काला-सफेद धन
काला-सफेद धन
रूपेश इतना शरारती था कि पूरा गाँव उस की हरकतों से तंग था । उस गाँव का सेठ करोड़ीमल इतना लोभी था कि अपने फायदे के लिए कभी भी कुछ भी करने को तैयार रहता था ! एक रोज गाँव में बहुत उत्साह का माहौल था ! रूपेश यह जानने को व्याकुल था कि लोग इतने खुश तथा उत्साहित क्यों है? जब उससे पता चला कि गाँव में कुछ दिनों बाद मेले का आयोजन होने वाला है और पूरे एक महीने रहेगा तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। दिन बीतते गए और वह दिन भी आ गया जब गाँव में मेला लगा चूँकि रूपेश एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखता था इसलिए पैसे की किल्लत उसके घर में हमेशा बनी रहती थी ।वह पढ़ने में भी फिसड्डी था कई बार फेल होने पर पिताजी ने पढ़ाई छुड़वा दी और कुछ काम करने की कहा । पर उसका मन किसी काम में नहीं लगता था किसी तरह छोटा-मोटा काम करता और या तो वह स्वयं परेशान होकर छोड़ देता या मालिक उसे निकाल देता था । पिछले कुछ महीनों से उसके पास कोई काम नहीं था ।
जब रूपेश ने माँ से मेले में जाने की इच्छा जाहिर की तब माँ ने तुरंत रुपयों का हवाला देकर मना कर दिया । उसे बहुत दुख हुआ किन्तु इच्छा प्रबल थी। मेले तो उसे हर हाल में जाना है शरारती होने की वजह से उसे एक तरकीब सूझी। वह सेठ करोड़ीमल की लालची हरकतों से वाकिफ था। अगले दिन वह सेठ करोड़ीमल के यहाँ गया और उसने सेठ से कहा कि अगर सेठ जी आप मुझे 10 हजार रुपये देते है तो मेला खत्म होने तक आपको दोगुनी कर के दूंगा।
इतना सुनते ही किरोड़ीमल ने बिना कुछ सोचे समझे रूपेश को हाँ कर दी और फिर उसने रूपेश को हज़ार और पांच सौ के नोट दे दिए साथ ही धमकी भी दी यदि दोगुना धन नहीं हुआ तो वह उसे भरे बजार में उसे पिटवाएगा और चोरी का इल्जाम लगाकर जेल करवा देगा। रूपेश को तो किसी तरह मेले में जाकर मस्ती करनी थी। उसने तुरंत हाँ कर दी कहा–“ऐसी नौबत नहीं आएगी बल्कि वह उसका एहसान मानेंगे।“
उसके बाद तो रूपेश के क्या कहने ! जैसे कोई कुबेर का खजाना हाथ लग गया हो । प्रतिदिन वह उसी रुपयों से कुछ पैसे लेता और मज़े से मेला घूमता मेले में आई हर चीज उसने देखी ,तरह तरह के तमाशे और गेम्स में भाग लिया और जी भरकर खर्च किया ।जब कभी उसे अपने वादे की याद आती तो वह घबरा जाता फिर सोचता भाड़ में जाये जो होगा देख लेंगे । समय गुजरता गया और मेला भी समाप्ति के करीब आ गया। आज मेले का आखिरी दिन था वादे के मुताबिक आज ही रूपेश को पैसे चुकाने थे । डरते-डरते जैसे ही वह सेठ करोड़ीमल के पास यह बताने गया कि यह सब झूठ था तब ही उसे देखते ही सेठ बोला कि रूपेश तूने तो मुझे बचा लिया “डीमोनिटाईज़ेशन” ने तो नाक मे दम कर रखा है “मोदी जी ने तो कसम खाई है न खुद खाऊंगा ना किसी को खाने दूंगा।“ मुझे तू आराम से कभी भी केवल मूल रकम ही दे देना और हाँ, पैसों की चर्चा भी किसी से मत करना।
रूपेश को विश्वास नहीं हो रहा था कि सेठ जी क्या कह रहे हैं!! उसकी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा पर बाद में जब उसे मोदी जी की इस कदम के पीछे की सच्चाई समझ आई तो उसने देश के विकास में एक अच्छे नागरिक बनने की कसम खाई और सेठजी को भी गलत काम करने से रोकने की कोशिश की और कहा आपके पास जो भी काला धन रखा है गरीबों में बाँट दो कम से कम वे बेंक में बदलवाकर अपनी जरूरत पूरी कर लेंगे और आपको दुआएं देंगे और सरकार को भी अपने पास पड़ी रकम की जानकारी देकर बेंक में जमा करा दो आप को केवल उस पर टेक्स देना पड़ेगा पर बदनामी से बच जाओगे । उसने सेठजी को धमकी भी दी कि यदि वे अपनी गलती नहीं सुधारेंगे तो वह उनका कच्चा चिट्ठा खोल देगा। सचमुच यही है-"सबका साथ और सबका विकास !" अब सचमुच अच्छे दिन आ गए ।
