जिंदगी खेल नही
जिंदगी खेल नही
रजत अस्पताल के बेड पर पडे सोच रहा था, कितना स्वस्थ था वो। हजारो लडकियां फिदा हो जाती थी उस पर, न जाने कितनी आई और कितनी चली गई और उसे याद भी नही। मौज मस्ती ऐश्वर्य सब था मेरे पास कितने खेल खेले। जदीकियों के लिए और आज एड्स जिसका अंत मौत। मैं ज्यादा तो नही जी पाऊंगा कुछ समय माँके पास परिवार के पास रहना चाहूंगा जिनको मैंने समय की प्रतिस्पर्धाओ में दूर कर दिया। उडान उडान में रहा। पलट कर भी न देखा, धिक्का है रजत। नही जाऊँगा कही भी।?मेरे गुनाह मेरी कर्मभूमि। मैंने स्वयं अपने जीवन का अंत किया है दूसरे तो नही थे न मेरे पाप में आज जाना है मैंने जिंदगी खेल नही। मैंने जैसै चाहा खेला और आज जिंदगी खिलखिलाकर हंस रही है। जिंदगी आज तेरे करीब आकर समझा मौत क्या है और आज मैं जीना चाहता हूँ तू करीब खडी है।
