जलपरी
जलपरी
डमरू की खाड़ी से घूम कर आने के बाद कुछ दिन तो लखना पहलवान कुछ दिन तो सामान्य रहा लेकिन अब तो जब कभी भी किसी लंबे बालो वाली लड़की को देखता उसे पागलपन छा जाता और वो उस लड़की के पीछे जलपरी-जलपरी कह कर लग जाता और लड़की के बालो को छू-छू कर देखने लगता।
"पागल है, मक्कार है; लड़की छेड़ने का नया बहाना तलाश कर लिया इस पट्ठे ने......" कहकर जग्गू पहलवान लोगो से अपना पिंड छुड़ा लेता।
एक हफ्ते सब सही चला लेकिन कबड्डी के एक मुकाबले में लखना ने दारोगा लक्कड़ सिंह के साथ मैच देखने आई महिला सब इंस्पैक्टर के बाल खोल डाले और जोर-जोर से जलपरी-जलपरी चिल्लाने लगा। दारोगा लक्कड़ सिंह और उसके साथ कबड्डी मैच देखने आई महिला सब इंस्पैक्टर ने अपनी बेंत से पहले तो स्टेडियम में मारा और उसके बाद हवालात में उल्टा लटका कर मारा।
उसकी जमानत उन सबके उस्ताद मलखान सिंह ने दी और तत्काल जग्गू पहलवान को अपने घर बुला भेजा और आँखों से अंगारे बरसाते हुए कहा, "बहुत मस्ती चढ़ गई है तुझे जो सारी दुनियाँ में लखना की बदनामी करते हुए घूम रहा है........तुझे पता है लखना से मेरी बेटी रूप रानी का रिश्ता हो चुका है.......तेरी वजह से लखना गली-गली जूते खाते घूम रहा है.......न तूने उसे सरदार मक्खन सिंह के पीछे डमरू की खाड़ी में भेजा होता और न ये वहाँ से जलपरी-जलपरी करते वापिस आता.......सुबह ही चुपचाप डमरू की खाड़ी चला जा और लखना को क्या हुआ है पता करके आ नहीं तो गुलफाम नगर की तो छोड़ पूरी दुनिया में पहलवानी करने लायक नहीं बचेगा......चल दफा हो अब।"
डमरू की खाड़ी
उस्ताद मलखान सिंह की झाड़ सुनकर जग्गू रात की ही फ्लाइट पकड़कर नार्वे पहुँचा और वहाँ से स्टीमर में सवार होकर लाल सागर और काला सागर के संगम पर बसे नगर डमेरो जा पहुँचा जिसका बिगड़ा हुआ रूप डमरू था और उससे लगी दोनों समुन्द्रो की खाड़ी का नाम बे ऑफ़ डमेरो या डमरू की खाड़ी था।
जग्गू जब सरदार मक्खन सिंह के बोट क्लब पहुँचा तो वो नाव भाड़े पर लेने वाले ग्राहकों के साथ व्यस्त था।ग्राहकों से छुटकारा पा वो घूरते हुए जग्गू के पास आया और बोला, "देख ओये जगमोहन तेरे लाखन का दम नहीं था कि वो वापिस मुझे गुलफाम नगर ले जाए......अब तू आ गया है तो तू भी कोशिश कर ले........"
"मक्खन सिंह तू झाड़ू दास के शराब खानो और जुआ घरो का १० करोड़ लेकर भागा है पागल था लखना जो उनके चक्कर में पड़कर तेरे पीछे यहाँ आया और पागल होकर गया......." जग्गू अपनी गंजे सिर पर हाथ फेरते हुए बोला।
"अबे तुम सारे पहलवान पागल हो......जो पहले ही पागल था वो और पागल हो गया होगा......हुआ क्या है उसे?" सरदार मक्खन सिंह गुर्रा कर बोला।
"गुर्रा मत मक्खन सिंह, जब से लखना यहाँ से गया है जलपरी-जलपरी कहते हुए किसी भी औरत के पीछे लग जाता है और फिर जूते खाकर ही उसका पीछा छोड़ता है।" जग्गू गुर्रा कर बोला।
"बेटे उसे ही चस्का चढ़ा था लिटिल मरमेड (जलपरी) से मुहब्बत करने का......अब भुगतो फल।" मक्खन सिंह अपने ग्राहकों की भीड़ की तरफ देखते हुए बोला।
"अबे क्या बला है ये मरमरी?"
"तू तो सही ने नाम भी नहीं ले सकता उसका........अबे यहाँ से ५० मील दूर काले समुंद्र में एक टापू है वही हर पूरे चाँद की रात जलपरियाँ आती है.........उस दिन अगर उनकी निगाह में कोई इंसान आ जाता है तो वो उसके साथ कुछ ऐसा करती है कि वो सारी जिंदगी जलपरी-जलपरी करते फिरता है और ५० साल की उम्र में खुद ही ठीक हो जाता है.......ऐसे पागलों का पूरा क्लब है यहाँ......" मक्खन सिंह बोला।
"अबे तेरे गप सुनने नहीं आया हूँ मै......मुझे लखना का इलाज बता दे नहीं तो मुझे अपने यहाँ ही कोई नौकरी दे-दे नहीं तो उस्ताद मलखान सिंह मुझे बर्बाद कर देगा।" जग्गू नाव लेने वालो की भीड़ की तरफ देखते हुए बोला।
"तुम्हारी फालतू बकवास के लिए टाइम नहीं है मेरे पास.......सामने जो ढक्कन नाव भाड़े पर ले रहे है ये आज रात जलपरियाँ देखने जा रहे है......तू भी एक नाव पकड़ के निकल ले उनके साथ और ढूंढ ले लखना का इलाज।" कहकर मक्खन सिंह अपने ग्राहकों के पास चला गया।
जलपरी
मक्खन सिंह एक नंबर का मक्कार आदमी था वो पैसे के लिए कुछ भी कर सकता था, जग्गू समझ गया था कि था कुछ तो है जो मक्खन सिंह उससे छिपा रहा है। बहुत सोचने के बाद शाम होने से पहले उसने भी मक्खन सिंह से एक नाव भाड़े पर ली और मैक नाम का एक नाव चालक और गाइड भी भाड़े पर लिया। खाना खाकर वो दोनों अपनी तेज गति की नाव में बैठकर जलपरी के टापू की तरफ चल पड़े।
११ बजे वो जलपरी के टापू के पास थे टापू का आकार बहुत विशाल था, करीब १० या अधिक नावें काली स्याह रात में काले समुन्द्र की छाती पर बिखरी हुई थी। रात चाँदनी थी लेकिन चारो और छोटी-छोटी काली लहरे थी और रात गुजरती जा रही थी।
रात के १२ बजते ही एक अजीब सा विलाप संगीत हवाओ में गूँज उठा और परियो के टापू पर साये नजर आने लगे।
"गौर से देख लो......अब निकल चलने का टाइम हो गया है......अब ये सारे साये समुन्द्र में कूद कर वो तबाही मचाएंगे कि न ये नाव बचेगी और न हम।" कहते हुए मैक ने नाव का इंजन स्टार्ट किया और उस टापू के विपरीत दिशा में नाव को चला।
"रोको मुझे देखना है ये क्या बला है?" जग्गू चिल्लाते हुए बोला।
"पागल यही गलती तेरे दोस्त ने की थी......और वो पागल होकर गया यहाँ से......" मैक नाव को तेज गति से दौड़ाता हुआ चीखा। अब तक दूसरी नावें भी उनके करीब आ चुकी थी, टापू के साये अब पानी में कूद रहे थे और पानी में लहरों का तूफ़ान सा आ गया था।
हवा में लहरों की तेज आवाज के साथ एक अजीब सी चीत्कार गूँज रही थी। नावें लहरों के विपरीत दिशा में दौड़ रही थी और चीत्कार भयानक होती जा रही थी। उसी वक्त जग्गू की नाव का इंजन बंद हो गया और उसकी गति धीमी पड़ने लगी।
"हम तो अब गए......." कहते हुए मैक धीमी होती नाव से उनके बगल में दौड़ती नाव पर कूद गया। जग्गू नावों को खुद से दूर जाते देखता रहा। थोड़ी ही देर में उसकी नाव बुरी तरह हिल रही थी और तूफ़ान की जद में थी। जग्गू ने कुछ देर सोचा और फिर वो समुन्द्र के ठंडे पानी में कूद गया और तैरते हुए अपनी नाव के नीचे जा पहुँचा और नाव के स्थिर हुए पंखे से जा चिपका।
उसके बाद जो उसने देखा वो अविश्वसनीय था। नाव को चारों और से विशालकाय जीवों ने घेर लिया था उनकी पूँछे बिलकुल मछली की पूँछ के सामान थी और वो चीत्कार जैसी आवाजें निकाल रहे थे। अब उन जीवों ने अपनी पूँछ को हिलाना शुरू किया और वो नाव के नीचे आकर तैरने लगे, वो विशालकाय जीव कुछ देर नाव के नीचे तैरते रहे और फिर उन्होंने नाव को हवा में उछाल दिया। नाव हवा में १०० फ़ीट उछली और जग्गू ने नाव के पंखे को और कस कर पकड़ लिया। नाव नीचे गिरी और फिर हवा में २०० फ़ीट उछली और वो जीव भी नाव के साथ उछले। जग्गू ने देखा न तो वो जीव मछली ही थे और न इंसान। उनके चेहरे भयानक थे और सिर पर लंबे बाल उगे हुए थे।
करीब दस मिनट वो जीव नाव के साथ खेलते रहे और फिर समुन्द्र के पानी में डूबते उभरते नाव से बहुत दूर चले गए।
जग्गू नाव के पंखे से चिपका रहा और उसके होठ स्वयं ही बुदबुदा रहे थे जलपरी-जलपरी और उसके दिमाग में वो भयानक जीव छा चुके थे।
