बुढ़ापे की लाठी
बुढ़ापे की लाठी
रामेश्वर बाबू का इकलौता बेटा उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहर गया| पढ़-लिखकर आया तो उच्च कमाई के लिए विदेश चला गया। ये बात अलग है कि बेटा बीच-बीच में खैरियत पूछता रहता है और कभी कभार कुछ पैसा भेजकर कर्तव्य की इतिश्री समझता है।
माता- पिता गर्व से कहते देखो मेरा बेटा विदेश मैं ऊंचे ओहदे पर काम कर रहा है। आखिर बुढापे की लाठी जो ठहरा.....!