Mridula Mishra

Drama

3.3  

Mridula Mishra

Drama

जुगाड़

जुगाड़

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643


अपने खपड़ैल टूटे-फूटे घर में सुखिया बैठी थी। करवाचौथ का दिन था इसलिए उपवास रखा था उसने। उसका पति भोला, सचमुच भोला था ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था तो हर कोई उसके सीधेपन का फायदा उठाता था। पहले अपनी खेती थी लेकिन पिता के मरने के बाद गाँव बालों और पंडितों के चक्कर में उसे सब गिरवी रखना पड़ा था। परिवार चलाने के लिए उसे जमींदार के घर मजूरी करनी पड़ती थी। सुखिया भी गाँव में किसी-किसी का कुटौना-पिसावना करके चार पैसे कमा लेती थी। दो बच्चे और बूढ़ी सास के साथ वह किसी तरह गृहस्थी चला रही थी।

भोला धूप में पसीना बहाता हुआ घर लौटा कुंडी खटकाते ही दरवाजा खुल गया। भोला अंदर पहुंचा और सुखिया को चिंतीत बैठा देख उसके पास आया,वह समझता था कि सुखिया क्यों चिंतित है आज करवाचौथ के दिन भी वह भोला को कुछ अच्छा नहीं खिला सकती बस यही चिंता का कारण था।

भोला ने अपने अंगोछे से कुछ शकरकंद और पानी फल सिंघाड़ा निकाल कर सुखिया के आगे रख दिया, सुखिया खुश हो गई और सिंघाड़े की सब्जी तथा शकरकंद की मीठी रोटी बनाने उठ गई। उसके भोला को शकरकंद की मीठी रोटी और पानी फल सिंघाड़े की तीखी सब्जी बहुत पसंद थी।

वह अपने ब्रत के लिए पूजा की तैयारी करने लगी। अब बस चाँद के निकलने की देर थी,तभी बच्चे चिल्लाते हुये चांँद के निकलने की सुचना देकर बाहर भाग गए। उसने पूजा की थाली उठाई भोला को पुकारा और करवाचौथ की पूजा पूर्ण की।

सब खाना खाकर सोने चले गए,तभी सुखिया के मन में अपनी एक अदम्य इच्छा जागृत हो गई एक सुंदर और स्वस्थ गाय की। वह कल्पना करने लगी कि उसके दरवाजे पर एक गाय खड़ी है और वह उसे हरी घास खिला रही है। उसने बड़का देवता से मन्नत मांगी हे!बड़का देवता गाय अगर घर में आ जाये तो पहली धार का दूध आपको चढा़ऊँगी। और सपनों के साथ ही सो गई।

दूसरे दिन शायद बड़का देवता ने उसकी प्रार्थना सुन ली, गाँव के बूढ़े पंडित जी अपने बेटे के पास हमेशा के लिए जा रहे थे उन्हें अपने श्यामा गाय की बड़ी फिक्र हो रही थी जो उस समय गाभिन भी थी। वह कदपि अपना घर नहीं बेचते पर, शारिरिक दुर्बलता ने उन्हें मजबुर कर दिया लेकिन, श्यामा गाय जो गर्भवती थी उसे किसके हवाले करते। ?कभी उनकी बात-चीत सुखिया से हुई थी तो सुखिया ने अपनी लालसा उन्हें बतायी थी बस उन्होंने सुखिया को गाय देने का मन बना लिया।

  सुबह सुखिया को बुलाकर अपनी श्यामा गाय उसके हाथों सौंप कर कहा- सुखिया ! अपनी आत्मा दिये जा रहा हूंं इसे कोई कष्ट न होने देना। और यह कुछ रूपए रख ले इसके जापे के समय काम आयेगे और श्यामा पर हाथ फेरकर रोते हुए गाडी़ में बैठ गये।

इधर सुखिया के पैर धरती पर थम ही नहीं रहे थे वह गाय लेकर घर आ गई और भोला से पंडित जी को बुला लाने को कहा ताकि शुभमुहूर्त में गाय गृह-प्रवेश कर सके। पंडित जी आये और बेमन से पूजा करवायी क्योंकि गाय को देखकर वो लालच में आगये थे। यह गाय तो उनके दरवाजे पर बंधी होनी चाहिए। पंडित जी गाय को हथियाने के लिए जुगाड़ भिड़ाने लगे।

उन्होंने भोला को कहा‌- भोला तुम्हारे उपर शनि की साढ़ेसाती सवारी है काली बस्तु दान करनी होगी। भोला चिंतित हो उठा। पंडित जी के जाने के बाद उसने सुखिया को यह बात बतायी सुखिया बुद्धिमान थी वो तुरंत पंडित जी की मऩसा भाप गई और भोला को कहा- तुम चिंता न करो मैं सब सम्भाल लूँगी। जब शनिवार आया तो सुखिया थोड़ा कोयला लेकर पंडित जी के पास गई पंडित जी कोयला देखते ही आग-बबूला हो गये। और सुखिया को समझाया देख जो कुछ काम आ सके वो काली चीज ला। सुखिया हाँ कहकर चली गई। अगले शनिवार को सुखिया एक कम्बल लेकर पंडित जी के पास पहुँची‌और कहा पंडित जी यह काला भी है और काम आने बाला भी पंडित जी ‌ बहुत गुस्साए पर क्या करते? फिर उन्होंने सुखिया को कहा --अरे इन सबसे शनि महाराज नहीं मानने वाले तुम ऐसी वस्तु दान करो जिससे दही-घी बन सके। सुखिया हां कहकर घर आ गयी।

पंडित जी बड़े प्रसन्न थे आज तो गाय उनके दरवाजे पर होगी क्योंकि आज शनिवार था। इस बार सुखिया एक काली बकरी लेकर पहुंची। और पंडित जी को कहा लो पंडित जी यह काली भी है और दूध भी देगी और दूध से भरा एक काला मटका पंडित जी को दिया और कहा-लिजीए पंडित जी यह दूध से भरा काला मटका इससे दही -घी दोनों बनेगा। अब तो पंडित जी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया वे चिल्लाने लगे तुम्हारे पति के उपर से कभी शनिदेव नहीं उतरेंगे। सुखिया चुप खड़ी रही तब पंडित जी ने अपना आखिरी दाव खेला। सुखिया को कहा -अरी मुर्ख यह अंतिम बार कह रहा हूँ अगले शनिवार काली चीज जो चलती-फिरती हो गाय जैसी दिखे, दरवाजे पर बंधी रहे। सुखिया हां कहकर चली गई। अब तो पंडित जी उठते-बैठते गाय का ही सपना देखते। शनिवार आया पंडित जी उमंग के झूले में पेंग बढ़ाने लगे। कितनी ही बार बाहर जाकर देख आते पर सुखिया का कोई अता-पता नहीं चल रहा था अंत में वो भोला के घर जाने की सोचने लगे उसी समय सुखिया काले कपड़े से ढकी एक टोकरी लेकर आती दिखी उन्होंने सोचा शायद गाय को लेकर भोला आ रहा हो पर उन्हें निराश होना पड़ा। वे सुखिया पर बरसने ही जा रहे थे कि सुखिया ने टोकरी नीचे रखकर उसपर पडा़ कपड़ा हटा दिया तभी एक काला नाग फुंफकारता हुआ टोकरी से निकला और पंडित जी की तरफ दौड़ा पंडित जी बाप रे-बाप कहकर भागे। सुखिया ने कहा--अरे पंडित जी यह तो काला भी है और चलता -फिरता भी है अब तो जरूर मेरे भोला के सर से शनि की साढ़ेसाती उतर जायेगी न ?

पंडित जी भागते हुए चिल्ला कर बोले अरे तुम्हारे जैसी जिसकी पत्नी हो उसके दस शनि भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

पंडित जी अपने जुगाड़ के फलित न होने पर जान बचाकर भाग रहे थे और सुखिया अपने जुगाड़ पर कल खिला रही थी।


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