.जल संरक्षण
.जल संरक्षण


सोनभद्र उत्तर प्रदेश का 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आज पूर्णता जल संकट मुक्त हो गया है। 30 साल पहले कनहर नदी के बीच के पठारी क्षेत्र की आबादी हर साल गर्मी के 5 महीने पानी की एक-एक बूंद को तरस जाती थी, जलस्तर काफी नीचे होने के कारण पानी पाना लगभग नामुमकिन हो जाता था। तब बीएचयू से पढ़े रॉबर्ट्सगंज निवासी नरेंद्र नीरव ने क्षेत्र के एक- एक बूंद के लिए तड़पते जीवन को बहुत नजदीक से देखा था। जल संचयन को लेकर पहले भी बहुत काम हो चुके थे, किंतु उनके नेतृत्वकर्ता थे वनवासी सेवा आश्रम के बाबुलभाई। नरेंद्र नीरव ने कुल्लू मरी के आसपास पानी के अकाल और बाबुल भाई के प्रयास को देखा था और वही उनके प्रेरणास्रोत बने थे।
नीरव ने हर किसी को जल संकट से उबरने का माध्यम बनाया। उन्होंने हर हाथ से काम लिया और हर जुबां को नारा दिया। आदिवासियों की खेती,पशुपालन और जंगल को समृद्ध बनाने के लिए बच्चों महिलाओं यहां तक की बाहरी लोगों के श्रम का भी सहारा लिया और परिणाम रहा ,वहां के पानी का जलस्तर 15 से 20 फुट तक ऊपर आ गया है। निहायत जंगल में बसी आबादी वाले क्षेत्र कोटा व पनारी ग्राम पंचायत का लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र नरेंद्र नीरव और उनकी सोच को दिशा देने में लगे सैकड़ों लोगों के प्रयास से लहलहा उठा है। खेती, पशुपालन और स्वयं के लिए अब सिर पर पानी ढोने जैसी जिल्लत से मुक्ति मिल गई है। शहीद दीपेंद्र घोषाल के नाम से सरोवर भी बनवाया गया। उनके पिता अनपरा बिजली परियोजना में अधिकारी डीडी घोषाल तक ने श्रमदान किया। आधे अंशदान, और आधे श्रमदान के जरिए क्षेत्र में 80 से अधिक बंदियों का निर्माण कराया गया इस अभियान में ओबरा परियोजना के तत्कालीन विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ आर के गुप्ता ने जमकर साथ दिया। जैन का मानना है कि शिक्षा -दीक्षा पर समाज का जो खर्च होता है, उसे वापस लौटना हमारा धर्म है। जब हम पोखर, तालाब, सरोवर वह कुंओं की गहराई बढ़ाने के लिए परिश्रम कर रहे हैं, तब याद रखें कि मिट्टी सही जगह पर डाली जाए, ताकि गहराई के साथ जलाशय की ऊंचाई भी बढ़े और तटबंध मजबूत हो। इस मकसद से डाली गई नई मिट्टी की कुटाई बहुत जरूरी है अन्यथा नई मिट्टी पहली बरसात में ही बैठकर जलाशय को पाट देगी या बाहर चली जाएगी।