Sandeep Murarka

Inspirational Others

3  

Sandeep Murarka

Inspirational Others

जंगल की दादी 'लक्ष्मीकुट्टी'

जंगल की दादी 'लक्ष्मीकुट्टी'

5 mins
379


जन्म : 1943

जन्म स्थान : कल्लार वन क्षेत्र, जिला तिरुवनंतपुरम, केरल

वर्तमान निवास : कल्लार, जिला तिरुवनंतपुरम, केरल

पिता : चथाडी कानी

माता : कुन्जु थेवी

पति : माथन कानी

जीवन परिचय - पर्यटकों को आकर्षित करने वाले केरल के तिरुवनंतपुरम के कल्लार जंगलों में रहने वाली ट्राइबल महिला 'लक्ष्मीकुट्टी' वहाँ 'वनमुथास्सी' के नाम से विख्यात है। वनमुथास्सी एक मलयालम शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ है - 'जंगल की दादी'। वे जंगल के दो किलोमीटर भीतर बसी एक ट्राइबल कॉलोनी में बांस और ताड़ के पत्तों की झोपड़ी में रहती है और उस झोपड़ी का नाम उन्होनें 'शिवज्योति' रखा है। लक्ष्मीकुट्टी को बचपन में पिता का प्यार नहीं मिला, जब वे मात्र दो वर्ष की थी तब उनके पिता चल बसे। चार भाई बहनों में सबसे छोटी लक्ष्मीकुट्टी का बचपन संघर्षमय रहा, एक ओर अपनी माँ को कड़ी मेहनत करते देखती, दूसरी ओर गांव से 9 किमी दूर वीधुरा गांव में अवस्थित सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती। उस स्कूल में कक्षा पांचवी तक पढ़ाई करने के बाद कुशाग्र बुद्धि लक्ष्मीकुट्टी कल्लार के एकल विद्यालय में एक अनुशासनप्रिय कठोर शिक्षक इंचियम गोपालन से पढ़ने लगी और 8 वीं कक्षा तक पढ़ी।

केवल 16 वर्ष की आयु में ही लक्ष्मीकुट्टी का विवाह उनके सगे ताऊ के बेटे माथन से हुआ। लक्ष्मीकुट्टी का दाम्पत्य जीवन लगभग सफल रहा, इनके तीन पुत्र हुए, धरणीन्द्रन, लक्ष्मणन और शिवा। किन्तु धरणीन्द्रन की मृत्यु वन में हाथियों द्वारा कुचले जाने से हो गई, वहीँ शिवा भी अपने पीछे एक पुत्री पूर्णिमा को छोड़कर हार्टअटैक से ईश्वर के धाम को सिधार चुके हैँ, पति माथन की मृत्यु भी 2016 में हो गई थी, अब लक्ष्मीकुट्टी अपने दूसरे बेटे लक्ष्मणन, जो रेलवे में टिकट परीक्षक हैँ, के साथ रहती हैँ।

लक्ष्मीकुट्टी के ताऊ सह ससुर स्थानीय चिकित्सक थे, लक्ष्मी उन्हें सहयोग किया करती, उन्होने लक्ष्मी के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने लगे। लक्ष्मीकुट्टी का झुकाव जड़ी बूटी व झाड़ियों की तरफ बढ़ता गया। समय के साथ साथ लक्ष्मीकुट्टी को पाँच सौ से ज्यादा तरह के औषधीय गुणों वाले पौधों का गहरा ज्ञान हो गया। मलयालम, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी की जानकार लक्ष्मीकुट्टी ने वनों में छिपी प्राकृतिक सम्पदा के औषधीय मूल्यों के गहन अध्ययन पर आधारित एक पुस्तक लिख ड़ाली 'नाट्टारीवूकल कट्टारीवूकल', जिसका प्रकाशन वर्ष 2007 में हुआ। जिसके साथ ही लक्ष्मीकुट्टी चर्चा में आई, एक बार स्थानीय कवि सम्मेलन के मंच पर उनकी पुस्तक का उदाहरण देते हुए केरल की प्रसिद्ध कवियत्री सुगाथा कुमारी ने कहा कि -

'कभी लिखना बंद मत करो, अपने शब्दों के माध्यम से अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए '

योगदान - जंगल के बीच वेंचिपारा नदी के समीप शिवज्योति, यानी लक्ष्मीकुट्टी का घर, गाय के गोबर से लीपी हुई कच्ची जमीन वाला झोपड़ा, जिसके छोटे से किचन में रखा है लकड़ी का एक बड़ा सा चूल्हा, झौपडे के हर कोने में फैली जड़ी-बूटियाँ, पत्तियाँ और जड़ें, चारों ओर फैली आयुर्वेदिक औषधियों की मनभावन गंध, पास ही देवी पार्वती का मन्दिर - एक नजर में ये दृश्य है लक्ष्मीकुट्टी की क्लीनिक सह दवा निर्माण यूनिट का।

लुप्तप्राय सी होती जा रही पारम्परिक चिकित्सा पद्धति की ज्ञाता लक्ष्मीकुट्टी अपने झोपडे में 500 से ज्यादा तरह की हर्बल दवाईयाँ तैयार करती हैँ। सालों भर ना केवल देश भर से बल्कि विदेशो से भी लोग उनसे इलाज करवाने एवं उनके चमत्कारिक चिकित्सकीय ज्ञान का लाभ लेने कल्लार पहुंचते हैँ।

कल्लार के वनक्षेत्र के कोने कोने में घूमकर औषधीय पौधों को खोजने वाली लक्ष्मीकुट्टी के मस्तिष्क में वहाँ के वन का मानचित्र अंकित हो गया है। वनों में साँप व विषैले जीव बहुतायत में पाए जाते हैँ, लक्ष्मीकुट्टी को सांप काटने के बाद उपयोग की जाने वाली दवाई बनाने में महारत हासिल है, इस दवा को बनाने की विधि उन्होने अपनी माँ से सीखी। पहले यदि किसी ग्रामीण को कोई साँप काट देता था, तो ग्रामीण उस साँप को पत्थरो से कुचल कर मार डालते थे, लक्ष्मीकुट्टी ने कहा कि कभी भी उस जीव को मारो मत, केवल पहचानो कि किस सरीसृप या कीड़े ने काटा है ताकि उपचार बेहतर हो सके। धार्मिक लक्ष्मीकुट्टी अपने मरीज के लिए प्रार्थना करती हैँ, दीपक जलाती हैँ और जिस विषैले जीव ने काटा हो, उसके लिए भी प्रार्थना करती है।

अम्मा लक्ष्मीकुट्टी 'केरला फॉलक्लोर एकेडमी' में शिक्षण का कार्य भी कर रही हैँ, कई विश्वविद्यालयों में वे गेस्ट लेक्चरर की हैसियत से व्याख्यान देती है। साथ ही वे शौकिया कविताएँ और कहानियाँ भी लिखती हैँ। उन्होने अपने घर के आसपास काफी औषधीय पौधरोपण किया है।

वैद्यरानी लक्ष्मीकुट्टी आमलोगों को कहती हैँ कि यदि सम्भव हो तो अपने किचन गार्डेन में या अपने घर के आंगन में या अपने फेक्ट्री परिसर में करीया पत्ता, हल्दी और मक्का अवश्य लगायें, इन तीनों में औषधीय गुण हैँ। करीया पत्ता वातावरण को शुद्ध करता है, वायु प्रदूषण को कम करता है वहीँ हल्दी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करती है और मक्का में कैंसर प्रतिरोधक क्षमता है।

विश्वस्तरीय पहचान होने के बावजूद सादगी पूर्ण जीवन जीने वाली लक्ष्मीकुट्टी का यह मानना है कि इंसान को संतुलित जीवन जीना चाहिए, खुशी मिलने पर ना अत्यधिक प्रसन्न होना चाहिए और कष्ट मिलने पर ना अत्यधिक दुखी होना चाहिए। मंत्र हों या दवा हो अथवा रोग हो, सभी ईश्वर का स्वरूप हैँ, हमें पूरी श्रध्दा से उनका वन्दन करना चाहिए।

'पॉइजन हीलर' लक्ष्मीकुट्टी बहुआयामी प्रतिभा की धनी हैँ, 76 वर्ष की आयु में भी सक्रिय लक्ष्मीकुट्टी चिकित्सक, शिक्षक, लेखिका, कवि, पर्यावरणविद, गहरे जंगलो की रक्षक एवं सबसे बड़ी बात कि वे एक ऐसी समाजसेविका हैँ जिनका कोई विकल्प नहीं है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational