जज़्बात एक्सप्रेस
जज़्बात एक्सप्रेस
मयंक का कान ऐंठते हुए उसकी माँ ने पुछा ’’ तुम्हारे पिता जी कब से आवाज दिए जा रहे हैं, तुमको सुनाई नहीं दे रहा है क्या ? तुम तो जानते हो न पापा का गुस्सा। ’’ बेटे के ऐंठे हुए कान के दर्द कम करने के लिए कान को अपने नरम-मुलायम उंगलियों से सहलाकर बोली ’’ तुम तो जानते हो न पापा का गुस्सा ? ’’ मयंक की आँखों में देखकर फिर माँ ने पुछा ’’ अच्छा, मेरा बच्चा दिन भर क्या सोचता रहता है ? देखो अपनी मम्मी से कुछ भी न छूपाना, अच्छी बात नहीं होती है। ’’ जवाब के इन्तजार में उसकी माँ मयंक की आँखों में झांकने लगी , मयंक ने दाएं-बाएं देखने के बाद फिर बोला ’’ कुछ भी तो नहीं मम्मी, क्या सोचूंगा, बस अपने कॅरियर के बारे में ही सोचता रहता हूँ, और कोई बात नहीं है। ’’ मयंक के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई थी।
’’ सही बोल रहे हो न ? ’’
।’’ हाँ मम्मी, सौ फिसदी सही। इसमें भी कोई पुछने वाली बात है। ’’ अपने इस जवाब के साथ मयंक अपनी मम्मी के साथ कमरे से बाहर निकल गया।
’’ नालायक, निखट्ठू। ’’ शब्द पापा की जुबान से सुनने के बाद, उनके आदेश का पालन करने के बाद, मयंक वापस अपने विस्तर पे पसर गया। आँखें छत की तरफ एक टक देखती रही और दिमाग कुछ सोचता रहा और दिल उड़नछू हो गया।
हर चीज खुबसूरत लगने लगी, रंग-बिरंगे, खुशबूदार फूलों के बीच में वो खुद को पाने लगा, चारो ओर उसको नेहा दिखने लगी। यादों में कभी वो नेहा के नरम रेशमी जुल्फों से खेलता तो कभी उसके नाक पे अपनी उंगलियां फिराता। जैसे ही मयंक ने नेहा को अपनी बाँहों में भरकर, उसके मुलायम शरीर को महसूस किया तो सपना टूट गया।
उसकी माँ मयंक को झकझोर कर उठा रही थी और कह रही थी ’’ चल मयंक, खाना खा ले। ’’
मयंक ने कहा ’’ ओह मम्मी, आप चलिए, मैं आता हूँ। ’’ मम्मी के बाहर जाते ही मयंक ने विस्तर के नीचे रखी किताब में से एक तस्वीर निकाल कर कहा ’’ जानेमन, तुम भी जा कर खा लो, मैं भी खाने जा रहा हूँ। ’’
खाने के लिए टेबल पर दो जोड़ी आँखें प्यार भरी चमक लिए मयंक के कुर्सी पर बैठने तक देखती रही।
माँ ने कहा ’’ कितनी देा लगा दी बेटा। ’’
पिता ने कहा ’’ बेटा, दिन है काम करने के लिए, रात है सोने के लिए, दिन में ही इतना सो लिए, रात को क्या करोगे ? खैर चलो खाना खाओ। ’’ खाना खाते समय तीनों की आँखें एक दुसरे को देख लिया करती थी।
वापस विस्तर पर आकर मयंक ने थोड़ा मुस्काया, बड़ी तेजी से उसने गद्दा हटा कर किताब निकाली और धीरे से नेहा की तस्वीर निकाल ली, उसके चेहरे को चुमा और उसकी तस्वीर में खो गया।
दिन में एक बार मयंक को लगा कि महश, पंकज, महेश और दीपक, खेल के मैदान में उसका इन्तजार कर रहे होंगे, लेकिन वो इग्नोर कर, नेहा की तस्वीर से बातें करने में मशगुल हो गया। कुछ ही देर बाद मयंक ने दीपक को अपने कमरे में पाया, उसने कहा ’’ चल खेलने चल। ’’ बोलकर वो झकझोरने लगा।
खेल के मैदान में भी नेहा की दीवानगी मयंक के दिलो दिमाग पर चंचलता बिखेरती रही, नतीजन छक्का मारने वाले बॉल पर मयंक जैसा अच्छा बैट्समैन क्लीन बॉल्ड हो गया। मैच हारने के बाद मयंक अपने दोस्तों की मजाक का पात्र बन गया।
मयंक को दुनिया अब और भी सुहानी लगने लगी थी। हर तरफ रंग-बिरंगे खुशबूदार फूल नज़र आने लगे। सुरिली बाँसूरी की धुन हर समय कान में सुनाई देने लगे।
आज मयंक के सपनों को पर लगे थे। ख्वाहिशों ने मचलना शुरू किया और तमन्नाओं ने अँगराई लेना।
आज मिलन की बेताबी अपनी हद को पार कर देना चाहती थी। मयंक कभी अपनी घड़ी को तो कभी गार्डन के मेन गेट की तरफ बेसब्री से देख रहा था।
मयंक के मन में रह रह कर ख्याल आ रहा था कि आज जी भर के शिकायत करूं।
अगले ही पल गार्डन की मेन गेट पर नेहा आती देखी। नेहा के कदम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे, दिल कुछ सोच रहा हो जैसे।
मयंक के सामने नेहा खड़ी थी। गुमसूम सी दिखी नेहा। मयंक के दिलो दिमाग से सारे सवाल जाते रहे। नेहा भी चुप-चाप गर्दन झकाए खड़ी थी और मयंक बात को आगे बढ़ाने की सोच रहा था। मयंक ने मुस्करा कर कहा ’’ आओ न यहाँ बैठते हैं। ’’ मयंक ने नेहा का हाथ पकड़ कर बिठा लिया। मयंक ने महसूस किया कि नेहा की साँस तेज चल रही हैं। मयंक की नजर नेहा पर टिक गईं थी। नेहा भी मयंक की तरफ देखने की कोशिश करती और झट से अपनी पलक झका लेती थी।
मयंक ने नेहा को अपनी बाँहों में भरना चाहा तो वो छिटक ली। मयंक ने नेहा को बाँहों में भरकर, उसके होंठ पर होंठ जमा दिए।
नेहा ने कहा ’’ अब चलती हूँ। पापा घर पे ही हैं। ’’
मयंक ने कहा ’’ इतनी जल्दी ? अभी तो तुम आई भी नहीं और जाने की बात करने लगी। ’’
’’ नहीं नहीं जाना है। ’’
’’ पहले कल मिलने का वादा करो। ’’ मयंक ने कहा।
’’ वादा ’’ बोलकर नेहा दौड़ कर गार्डन से बाहर निकल गईं।
रात को विस्तर पर करवट बदलता मयंक नींद को बूलाने की कोशिश कर रहा था। उसकी हालत ऐसी थी कि न वो जागना चाह रहा था और न सोना ही चाह रहा था, बस सिर्फ नेहा की यादों में खोना चाह रहा था।
मयंक के मन में यह ख्याल आया कि मैं तो यहाँ करवटें बदल रहा हूँ, वहाँ नेहा बड़े चैन की नींद सो रही होगी। कल खुद के बेताबी से जागने और उसके नींद से सोनेे की चर्चा उससे करूंगा। गार्डन जाते समय मयंक सोच रहा था कि अभी से बार-बार घड़ी क्या देखना, वो तो देर से ही आएगी।
गार्डन में प्रवेश करते ही मयंक के आश्चर्य का ठीकाना ही न रहा। यह देखकर कि नेहा पहले से ही यहाँ पहूँची हुई है।
मयंक को एकटक निहार कर नेहा ने पुछा ’’ तुम्हारी आँखें लाल कैसे है ? ’’
मयंक ने जवाब में कहा ’’ तुम्हारे ख्याल में सारी रात जागता रहा।’’
नेहा की लाल आँखें देखकर मयंक ने भी कहा ’’ आँखें तो तुम्हारी भी लाल है। ’’
’’ क्या करूं तुम्हारी यादों ने सोने ही नहीं दिया। ’’ नेहा के इस जवाब के साथ दोनों ने ही अपनी बेताबी को एक दुसरे की बाँहों में आकर दूर किया।
मयंक ने कहा ’’ तुम हर रोज आओगी, मैं भी हर रोज आउंगा, एक दिन हमोग हमेशा के लिए एक हो जाएंगे। ’’
नेहा ने भी कहा ’’ एक दिन हमलोग हमारा मिलन ही मिलन होगा, बिछड़ने की कोई बात ही नहीं होगी। ’’
नेहा और मयंक एक दुसरे के गले ऐसे मिले, दोनों ने अपनी बाँहों की पकड़ सख्त कर दी कि बीच में हवा को भी प्रवेश की इजाजत नहीं, जैसे कि दोनों एक दुसरे को अपने घर जाने ही नहीं देना चाहते हैं। खैर नेहा ने कहा ’’ अब चलना चाहिए, जाने का मन तो नहीं कर रहा है। कल 5-6 घंटे तुम्हारे साथ पार्क में गुजारूंगी। ’’ वादा करके नेहा वापस चली गई।
प्यार की मस्ती में सराबोर नेहा और मयंक इस दुनिया से इतने अलग हो गए थे कि इस दुनियावालों के जलन वाली नज़रों से बिल्कूल अन्जान हो गए।
जलन वाली नज़र ऐसी कि खुद करें तो अच्छी बात, कोई और करे तो निहायत ही खराब बात। खुद प्यार करे तो संस्कृति को संस्कृति को संभालने वाली बात और दुसरा करे तो संस्कृति को बिगाड़ने वाली बात।
रात भर करवटें बदल कर, यादों की दुनिया से बाहर निकलने के बाद, नेहा पिया मिलन को तैयार हो रही थी कि गड़बड़ हो गई, उसके पापा ने पुछा ’’ कहाँ जा रही हो बेटी ? ’’
’’ मेघा के घर। ’’
’’ लेकिन मेघा तो यहाँ आ रही है, अभी आती ही होगी। ’’ नेहा के पापा ने हाथ पकड़ कर सोफे पर बिठा लिया।
नेहा के लिए मुसीबत वाली घड़ी थी, वो बड़ी बेसब्री से दिवाल घड़ी की तरफ देख रही, मयंक को दिए गए समय का समय हो चला था। कभी पार्क में बेसब्री और बेताबी से टहलते मयंक का चेहरा, नेहा की आँखों में घुम जाता। कभी कभी नेहा की नज़र, अपने पापा के लगातार टकटकी लगाए देख रही आँखों से मिलती और फिर सहम कर झूक जाती।
नेहा सोचने लगी कि आज मयंक मेरे बारे में क्या-क्या सोच रहा होगा।
नेहा ने पापा से पुछा ’’ पापा, आपकी ट्रेन कितने बजे की है ? ’’
’’ बस मैं निकलने के लिए तैयार हूँ, तुम्हारी मम्मी भी तैयार हो रही है। ’’ नेहा अभी पापा की बात को समझने की कोशिश ही कर रही थी कि उसके पापा ने कहा ’’ और तुम तो तैयार हो ही। ’’
पापा की इस बात पर नेहा अन्दर से कौंध गई।
नेहा के पापा हरवंश राय ने अपना ट्राँसफर्र दुसरे शहर में करवा लिया।
