपनी वास्तविकता ऋषभ सर को कहकर सुना दे। 

संभव है ऐसा करने से अभी की आर्थिक मदद उसे मिलेगी ही और अगर भाग्य ने साथ दिया तो आगे, इन दोनों की निकटता में, वह अपनी भूलों के अतीत से बिना अधिक क्षति के उबर सकेगी। 

ऐसे में जब ऋषभ का कार चलाने के लिए सावधान और चुप रहना आवश्यक था। अश्रुना ने ऋषभ से अपनी सच्चाई और पश्चाताप बोध बताना शुरू कर दिया। अश्रुना ने अपने पापा के गैर जिम्मेदार व्यवहार से अपने परिवार पर आए संकट के कारण बताने के लिए पापा के चरित्र से बात आरंभ करते हुए, अपनी लाचारी में कुछ मौकों पर देह बेचने तक की बात ऋषभ से कह सुनाई। फिर उसने नवीन के बारे में बताते हुए, नवीन के द्वारा शरीर का उपभोग के बिना उसकी कीमत देना और आगे भी आर्थिक मदद करने की बात भी कह सुनाई थी। 

उसने यह भी बताया कि नवीन से अभी ही मदद मिली थी। अचानक उपस्थित हुई 40 हजार रुपए की जरूरत, नवीन के सामने न रखने के अपने संकोच को भी बता दिया। फिर यह भी बताया कि अनूठे संयोग में (मैं) रिया मैम, एक परी की तरह अचानक उसके समक्ष आ खड़ी हुईं। अंत में उसने ऋषभ का और मेरा बार बार आभार मानने की बात भी कह दी। 

साफ था जिस लक्ष्य से मैं (रिया) अश्रुना से कॉलेज मिलने गई थी। वे सभी तथ्य ऋषभ के बिन पूछे ही अश्रुना ने अनायास पुष्ट कर दिए थे।

अश्रुना चुप हुई तो गाँव सामने आ चुका था। ऋषभ ने तब कहा - अश्रुना, तुम्हारी बताई बातों में एक सबसे अच्छी बात यह है कि विवशता में बुरे मार्ग पर बढ़ गए तुम्हारे कदम अधिक दूर तक नहीं चल पाएं हैं। यहाँ से अधिक क्षति के बिना अभी वापसी संभव है ….  


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