मेरी एक आदत
मेरी एक आदत
एक बुरी आदत थी हमारी, वो थी हर किसी के दुख में खडा होना और फिर गालिया खाना। तारीफ नहीं चाहते थे पर शायद जिसके मददगार बने उसकी अवहेलना सही होने के बाद। क्या हम गलत होते है शायद जी हां।
मैं सोचती हूँ लोग ऐसा क्यों करते है? स्वार्थ रहता होगा। पर मैं यहीं गलत हूँ। मैं शायद क्रेडिट चाहती हूँ कि मैं ही हूँ कर्ता। नहीं मैं अहंकार से भरा शब्द। अरे कराने वाला परमेश्वर है ।
कहते है मोमबत्ती की तलाश अंधेरों में होती है। ईश्वर कहते है नेकी कर कुँए में डाल। मैं ये आदत नहीं छोड सकती। जीवन है आज अच्छा कल बुरा। बुराई आदत नहीं छुटती ।यऔर मैं इस बुराई को नहीछोड सकती।
