काबिलियत
काबिलियत
सब्र रख रख कर न जाने कितने साल निकाल दिए राधा ने।
कभी कहीं तो कभी कहीं नौकरी की। ऐसा नहीं है कि उसके घर में किसी तरह की कमी थी। मगर खुद की काबिलियत सिद्ध करने की ठानी थी उसने।
राधा की शादी को 10 साल हो गए थे। उसका पति मानव अच्छी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। उसने हमेशा राधा को आत्मनिर्भर बनने में मदद की।
उसके ससुराल वाले हमेशा उसके साथ देते। राधा ने जब लक्ष्य को जन्म दिया तो सारा ध्यान उसके लालन-पालन में लगा दिया। खुद के लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाई। राधा की नंद रेखा अपने आप को कम ना समझती थी।
हमेशा राधा को नीचा दिखाने के अलावा उसके पास दूसरा कोई काम ही नहीं था। राधा मन से अपने ससुराल वालों का ध्यान रखती, उनकी सेवा करती।
राधा निम्न वर्ग के घर की लड़की थी जिसका विवाह उच्च वर्ग में हो गया था वहां के तौर तरीके सीखने में उसको समय लगा तथा उसने उन सब को अपनाया भी परंतु कभी इस बात पर घमंड नहीं किया अपितु अपनी वास्तविकता के धरातल को हमेशा याद रखा।
धीरे धीरे लक्ष्य बड़ा हुआ और स्कूल जाने लगा।
मानव ने राधा को प्रोत्साहित किया कि तुम स्कूल में नौकरी क्यों नहीं करती, इस बहाने ही सही घर से बाहर भी निकलोगी, खुद की अपनी एक पहचान भी बनाओगी ।
राधा इसके लिए तैयार हो गई और अपनी m.a. की किताबों को टटोलने लगी। खुद को इंटरव्यू के लिए तैयार किया, मानव ने उसके साथ जाकर दिल्ली के कई स्कूलों में उसका सीवी डलवाया। तीन चार जगह तो उसका साथ साथ इंटरव्यू हो गया मगर नंबर कहीं नहीं आया। कहीं उसकी कच्ची अंग्रेजी आड़े आ जाती, तो कहीं उसका बिल्कुल शुरुआत से कैरियर शुरू करना।
यहां तक कि उसने छोटे-छोटे क्रच में भी इंटरव्यू दिया। कई दिनों बाद उसको एक स्कूल से फोन आता है,उसने मानव को जब यह बात बताई कि मुझे आज ही इंटरव्यू के लिए जाना है, तो मानव खुश हुआ।
मानव ने उसे अपने शैक्षिक प्रमाण पत्र अपने साथ ले जाने के लिए बोला। राधा जल्दी से तैयार हो गई और मानव के साथ गौतम पब्लिक स्कूल पहुंची। स्कूल में उसने खुद के नाम से उन लोगों को अवगत कराया। प्रधानाचार्य ने औपचारिक परिचय लेने के बाद उसको कक्षा में लेकर गई।
राधा का यह पहला अनुभव था कि वह सीधे बच्चों के सामने खड़ी थी। राधा ने पहले ही लक्ष्य को कई कविताएं याद कराई थी तो उसके दिमाग में अभी वही चल रही थी।
उसने प्रधानाचार्य के सामने बच्चों के साथ 2-4 गेम खेलें और वही कविताएं गुनगनाई।
प्रधानाचार्य को उसकी वह बात बहुत पसंद आई।
मगर पसंद नहीं आई तो उसकी कच्ची अंग्रेजी, फिर भी प्रधानाचार्य ने उसे प्राथमिक स्तर की शिक्षिका नियुक्त किया।
मगर सैलरी बहुत कम थी। राधा इस बात से खुश थी वह दौड़ कर मानव के पास गई और उसको सब बताया। मानव ने उसे बधाई दी ।घर में मिठाई का डब्बा लेकर पहुंचे। आज राधा बहुत खुश थी ।
चलो कोई नहीं पैसे तो धीरे धीरे बढ़ ही जायेगे। उसने धीरे-धीरे स्कूल ,घर व बच्चा तीनों को संभाला ।लक्ष्य की भी देखभाल करती और घर का काम भी करती ,पूरा ध्यान रखती सबका।
एक दिन राधा की नंद रेखा बच्चों के साथ वहां आ गई, मैं ससुराल नहीं जाऊंगी कहने लगी। मानव ने कहा घर तुम्हारा है जब तक चाहे रहो। राधा हमेशा अपने काम पर ध्यान देती, लेकिन एक दिन का नजारा कुछ और था, रेखा के बच्चों ने अपनी मामी से किसी महंगे उपहार की मांग की। रेखा ने जवाब में बोला तुम्हारे मामा के आने पर वह उपहार दिला देंगे। मगर मेरे पास पैसे नहीं है। उस पर रेखा बिलख कर बोली दो पैसे की नौकरी करने वाली, अपने पैसों का रोब जमाती हो, मैं लाखों कमाती हूं।
खुद को ज्यादा नौकरी वाली समझ रही हो। दोनों के बीच में मानव आ गया, दोनों को समझाया। रेखा नौकरी दो पैसे की हो या हजार पैसों की नौकरी -नौकरी है। मगर आत्मसम्मान से बढ़ कुछ नहीं।। हमारे समाज में न जाने क्यों शिक्षकों को ,जो भविष्य का निर्माण करते हैं कम सैलरी पर रखा जाता है यह उनकी काबिलियत का गलत मूल्यांकन है, जो कि शिक्षक संस्थाओं का गैर रवैया है।
शिक्षक जो समाज के लिए भविष्य का निर्माण करते हैं 2-2 पैसे 3-3 पैसे के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हैं। तुम इस बात को नहीं समझोगी क्योंकि तुमने वह दर्द नहीं समझा। वह दर्द मैंने नज़दीक से देखा है राधा में।
दिन रात काम में लगी रहती है अपना घर , अपना बच्चा,स्कूल ,स्कूल के बच्चे सब का भविष्य बनाने में ।
तुम इसे कम मत समझना। राधा मुझे तुम पर पूरा विश्वास है तुम बहुत बड़ी शिक्षिका बनोगी और मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ है ।
मांजी पीछे खड़ी सब कुछ देख रही थी उन्होंने रेखा को डांटा और राधा को बोला मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने पैसे कमाती हो, मगर मुझे फर्क पड़ता है तो इससे कि मेरी बहू आत्मनिर्भर है, मुझे तुम पर गर्व है।
