अपनों के जाने का गम
अपनों के जाने का गम
मैंने अपने दो भाईयों को छ: वर्ष के अंतराल में खोया है ।जानती हूँ जो आयेगा वो जायेगा, स्थिर नहीं कुछ भी ।एक पत्तों का संसार है और समय का चक्र ।पंकज भाई मात्र चालीस साल के थे।डायबीटीज थी उनको बस।काफी
साल तक इनसुलिन पर रहे ,बस जी रहे थे ।एक आदत थी दूसरों को हँसाना ।चल बसे एक हार्ट अटैक और दुनिया को अलविदा ।मैं गई थी भाई की अंत्येष्टि पर ,बहुत रोई। एक भाई के जाने का गम । छोटे थे हमसे तीसरे नंबर के ।बीच वाले भाई संजीव ने मुखाग्रि दी थी ।कहा जाता है बड़ा भाई छोटे भाई को मुखाग्रि नहीं देता पर मुझे एहसास था कि गलत हो रहा है और मैंने कह दिया भाई आप नहीं रह पाओगें अब पंकज के बिना ।विवाहित थे संजीव भाई ,दो बच्चे थे उनके ।एक लड़का एक लड़की । छ:माह बाद ब्रेन हैमरेज। भाई दूसरे भाई के पास और मैं इस दुनिया में । आज रक्षाबंधन और भाई दूज नहीं मनाती, रोती हूँ और कहती हूँ मेरे दोनों भाई पक्षी बनकर आना मेरे दर पर, चीं चीं करके जाना ,उदास है बहना तुम बिन, आके चावल चुग कर जाना ।दो नहीं कई सारी चिड़िया आती हैं और चावल खाती हैं मैं जी भर कर खुश होती हूँ। सच कोई कहीं नहीं जाता आस पास अदृश्य छवि लिए रह जानता है ।ईश्वर के कहाँ दर्शन होते हैं और एक बार जाने वाले लौटकर नहीं आते ।
न चिठठी न संदेश न जाने कौन से देश कहाँ तुम चले गये । जगजीत जी की गजल रुला जाती है ।आज मैं भावविभोर हो उठी ।यादें रुलाती हैं, एक माँ के गर्भ से तीन बच्चे ,दो चले गये, माटी रह गई आत्मा फुरर्र।सबने जाना है ,इस मायारुपी संसार से अच्छे कर्म करके जाओ ,यादें छोड़ जाओ ,सदाबहार जेहन में ।
