सच्ची इंसानियत
सच्ची इंसानियत
कोरोना महामारी से पूरे संसार की हालत दयनीय हो गई थी । लॉकडाउन की वजह से ना कोई काम, ना गरीबों को भरपेट खाना मिल रहा था। गरीब मजदूर अब किसी तरह अपनी जान बचाने के लिए पैदल ही गांव की ओर चल पड़े थे । ऐसे ही एक करीबी गाँव का परिवार पूना में रोजी-रोटी के लिए आ बसा था। वे सभी मेहनत मजदूरी से अपना पेट पालते थे । लेकिन लॉकडाउन के कारण उनकी स्थिति बहुत दयनीय हो गई थी। खाना तक नसीब नहीं हो रहा था।
उर्मिला के दो बेटे,बहूएं और उनके पाँच बच्चे खराब स्थिति देखकर सभी गांव की ओर पैदल ही चल दिए।लेकिन माँ उर्मिला का एक पैर दुर्घटना ग्रस्त होने के बाद से वह लकड़ी के सहारे ही चल पाती थी ।पूरे परिवार को कई किलोमीटर की यात्रा कर गाँव पहुंचना था आखिर मजबूरी में उन्हें भगवान भरोसे वहीं पूना में एक-दो दिन के खाने के साथ छोड़ना पड़ा। उर्मिला ने भी सभी की जान बचाने के लिए उन्हें अपनी कसम देकर जाने को मजबूर कर दिया था । सभी पड़ोसियों का भी यही हाल था कुछ घर छोड़कर जा रहे थे बाकी जा चुके थे । परिवार वालों के जाने के बाद अब तीन-चार दिन से वह भूख से कराह रही थी।
मोहन जो कि पुलिस में कार्यरत था अभी अपनी ड्यूटी निभा रहा था । दोपहर के करीब 1:00 बजे का समय था। उसे भूख लगी थी और वह अपना टिफिन लेकर पेड़ की छाँव में भोजन करने बैठा ही था कि तभी उसकी नज़र सड़क किनारे भूख से कराहती उर्मिला पर पड़ी। मोहन उस के करीब जाकर उसे हालचाल पूछने लगा, तब उर्मिला ने मोहन को सारा किस्सा सुनाया। यह सब जानकर मोहन के मन में उसके प्रति दया भाव जागा । उसने अपना खाना उर्मिला को खाने के लिए दिया । खुद भूखे रहकर भी उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे। उर्मिला ने उसे खूब आशीर्वाद दिया ।मोहन को लगा एक दिन भोजन देने से काम नही चलेगा उसकी मदद करनी होगी । काफी सोच-विचार के बाद मोहन ने पता लगाकर उर्मिला को सहायता केंद्र पहुँचा दिया तब जाकर उसके दिल को तसल्ली हुई ।
सीख- दूसरों को दुखी देखकर सहारा देना ही सच्ची इंसानियत है।