Sajida Akram

Drama Inspirational

1.0  

Sajida Akram

Drama Inspirational

जीवनधारा

जीवनधारा

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हेमा की नई-नई शादी हुई। अरेंज मैरिज थी सब कुछ बाबा ने अपने मिलने-जुलने वालों से थोड़ी बहुत जांच परख की लेकिन सबसे बड़ा तमगा ये लड़का अच्छी सर्विस में है इसलिए चट मंगनी-पट ब्याह कर दिया गया।


हेमा सुसराल में दूसरी बार आई तो ज्वाइंट फेमिली में सास, ससुर, ननद, देवर और भी रिश्ते के देवर जो आस-पास के गाँव से पढ़ने के लिए हमारे यहाँ रहते थे। हेमा थोड़ी शर्मिली और ख़ामोश नेचर की थी ज़्यादा बातचीत करना पसंद नहीं था।


लड़कियों को अक्सर घर की बड़ी-बुढियां घुड़क देती थी ज़्यादा ज़बान दराज़ी मत किया करो बेचारी लड़कियां कम बोलना सीख जाती हैं, वही कमी उन्हें बहुत सी नाजायज़ बातें भी बर्दाश्त करनी पड़ती है। 

हेमा ससुराल में रमने की कोशिश करने लगी। उसके पति राज मम्मी-पापा के कुछ ज़्यादा ही लाड़ के थे। 


हेमा और राज की शादी की पहली सालगिरह तो ठीक से रही, मगर ना कभी राज इन एक साल में कभी हेमा को मायके भी नहींले गए। कहीं घूमाने नहीं ले जाते, मम्मी का ही हुक्म चलता। यहाँ तक की दिन में भी संडे की छुट्टी होती, कभी हेमा कमरे में चली जाती सोचती थोड़ी देर बातचीत करेंगे, हेमा का भी मन होता। 


मम्मी फौरन राज को आवाज़ देकर बाहर बुला लेती, कहती यहाँ बैठो और शुरू हो जाता लम्बा-चौड़ा भाषण, “अरे तुम्हें ज़रा शर्म लिहाज़ है घर में जवान बहन है, दो-तीन देवर है।”


जैसे हम पति-पत्नी कोई गुनाह कर रहें हो ऐसा बुरा माहौल बना देतीं। हम दोनों को सख़्ती से हिदायत थी दिन में कमरा बंद नहीं करोगी रात हो या दिन ख़तरनाक चौकीदारी रहती... हेमा पति से रात में उसकी मम्मी की शिकायत करती तो वह बस मम्मी का ही पक्ष लेता दिखता।


हेमा ससुराल में बहुत कोशिश की के उन लोगों की तरह बन जाए पर मां के संस्कार ससुराल में थोड़ा झुक कर रहना कोई कुछ कह भी दे तो सुन लेना, बस यही सुन लेने वाली बात से घर के लोग दब्बू समझने लगे, सोचते बेवकूफ है। जिसके मुंह में जो आता बोल जाता। पति अपनी ही मस्ती में मग्न रहते।


असल में राज कमांऊपूत था उसको माँ-बाप ने खूब छूट दे रखी थी कभी रातों को देर से आना पार्टी करके कभी सुनने में आता औरतबाज़ी चल रही है धीरे-धीरे ये बातें हेमा के कानों तक पहुँचाने लगी। वो आवाज़ उठाती तो सासु तेज़ थी राज के सामने ही बड़ी सीना ठोक कर कहती, “अरे हमारा बेटा मर्द है...” बस इतने में तो बेटा फूल कर कूप्पा हो जाता। हेमा अपने घर में भी राज की शिकायत नहीं कर पाती थी माँ अकेली थी बाबा की डेथ के बाद भाईयों ने तो जैसे शादी करके अपने सिर से बोझ उतारा हो। वो माँ को किसी भी तरह का टेन्शन नहीं देना चाहती थी।


माँ और बाप असल में राज को गलत या सही का तमीज़ ही नहीं सीखाना चाहते थे। गलत राह पर चलने से तुम्हारा ही नुकसान होगा ये हेमा समझाती तो राज को अक्सर बहुत बुरा लगता, और दोनों में झगड़े की नौबत आ जाती थी।


घर में कमाई का सारा पैसा मम्मी को जाता फिर वो एक-एक पैसा देने में राज हो या घर के ओर मेम्बर सब को रूला देती, ऐसा लगता मम्मी जी ने राज को पूरी तरह से मां के आगे नतमस्तक थे। मम्मी ने राज को ये कह रखा था, तुम्हारे पापा तो बहुत गैरजिम्मेदार है जो भी करना है तुम्हें करना, उसे चारों तरफ से राज के घेर दिया था, उन्हें तो सिर्फ माँ, बाप और बहन-भाई बस यही दिखता।


हेमा इस बीच दो बच्चों की माँ भी बन गई अब वो जब भी राज से अपने बच्चों के बारे में सोचने की बात होती तो, वो हमेशा लापरवाही से कहता सब हो जाएगा... तो आखिर हेमा भी मायूस हो गई।


वो सब कुछ भूलकर अपने बच्चों की पढ़ाई में जी-जान से लग गई। इधर घर में धीरे-धीरे राज की बहनों की शादी और भाई का भी ग्रेजुएशन पूरा हुआ।


हेमा का सब्र कहें या लम्बा इंतज़ार उनकी बेटी 8वीं क्लास में आई तो राज को समझ आने लगा अब मेरे बच्चों को अच्छी एजुकेशन के लिए बड़े शहर में ट्रांसफर लेना होगा। इन गुज़रते सालों में राज की मम्मी भी नहीं रही, मगर पापा जी की माँ जैसी तानाशाही शुरू थी, उनका दबाव था तुम यहाँ से कहीं बाहर मत जाओ।


हेमा और राज की शादी को 26 साल हो गए थे पर हेमा का ससुराल रुपी राक्षसों से जैसे पीछा नहीं छूटना था। राज का छोटा भाई और पापा जी साथ ही रहे, उसमें भी पापा जी अपनी बेटियों को बुलाना, दामाद आएं तो राज पर दबाव के, इनकी आवभगत में कमी मत करो... बेटियों को हेमा के सामने ही ये कहना, ये है ना सब काम करने के लिए... जब राज ने ये सब देखा बहन-भाई का बर्ताव पापा जी की हरकत तब राज की आंखों के सामने से ये दोहरे मापदंड का चश्मा उतरा उसे समझ आया ये लोग तो इतने सालों से मुझे बस अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए यूज करते रहे अब बहन-भाई सब अपने-अपने हो गए तो सबने मुंह फेर लिया।


पापा जी ने भी पुश्तैनी घर भी अपनी बेटी को देने के लिए उसके नाम कागजात बनवा दिया। राज को जब बच्चों की ज़िम्मेदारी, पढ़ाई, हायर एजुकेशन के लिए पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो आखिर में काम हेमा ही आई। उसने बच्चों की पढ़ाई के लिए नेशनल बांड खरीद रखें थे हेमा अक्सर राज से बच्चों और ख़ुद के लिए जो पैसा लेती थी। उसको ख़र्च न कर जमा करने की कोशिश करती।


हेमा ने कहा तुम अपने पापा जी से भी बात करो, तुमने ज़िन्दगी भर उनकी ज़िम्मेदारी निभाई है अब वो भी तुम्हारा साथ दे, पापा जी बहुत शातिर पन से कहते हैं, अरे लड़की है इसे इंजीनियर क्यों करवा रहे हो बी.ए. करवाओ शादी कर दो... कोई ज़रुरत नहीं इतना पैसा खर्च करने की...! राज ने कहा, मैंने मम्मी के कहने पर आप सबका इतना किया। आप सबका भी फर्ज बनता है।


पापा जी का जवाब था, ये तुम्हारी औलाद है तुम जानो। उस दिन राज की आंखों के आगे से सारे ज़िम्मेदारी वाले राग अलापने का पर्दा हटा, काश... मैंने हेमा का कहा माना होता।


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